अंतरिक्ष में भारत के कदम, मंगल मिशन में मिली सफलता

अंतरिक्ष में भारत के कदम, मंगल मिशन में मिली सफलता
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देश का मंगल अभियान पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर आधारित है।
नई दिल्ली. चौबीस सितंबर, 2014 को भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए अपने मंगल मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और मार्स ऑर्बिटर यान को मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिया। इस सफलता के साथ ही भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) यूरोपियन यूनियन की अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चौथी ऐसी एजेंसी बन गयी जिसने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है। देश का मंगल अभियान पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और इस पूरे अभियान पर 450 करोड़ रुपये खर्च हुए जो कि नासा के मंगल मिशन का सिर्फ दसवां हिस्सा है। मंगल पर भेजे गए 51 मिशन में से 21 ही सफल हुए हैं। पिछले साल चीन का पहला मंगल मिशन, जिसे यिंगह्यो-1 का नाम दिया गया था, नाकाम हो गया था। जापान का प्रयास भी असफल रहा था। पहली ही कोशिश में भारत की सफलता अंतरिक्ष में भारत के नए आयाम स्थापित करेगी। इस मिशन में उन तकनीकों को शामिल किया गया है, जो आगे चल कर मंगल से नमूने लाने में मदद करेंगी और अंतत वहां मनुष्य के मिशन को सुगम बनाएंगी।
नेवीगेशन सैटेलाइट की कामयाबी-अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इसरो ने 4 अप्रैल, 2014 को भारत के दूसरे नेवीगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1 बी का पीएसएलवी-सी 24 के जरिए सफल प्रक्षेपण किया। इसे सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के साथ ही देश कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हो गया, जिसके पास इस तरह की प्रणाली है। यह अभियान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई दिशा प्रदान कर रहा है। इससे न केवल हमारी नौसेना को मजबूती मिली है, बल्कि परिवहनों तथा उनकी सही स्थिति एवं स्थान का पता लगाने में यह सहायक सिद्घ हो रहा है। इस उपग्रह के माध्यम से धरती, आकाश, जल में दिशासूचक, आपदा प्रबंधन, वाहनों की खोज, जहाजी बेड़े का प्रबंधन, मोबाइल फोन के साथ संपर्क, मैपिंग और भूगणित आदि कार्य किये जा सकेंगे।
देशी जीपीएस की तरफ बढ़ते कदम-अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इसरो ने 16 अक्टूबर, 2014 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के तीसरे नेवीगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1 सी का पीएसएलवी-सी 26 के जरिए सफल प्रक्षेपण किया। इसे सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के साथ ही अमेरिका के जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की तरह भारत ने खुद का नेवीगेशन सिस्टम स्थापित करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया। इससे देश का नेवीगेशन सिस्टम मजबूत होगा। यह परिवहनों तथा उनकी सही स्थिति एवं स्थान का पता लगाने में यह सहायक सिद्घ होगा। भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) इसरो की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा कुल 7 नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाने हैं, जो कि 36000 किलोमीटर की दूरी पर पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएंगे। यह भारत तथा इसके आसपास के 1500 किलोमीटर के दायरे में चक्कर लगाएंगे। इसरो ने इसका विकास इस तरह किया है कि यह अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के समकक्ष खड़ा हो सके।
जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण-इसरो ने 5 जनवरी, 2014 को देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। इसके साथ ही भारत विश्व का ऐसा 6वां देश बन गया, जिसके पास अपना देसी क्रायोजेनिक इंजन है। अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के पास पहले से ही यह तकनीक है। क्रायोजेनिक इंजन तकनीक से लैस चुनिंदा राष्ट्रों के क्लब में शामिल होने के बाद भारत को अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। 2001 से ही देसी क्रायोजेनिक इंजन के माध्यम से जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ था। चौबीस सितंबर, 2014 को भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए अपने मंगल मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और मार्स ऑर्बिटर यान को मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिया। इस सफलता के साथ ही भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अमेरिका, रूस और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) यूरोपियन यूनियन की अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चौथी ऐसी एजेंसी बन गयी जिसने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है। देश का मंगल अभियान पूर्णतया स्वदेशी तकनीक पर आधारित है और इस पूरे अभियान पर 450 करोड़ रुपये खर्च हुए जो कि नासा के मंगल मिशन का सिर्फ दसवां हिस्सा है। मंगल पर भेजे गए 51 मिशन में से 21 ही सफल हुए हैं। पिछले साल चीन का पहला मंगल मिशन, जिसे यिंगह्यो-1 का नाम दिया गया था, नाकाम हो गया था। जापान का प्रयास भी असफल रहा था। पहली ही कोशिश में भारत की सफलता अंतरिक्ष में भारत के नए आयाम स्थापित करेगी। इस मिशन में उन तकनीकों को शामिल किया गया है, जो आगे चल कर मंगल से नमूने लाने में मदद करेंगी और अंतत वहां मनुष्य के मिशन को सुगम बनाएंगी।
नेवीगेशन सैटेलाइट की कामयाबी-अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इसरो ने 4 अप्रैल, 2014 को भारत के दूसरे नेवीगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1 बी का पीएसएलवी-सी 24 के जरिए सफल प्रक्षेपण किया। इसे सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के साथ ही देश कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हो गया, जिसके पास इस तरह की प्रणाली है। यह अभियान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई दिशा प्रदान कर रहा है। इससे न केवल हमारी नौसेना को मजबूती मिली है, बल्कि परिवहनों तथा उनकी सही स्थिति एवं स्थान का पता लगाने में यह सहायक सिद्घ हो रहा है। इस उपग्रह के माध्यम से धरती, आकाश, जल में दिशासूचक, आपदा प्रबंधन, वाहनों की खोज, जहाजी बेड़े का प्रबंधन, मोबाइल फोन के साथ संपर्क, मैपिंग और भूगणित आदि कार्य किये जा सकेंगे।
देशी जीपीएस की तरफ बढ़ते कदम-अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इसरो ने 16 अक्टूबर, 2014 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत के तीसरे नेवीगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1 सी का पीएसएलवी-सी 26 के जरिए सफल प्रक्षेपण किया। इसे सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के साथ ही अमेरिका के जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की तरह भारत ने खुद का नेवीगेशन सिस्टम स्थापित करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया। इससे देश का नेवीगेशन सिस्टम मजबूत होगा। यह परिवहनों तथा उनकी सही स्थिति एवं स्थान का पता लगाने में यह सहायक सिद्घ होगा। भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) इसरो की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा कुल 7 नेविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाने हैं, जो कि 36000 किलोमीटर की दूरी पर पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएंगे। यह भारत तथा इसके आसपास के 1500 किलोमीटर के दायरे में चक्कर लगाएंगे। इसरो ने इसका विकास इस तरह किया है कि यह अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के समकक्ष खड़ा हो सके।
जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण-इसरो ने 5 जनवरी, 2014 को देश में निर्मित क्रायोजेनिक इंजन के जरिये रॉकेट जीएसएलवी डी-5 का सफल प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाकर नया इतिहास रच दिया। इसके साथ ही भारत विश्व का ऐसा 6वां देश बन गया, जिसके पास अपना देसी क्रायोजेनिक इंजन है। अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के पास पहले से ही यह तकनीक है। क्रायोजेनिक इंजन तकनीक से लैस चुनिंदा राष्ट्रों के क्लब में शामिल होने के बाद भारत को अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए किसी अन्य देश पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। 2001 से ही देसी क्रायोजेनिक इंजन के माध्यम से जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ था।
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