अंतरिक्ष बाजार में भारत स्तर बढ़ा

अंतरिक्ष बाजार में भारत स्तर बढ़ा
X
ऐसे उपग्रह धरती से निर्देश देने पर किसी खास क्षेत्र की तस्वीरें लेने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से ब्रिटेन के सरे सेटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड (एसएसटीए) द्वारा निर्मित पृथ्वी के खास क्षेत्र पर नजर रखने वाले पांच उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में स्थापित कर नया इतिहास रचा है। ऐसे उपग्रह धरती से निर्देश देने पर किसी खास क्षेत्र की तस्वीरें लेने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। यह कार्य ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान के उन्नत संस्करण पीएसएलवी-सी28 (पीएसएलवी-एक्सएल) के जरिए किया गया। इन पांचों उपग्रहों का कुल वजन लगभग 1440 किलोग्राम है। इसरो के अनुसार यह अभियान एंट्रिक्स/इसरो का अब तक सबसे बड़ा वाणिज्यिक अभियान है। इन्हें 647 किलोमीटर दूर सन सिंक्रोनस ऑर्बिट (एसएसओ) यानी सूर्य तुल्यकालिक कक्षा में स्थापित किया गया। इतने वजन के साथ पीएसएलवी का प्रक्षेपण एक चुनौती थी। अब ब्रिटेन के इन पांच उपग्रहों को मिलाकर उसकी संख्या 45 हो गई है। इस तरह से अंतरिक्ष के एक बड़े बाजार पर उसका कब्जा हो गया है।

दुनिया के रहनुमाओं के लिए मेरे पास पैगाम, सीरियाई बच्चों की अनदेखी कर रही है दुनिया: मलाला

भारत वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण वाला चौथा प्रमुख देश बन गया है। पिछले साल 18 दिसंबर को र्शीहरिकोटा से जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण करने के बाद ही इसरो सबसे भारी उपग्रहों को भी पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में दक्ष हो गया था। इसके साथ ही पृथ्वी के वातावरण में वापसी करने में सक्षम क्रू मॉड्यूल का भी परीक्षण किया था। यह अंतरिक्ष यात्रियों को भी अंतरिक्ष में भेज कर वापस ला सकता है। मॉड्यूल की पृथ्वी पर सफल वापसी से इसरो की ओर से भविष्य में अंतरिक्ष में मानव अभियान को भेजने का रास्ता खुल गया। इसरो ने भू-स्थैतिक कक्षाओं में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए जियो सिंक्रोनस सेटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) को विकसित किया है। यह इसरो का सबसे भारी लांच व्हीकल है। इसमें रूस द्वारा निर्मित क्रायोजेनिक इंजनों का प्रयोग किया जाता है। भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के मामले में विदेशी निर्भरता को समाप्त करने के मकसद से 1990 में जीएसएलवी प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। 2001 में पहली बार इसको लांच किया गया। इसकी मदद से पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) में पांच हजार किलोग्राम तक पेलोड और भू-स्थैतिक ट्रांसफर ऑर्बिट में 2000-2500 किलोग्राम तक के पेलोड प्रक्षेपित किए जा सकते हैं।

छत्तीसगढ़: स्कूल में नशेड़ी गुरुजी बच्चों को पढ़ा रहे हैं यह पाठ, 'द' से दारू- 'प' से पियो

अंतरिक्ष में उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने का काम अमेरिका बहुत पहले से कर रहा है। फ्रांस, रूस और चीन के पास भी यह तकनीक है। मगर अब बहुत सारे देश भारत की तरफ रुख कर रहे हैं तो इसलिए कि यहां उपग्रहों को स्थापित करने का शुल्क दूसरे देशों की तुलना में काफी कम है। फिर पीएसएलवी की भार वहन करने की क्षमता अधिक है। इस तरह इसरो एक साथ कई उपग्रह स्थापित कर पाता है। इस मामले में दुर्घटनाओं या उपग्रहों को क्षति पहुंचाने आदि की शिकायतें भी नहीं मिली हैं। इस तरह भारत उपग्रह प्रक्षेपण कारोबार में दुनिया के अग्रणी देशों की कतार में पहुंच गया है। करीब दस साल पहले तक शिक्षा, प्रतिरक्षा, संचार और सूचना तकनीक से जुड़ी तमाम सुविधाओं के लिए दूसरे देशों से किराए पर उपग्रह सेवाएं ली जाती थीं।

