अंतरिक्ष में जीवन की खोज, शुक्र ग्रह पर धरती से दोगुना प्रकाश

अंतरिक्ष में जीवन की खोज, शुक्र ग्रह पर धरती से दोगुना प्रकाश
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शुक्र ग्रह पर धरती की तुलना में दोगुना प्रकाश आता है और वहां सतह पर पानी की संभावना नहीं है।

इस अंतरिक्ष में, हमारी पृथ्वी के अलावा कहीं और भी जीवन है? यह प्रश्न वैज्ञानिकों के लिए शुरू से ही कौतूहल का विषय रहा है। इस ब्रह्माण्ड में असंख्य नीहारिकाएं हैं और हर नीहारिका में अरबों-खरबों तारे हैं जिनके अपने-अपने ग्रह और उपग्रह हैं। हमारी अपनी नीहारिका (आकाशगंगा) में हमारा सूर्य एक औसत तारा है। जिसके आठ प्रमुख ग्रह हैं। इनमें से एक हमारी पृथ्वी है, जिसका उपग्रह चंद्रमा है। किसी ग्रह को रहने लायक तभी माना जाता है जब वह अपने तारे से लगभग उतना ही प्रकाश लेता है, जितना कि हमारी धरती सूर्य से लेती है। इससे ज्यादा प्रकाश आने से पानी भाप बनकर उड़ जायेगा और कम प्रकाश मिलने पर पानी जमकर बर्फ बन जायेगा। उदाहरण के लिए शुक्र ग्रह पर धरती की तुलना में दोगुना प्रकाश आता है और वहां सतह पर पानी की संभावना नहीं है।

अंतरिक्ष में जीवन की संभावना खोजने में लगे खगोलविदों ने हाल ही में आठ ऐसे ग्रहों का पता लगाया है, जो धरती के आकार-प्रकार के हैं। और जिन्हें रहने लायक माना जा रहा है। ये आठों ग्रह अपने तारों से उतनी ही दूरी से परिक्रमा कर रहे हैं, जिससे इनकी सतहों पर पानी की संभावनाएं हो सकती हैं। इन ग्रहों पर धरती जैसी चट्टानों के पाये जाने की भी संभावना है। हार्वर्ड-स्मिथसोनियन खगोल भौतिकी केंद्र के गिलेरमो टॉरेस के अनुसार जिन दो ग्रहों को धरती से अत्यधिक समानता पाई गई है, उनके नाम केपलर-438बी और केपलर-442बी है। ये दोनों ग्रह लाल बौने तारों की परिक्रमा कर रहे हैं, जो हमारे सूर्य से छोटे और अपेक्षाकृत ठंडे हैं। इन ग्रहों का पता नासा की केपलर अंतरिक्ष दूरबीन ने लगाया है। इसके साथ ही केपलर द्वारा खोजे गये ग्रहों की संख्या एक हजार से अधिक हो गई है। केपलर दूरबीन हमारे सौरमंडल से बाहर डेढ़ लाख से अधिक तारों की निगरानी कर रही है। दूसरे वैज्ञानिक डेविड किपिंग ने कहा कि हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि ये ग्रह सच में रहने लायक हैं या नहीं। फिलहाल सिर्फ इतना कह सकते हैं कि ये भविष्य के लिए हमारी आशाओं के केंद्र हैं।
दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश के प्रयासों के अगले चरण के रूप में वैज्ञानिक अंतरिक्ष में एक ऐसा टेलिस्कोप लगाने की सोच रहे हैं जो 30 प्रकाश वर्ष तक के दायरे में आने वाले ग्रहों, तारों पर नजर रख सकेगा। एक प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जिसे प्रकाश एक साल मेें तय करता है। सूरज का सबसे नजदीकी तारा हमसे लगभग चार प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। अनुमान है कि नई दूरबीन का दायरा दसियों हजार तारों और उनके ग्रहमंडलों तक फैला हुआ होगा। एटलास्ट (अडवांस्ड टेक्नोलॉजी लार्ज-ऐपर्चर स्पेस टेलिस्कोप) नाम का यह टेलिस्कोप 1990 में अंतरिक्ष में भेजे गये हबल स्पेस टेलिस्कोप के चार गुने से भी ज्यादा बड़ा होगा। इसके अंदर लगे गोलाकार आईने का व्यास (डायामीटर) 52 फीट बताया जा रहा है। इतने विशाल आकार का टेलीस्कोप पृथ्वी पर बनाकर अंतरिक्ष में नहीं भेजा जा सकता। इसके टुकड़े यहां से ले जाकर अंतरिक्ष में जोड़ने होंगे। इस काम के लिए मिस्त्री नासा के ओरियन रॉकेट के जरिए 10 लाख मील दूर अंतरिक्ष में ले जाए जाएंगे और वहीं पर यह विराट निर्माण कार्य संपन्न होगा। एक अनुमान के मुताबिक जो दसियों हजार तारे इस टेलीस्कोप की जद में आयेंगे उनमें से कुछ हजार के पास पृथ्वी जैसे ग्रह होंगे, जिनमें से कुछ पर शायद हम जैसे जीव भी मौजूद हों। जाहिर है, दूसरे ग्रहों पर जीवन खोजने की दिशा में यह अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास होगा। बहरहाल, अभी तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि प्रोजेक्ट शुरू कब होगा। खर्चीला यह इतना है कि इसे अंजाम तक पहुंचाना किसी एक देश के बूते की बात नहीं है। ऐसे में एक ग्लोबल प्रोजेक्ट की तरह ही इसे आगे बढ़ाना होगा। नासा ने ब्रिटेन सहित अन्य यूरोपीय देशों की स्पेस एजेंसियों को इससे जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है।
इस टेलीस्कोप की मदद से हम अंतरिक्ष के दूरस्थ तारों के ग्रहों तक खोजबीन कर सकेंगे। हमारी आकाशगंगा के तारों की गणना के आधार पर तथा जिस सीमा तक वर्तमान दूरबीनें देख सकती हैं उस सीमा तक नीहारिकाओं की गणना के आधार पर यह तुरंत ही मालूम हो जाता है कि इस ब्रह्माण्ड में 1020 से भी अधिक तारे हैं और प्रत्येक तारे के प्रकाश में शोषण की क्षमता है जिन पर पौधों और जंतुओं का जीवन निर्भर करता है।
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