हाथ मिलाने के मायने

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By - ????? ????? |2 Dec 2014 6:30 PM
दक्षेस की दृष्टि से भी देखें तो इसकी वास्तविक प्रगति और सामूहिक सहयोग में बाधा इन दोनों के संबंध ही हैं।
नई दिल्ली. दक्षेस सम्मेलन के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का एक दूसरे को नजरंदाज करने से लेकर दूसरे दिन हाथ मिलाने और अनौपचारिक बातचीत करने के अंदाज तक रिश्तों की तल्खियों में कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
भले सम्मेलन दक्षेस का था जिसमें भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव, श्रीलंका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं, अन्य 9 देश पर्यवेक्षक की भूमिका में थे, परंतु उसके परिणामों से ज्यादा फोकस भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के हाव भाव और व्यवहार पर गड़ा हुआ था। इसे आप जो भी कहिए, लेकिन सच यही है कि दक्षेस सम्मेलन के महत्वपूर्ण भाषणों, फैसलों, सहमतियों से ज्यादा ध्यान और चर्चा मोदी एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के व्यवहार की हुई। यह कितना ठीक और कितना गलत था इस पर असहमति की गुंजाइश है, परंतु आप मीडिया पर नजर दौड़ा लीजिए।
हालांकि मुख्य फोकस तो दक्षेस में नेताओं के भाषणों पर आए प्रस्ताव और अंतिम समझौते होने चाहिए पर यदि भारत पाक के नेता वहां हैं तो उनको फोकस में लाए जाने को भी अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता है। अगर दक्षेस की दृष्टि से भी देखें तो इसकी वास्तविक प्रगति और सामूहिक सहयोग में बाधा इन दोनों के संबंध ही हैं, और पाकिस्तान का भारत के प्रति अतिवादी रवैया हमेशा बड़े निर्णयों के आड़े आता है। वैसे भी मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दक्षिण एशिया को महत्व देने और पाकिस्तान सहित सभी राष्ट्रप्रमुखों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने के बावजूद जिस तरह इन दिनों दोनों देशों के रिश्ते में आम तल्खियों से संवादहीनता की स्थिति है उसमें यह स्वाभाविक ही था। तो क्या माना जाए? पहले दिन मोदी और शरीफ का एक दूसरे से नजरंदाज करने से लेकर दूसरे दिन हाथ मिलाने, अनौपचारिक बातचीत करने तथा मुस्कराने के अंदाज तक वाकई रिश्तों की तल्खियों में कमी की उम्मीद की जा सकती है।
यह काठमांडू ही है जहां 2002 के दक्षेस सम्मेलन में ऐसे ही पूरी दुनिया की नजर तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ एवं भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर थी। 13 दिसंबर, 2001 को संसद पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर थे। भारत ने युद्घ की अवस्था में पाकिस्तान से लगने वाली पूरी अंतरराष्ट्रीय सीमा एवं नियंत्रण रेखा पर सेना तैनात कर दिया था एवं माहौल यह था कि पता नहीं भारत कब हमला कर दे। भारत ने हमले की बजाय हमले का भय दिखाकर पाकिस्तान को आतंकवाद निर्यात करने से रोकने के लिए बाध्य करने की रणनीति, जिसे बाध्यकारी कूटनीति कहते हैं, अपनाई थी पर युद्घ के माहौल के कारण विश्व भर की बड़ी शक्तियों की कूटनीति यहां सक्रिय थी। दोनों नेता एक मंच पर थे एवं आपस में बातचीत करना तो दूर एक दूसरे की ओर देख भी नहीं रहे थे। अचानक मुशर्रफ भाषण देकर लौटे और वाजपेयी की तरफ हाथ बढ़ा दिया। वाजपेयी चौंके, लेकिन तुरंत संभले और अपने शालीन स्वभाव के अनुरूप उठे और हाथ मिलाया। दोनों नेताओं के हाथ मिलाने की खबरें तो सुर्खियां बनी हीं, इस पर लंबी चर्चा होती रही। मुशर्रफ से वाजपेयी जी की कोई गंभीर बातचीत नहीं हुई, पर माहौल बदलने का आधार तैयार हो गया। मुशर्रफ ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में अपने यहां आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध सहित अनेक कदम उठाए।
लेकिन मोदी और शरीफ के बीच परिस्थितियां अलग हैं। मोदी दक्षिण एशिया की एक विशेष इकाई के रूप में विकसित करने की कल्पना रखते हैं, लेकिन नवाज शरीफ की हैसियत मुशर्रफ की तरह नहीं है और न वे उनकी तरह साहस के साथ अपने रुख में आवश्यक बदलाव का चरित्र ही रखते हैं। ऐसा होता तो पहले दिन ही मोदी की ओर बढ़ गए होते जैसा मुशर्रफ ने 12 वर्ष पहले किया था। पहले दिन के हालात को याद करिए। शरीफ जब नरेंद्र मोदी के पीछे से गुजरते हुए अपनी सीट की ओर बढ़ रहे थे, तो वह तिरछी नजर से उन्हें देख रहे थे। जब वे भाषण के लिए आगे आए तो मोदी की ओर देखा नहीं और मोदी कुछ पढ़ने में मशगूल जैसा दिखने लगे। जब मोदी का भाषण हुआ तो शरीफ काफी देर तक मुंह पर उंगली डाले बैठे रहे और चेहरे का भाव हीनता ग्रंथि का था। शायद इसीलिए कि मोदी एक पर एक नई घोषणाएं और विचार पेश कर रहे थे, जिसे तालियां मिल रही थीं। शरीफ ने ताली नहीं बजाई। इसके पहले मोदी ने भी उनके भाषण पर ताली नहीं बजाई। तो यह पूरा हाव भाव 2002 से अलग था।
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