4 साल की मासूम बच्ची से डिलीवरी ब्वॉय ने की छेड़छाड़, आया था पिज्जा डिलीवर करने

अंतरिक्ष में बढ़ती व्यावसायिक संभावनाओं के मद्देनजर इसरो ने सितंबर 1992 में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के व्यावसायिक उद्देश्य के लिए अंतरिक्ष कॉरपोरेशन नामक कंपनी का गठन किया। भारत अब विभिन्न देशों को पीएसएलवी द्वारा 400-450 किलोग्राम के उपग्रहों को प्रेषित करने की पेशकश कर रहा है। इस दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम पीएसएलवी-सी3 द्वारा कोरियाई किटसेट और र्जमन ट्यूबसेट को अंतरिक्ष में स्थापित किया जाना था। इसके बाद पीएसएलवी-सी3 में आईआरएस पी5 के साथ बेल्जियम के 'प्रोच' और र्जमनी के 'बर्ड' को कक्षा में स्थापित किया गया। इसरो ने विश्व प्रसिद्घ अंतरिक्ष पत्रिका स्पेस न्यूज में पीएसएलवी यान पर 'आपका स्वागत है' का विज्ञापन दिया था। साथ ही अपने अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में 30 प्रतिशत कम प्रक्षेपण शुल्क की घोषणा की थी। इसके अलावा जीएसएलवी के सफल परीक्षण के बाद उसके व्यावहारिक उपयोग की कोशिश की जा रही है। इस दिशा में सफलता के साथ ही भारत विभिन्न देशों के समक्ष भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किए जाने वाले उपग्रहों को भी कम समय एवं कम शुल्क पर प्रक्षेपित करने का प्रस्ताव किया था। भारत एवं इजराएल के बीच टोवैक्स उपग्रह को भेजने संबंधी समझौता हुआ है। आईआरएस पी-3 से प्राप्त आंकड़ों के अंतरिक्ष बाजार में विपणन के लिए अमेरिकी कंपनी जीईओ-एसएटी से 10 वर्ष तक अनुबंध किया गया है। साथ ही अन्य सुदूर संवेदी उपग्रहों (आईआरएस) के आंकड़ों को भारत अपने पड़ोसियों के साथ बांटने की क्षमता रखता है। 18 दिसंबर, 2014 को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए गए जीएसएलवी मार्क-3 5000 टन तक के भारी इनसेट उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर सकता है।

दिनदहाड़े रेल में चली गोलियां और अपहरण कर की लूटपाट, घटना से फैली सनसनी

इसरो ने इनसेट-2ई के 11 ट्रांसपोंडरों को इंटेलसेट को बेचकर 10 करोड़ डालर की कमाई की है। इसी के साथ भारत बहुउद्देशीय उपग्रहों के व्यावसायिक उपयोग की दृष्टि से उन्नत देशों की र्शेणी में शामिल हो गया है। इसके साथ ही इसरो इनसेट और आईआरएस र्शेणी के उपग्रहों को बने बनाए बेचने, तकनीक, स्पेयर पार्ट्स, कंसलटेंसी एवं अन्य सूचनाओं को तीसरी दुनिया के देशों के साथ बांटने की क्षमता में और वृद्घि कर रहा है। अब इनका व्यावसायिक उपयोग शुरू हो गया है। जहां तक अंतरिक्ष विकास कार्यक्रम की सामाजिक उपादेयता का प्रश्न है, इसकी उपस्थिति चारों ओर देखी जा सकती है। दूरसंचार क्षेत्र की क्रांति को अंतरिक्ष कार्यक्रम से जोड़कर देखा जा सकता है। इनसेट एवं आईआरएस श्रेणी के उपग्रहों द्वारा दूरदर्शन से लेकर शैक्षणिक विकास कार्यक्रमों तक का नियंत्रण एवं संचरण भारतीय समाज के लिए वरदान साबित हुआ है। काटरेसेट एवं हेमसेट तथा मेटसेट जैसे उपग्रह दैनंदिन आवश्यकताओं को नियंत्रित कर रहे हैं। इसी र्शेणी में एडुसेट का नाम भी लिया जा सकता है जाै शैक्षणिक कार्यक्रमों को सुदूर गांवों तक पहुंचाने में सक्षम हुआ है तथा इससे शिक्षा को बढ़ावा मिला है। नया उपग्रह 'सरल' से सागर के मौसम, विज्ञान और ऋतुओं की सही भविष्यवाणी संभव हो सकी है। अब इसरो जीएसएलवी मार्क-3 से पृथ्वी की कक्षा में भारी उपग्रहों को भी स्थापित कर सकेगा। दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में हम आगे हैं, लेकिन विश्व बाजार में हम बहुत पीछे हैं। यह हमारे राजनेताओं और नागारिक प्रशासन के अधिकारियों की सोच का विषय भी होना चाहिए।

खबरों की अपडेट पाने के लिए लाइक करें हमारे इस फेसबुक पेज को फेसबुक हरिभूमि, हमें फॉलो करें ट्विटर और पिंटरेस्‍ट पर-

और पढ़े: Haryana News | Chhattisgarh News | MP News | Aaj Ka Rashifal | Jokes | Haryana Video News | Haryana News App

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo

Tags

Next Story