न्याय में विलंब न हो

जिस शख्स को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 में मुजरिम मान लिया गया हो उसे मामले को खींचने का अधिकार नहीं होना चाहिए। कायदे से फांसी के मामलों में 45 दिनों के भीतर फैसले हो जाने चाहिए। दोषी को बहुत विकल्प नहीं मिलने चाहिए।
याकूब मेमन को 30 जुलाई को फांसी हो गई। वह करीब बीस सालों तक जेल की सलाखों के पीछे रहा। मुंबई धमाकों का गुनहगार बार-बार दया याचिकाएं देता रहा है। निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति ने उसकी सजा को बरकरार रखा। ये अब पुरानी बातें हो गई हैं। पर, उसके लंबे समय तक जेले में रहने पर बेशक सरकार का मोटा खर्चा तो आया होगा।
नागपुर सेंट्रल जेल में याकूब की फांसी की तैयारियों पर करीब 23 लाख रुपये खर्च करके लोहे का एक सुरक्षा कवच तैयार किया गया। इस तरह ये फांसी देश की सबसे महंगी फांसी बन गई। उसके लिए तमाम नामवर वकीलों ने भी पैरवी की। उन्हें किसने फीस दी या नहीं दी, ये महत्वपूर्ण नहीं है। हां, सरकारी वकीलों पर सरकार का कितना खर्च हुआ, ये अहम है। माना जा रहा है कि निचली अदलत से लेकर सुप्रीम कोर्ट में सरकारी खजाने से करीब एक करोड़ रुपये तो खर्च हुआ ही होगा वकीलों की फीस पर।
इससे पहले मुंबई पर 26/11 को हुए हमले में पकड़ा गया पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब जेल में मौज से रहा। कसाब पर उसकी फांसी तक 31 करोड़ रुपये खर्च किए गए। कसाब मुंबई पुलिस के हाथ जिंदा लग गया था। उस दहशतगर्द पर हर रोज करीब लाखों रुपये खर्च होते रहे। जाहिर है, इतनी बड़ी रकम से कई स्कूल खुल सकते थे।
मुंबई अटैक के बेहद अहम गवाह कसाब को आर्थर रोड जेल में रखा गया। यहीं उस पर ट्रायल चला। कसाब के लिए बनाई गई खास जेल पर काफी खर्चा आया। इसे इस तरह डिजाइन किया गया था कि यदि उससे विस्फोटकों से भरा ट्रक भी टकरा जाए तो भी कसाब की सेल को नुकसान नहीं होगा। कसाब की सुरक्षा में भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के 250 गार्ड जेल में तैनात रहते। इस के अलावा कसाब को रखने के लिए बुलेट और बमप्रूफ जेल बनाने में महाराष्ट्र सरकार ने 2 करोड़ रुपये अलग से खर्च किए। कसाब की अहमियत को देखते हुए इस तरह के इतंजाम जरूरी थे।
संसद हमले के गुनहगार अफजल गुरु को फांसी के जेल में रहने और दफनाने तक किन-किन मदों में राजकीय कोष से कितना खर्च किया गया? लखनऊ की आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। लेकिन, राजधानी के तिहाड़ जेल के दफ्तर की तरफ से आरटीआई का जवाब दिया गया कि अफजल गुरु की जेल, फांसी, दफनाने आदि से संबंधित सूचना के प्रगटन से भारत की संप्रभुता, अखंडता को खतरा है।
तिहाड़ जेल प्रशासन का कहना था कि उक्त जानकारी देने से देश की सुरक्षा, विदेशी राज्य के साथ राज्य संबंध, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों को खतरा है। यही नहीं तिहाड़ जेल प्रशासन का कहना था कि उसके पास अफजल गुरु की जेल, फांसी, दफनाने आदि के खर्च की सूचना नहीं है। जेल में कैदी की व्यक्तिगत खर्च की जानकारी नहीं रखी जाती। बहरहाल, उसकी फांसी पर बहुत मोटा खर्चा तो आया ही होगा।
एक बात समझ लेनी चाहिए हमारे इधर लंबी कानूनी प्रक्रिया के चलते ही कसाब से लेकर मेमन जैसे देशद्रोहियों पर इतना सरकारी खजाने से खर्चा हो रहा है। माना जाता है कि भारत में मृत्युदंड के हर केस पर करदाता लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करते हैं। इसी तरह उम्र कैद के केसों में सरकार का खर्चा करोड़ों रुपये बैठता है। बहुत से मामलों में तो सरकार को अभियोग और बचाव दोनों पक्षों के कानूनी खर्च भी उठाने पड़ते हैं। इसी पर यदि कैदी को अपील के लंबे अरसे तक अलग बंदी बना कर रखने का खर्च जोड़ा जाए तो खर्चा कई गुना बढ़ जाता है।
अफसोस होता कि मेमन को फांसी हो या नहीं हो, इस सवाल पर वास्तव में देश बंट सा गया था। देश के जाने-माने लोगों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर याकूब मेमन को फांसी की सजा से बचाने की अपील की थी। हालांकि ये बात समझ से परे है कि मेमन के लिए तो इन खासमखास लोगों के मन में सहानुभूति का भाव पैदा हो गया, पर इन्होंने कभी उन तमाम लोगों के बारे में बात नहीं की जो बेवजह मारे गए थे धमाके में। उनका क्या कसूर था।
इस सवाल का जवाब इन कथित खास लोगों के पास शायद नहीं है। पंजाब में आतंकवाद के दौर को जिन लोगों ने करीब से देखा है, उन्हें याद होगा कि तब भी स्वयंभू मानवाधिकार वादी बिरादरी पुलिस वालों के मारे जाने पर तो शात रहती थी, पर मुठभेड़ में मारे जाने वाले आतंकियों को लेकर स्यापा करने से पीछे नहीं रहती थी। इनको कभी पीड़ित के अधिकार नहीं दिखे। इन्हें मारने वाला हमेशा ही अपना लगा। उसके मानवाधिकार और जनवादी अधिकारों पर ये आंसू बहाते रहे।
बेशक, याकूब मेमन के वकील उसे फांसी से बचाने के लिए देश की न्याय व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करते हैं। उसके वकील लगातार कोर्ट, गवर्नर तथा राष्ट्रपति के पास उसके जीवनदान के लिए अपील करते रहे। उसके वकील लगातार कोर्ट, गवर्नर तथा राष्ट्रपति के पास उसके जीवनदान के लिए अपील करते रहे। कर्नाटक के पूर्व सरकारी वकील एचएस चंद्रमौली ने कहा कि मेमन ने मजाक बनाया। वह बार-बार अपील दायर करके सारे सिस्टम की खिल्ली उड़ाता है। हालांकि बाकि लोगों को इस तरह के अधिकार नहीं मिल पाते। पर मेमन को अपने बचाव के लिए तमाम रास्ते दिए जाते रहे।
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