नशा के खिलाफ छेडें जंग

नशा के खिलाफ छेडें जंग
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मोदी के अलावा याद नहीं आता कि कभी किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह से देश के आम अवाम से पूछा हो कि किस तरह से लड़ा जाए नशे के बढ़ते दानव से।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम जनता और नशा मुक्ति के क्षेत्र में काम करने वाले एनजीओ से आग्रह किया है कि वह उन्हें सलाह दें कि किस तरह से नशे से लड़ा जा सकता है। याद नहीं आता कि कभी किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह से देश के आम अवाम से पूछा हो कि किस तरह से लड़ा जाए नशे के बढ़ते दानव से। पूरे देश में बढ़ती नशे की लत नौजवानों को महामारी की तरह अपनी चपेट में ले रही है। आप दिन में किसी भी समय राजधानी के दिल कनाट प्लेस में नशाखोरों को सड़क के किनारे या अंडरपास में समूहों में नशा करते हुए देख सकते हैं। इन्हें पुलिस भी कुछ नहीं कहती।

दरअसल, भारत युवाओं के बलबूते दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने का ख्वाब देख रहा है, पर देश के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा नशे की गिरफ्तर में है। अफीम, गांजा, चरस, स्मैक, हेरोइन, कोकीन, एफेड्राइन, मिथाइलिन, डाइआॅक्सी मेथाम्पेटामाइन, रॉहिप्नॉल और एलएसडी जैसी खतरनाक ड्रग्स युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। अगर कोई यह कहे कि पहले या 15-20 साल पहले नशे की लत देश में नहीं थी तो गलता होगा, पर अब तो हालात बेकाबू हो रहे हैं। नशा देश के नौजवानों के एक बड़े हिस्से की जरूरत बनता जा रहा है।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और दिल्ली में ड्रग्स का धंधा करने वालों का एक बहुत बड़ा सिंडिकेट है, जो देर रात शुरू होने वाली पार्टियों में ड्रग्स सप्लाई करता है। दिल्ली के हर बड़े अस्पताल में रोज पांच-छह ऐसे मामले आ रहे हैं, जो ड्रग्स से जुड़े लोगों की बीमारियों के बारे में होते हैं। पंजाब का धुरी शहर। एक जमाने में यह पूरे सूबे या कहे कि उत्तर भारत में अपनी चावल मिलों के कारण मशहूर था। चावल कारोबारी खूब कमा खा रहे थे। उनके पास काम करने वाले भी मौज में थे, पर बीते कुछ सालों से इस शहर की तस्वीर बदल गई है। अब यह शहर हो गया नशेड़ियों का।
धुरी उस पंजाब का शहर है, जिस पंजाब के बारे में स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि इधर के योद्धाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों से जमकर लोहा लिया। अफसोस कि जो प्रदेश कभी अपने लहलहाते खेतों और सरहदों की रखवाली करने वालों के लिए जाना जाता था, अब लड़ रहा है नशे से। एक और उदाहरण लीजिए। नशे की लत लगने से देहरादून के युवा अपराधी बन रहे हैं। नशे की पूर्ति करने के लिए युवा चोरी, चेन स्नेचिंग, लूट जैसी संगीन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
दून में हुक्काबार का चलन तेजी से बढ़ा है। कई बार इन हुक्काबारों से छात्र पकड़े जा चुके हैं, लेकिन पुलिस की ओर से हुक्काबार संचालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। पर यह सूरते-हाल सिर्फ धुरी और देहरादून का ही नहीं है। जानने वाले जानते हैं कि भारत में नशे का सामान पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, नेपाल, चीन और नाइजीरिया से दिल्ली तक पहुंचता है। आपको हर हफ्ते नाइजीरियाई नागरिकों के पुलिस के चंगुल में फंसने की खबरें पढ़ने को मिलती हैं। राजधानी में सैकड़ों नाइजीरिया के नौजवान नशे का धंधा कर रहे हैं।
समझ नहीं आता कि ये किस तरह से भारत में आकर यह सब करने लगते हैं। क्या हमारा कानून इतना लचर है कि हम इन्हें कुछ नहीं कह पाते। जहां तक देश के पूर्वोत्तर भाग की बात है तो नारकोटिक्स विभाग का कहना है कि पूर्वोत्तर में नशीले पदार्थों की सबसे बड़ी खेप म्यांमार से ही आती है। म्यांमार से भारत नशीले पदार्थों की खेप तामु से चलती है जो मणिपुर के छोटे शहर मोरे पहुंचती है, वहां से इंफाल और कोहिमा होते हुए यह ड्रग्स दीमापुर पहुंचती है। पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा ड्रग्स की तस्करी दीमापुर, मणिपुर और नागालैंड के रास्ते से होती है।
भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहां कानूनन अफीम का उत्पादन होता है। कानूनी तौर पर यहां अफीम का इस्तेमाल दवाइयां बनाने आदि में होता है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा गैरकानूनी तरीके से नशे का धंधा करने वालों के हाथ में पहुंच जाता है। जानकारी के अनुसार, राजस्थान में चितौड़गढ़, मध्य प्रदेश में मंदसौर, रतलाम, नीमच, और उत्तर प्रदेश में गाजीपुर में अफीम की खेती होती है।
दरअसल, नशे के धंधे से लड़ने के लिए समाज से लेकर सरकार को मिलकर पहल करनी होगी। सख्त कानून बनाने होंगे। अभी यह लड़ाई पूरी तरह से सफल नहीं हो रही है। अभी केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो (सीबीएन) नशे के खिलाफ चलने वाली तमाम नीतियों को बनाता है। इसका काम नशीले पदार्थों को लेकर बनने वाले कानून को अंतिम रूप देने से लेकर दंड आदि पर कार्य करना है। बेशक,सीबीएन को अपनी लड़ाई को और व्यापक बनाने की जरूत है। अभी उसकी तरफ से की जा रही पहल अधूरी ही लग रही है।
कहने वाले कहते है कि नशे के खिलाफ जंग नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के कुछ अफसरों के निकम्मेपन के कारण सफल नहीं हो रही। उदाहरण स्वरूप साल 2010 में सीबीआई ने लखनऊ में एनसीबी के सुपरिंटेंडेंट स्तर के अधिकारी को एक प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट में तमाम नशे के धंधे से जुड़े लोगों के साथ दबोचा था। दरअसल सीबीआई इस सुपरिंटेंडेंट की करतूतों पर पहले से नजर रखी हुई थी। उस पर आरोप था कि वह नशीली व प्रतिबंधित दवाओं के विक्रेताओं के खिलाफ दर्ज केस को हल्का करने के लिए डील कर रहा था। एनसीबी का यह अधिकारी ब्यूरो के ऑफिस के बाहर ही एक कार में बैठ कर डील कर रहा था। अब इस तरह के अफसरों के साथ तो आप नशे के धंधेबाजों से नहीं लड़ सकते।
आपको याद होगा कि साल 2007 में मुंबई पुलिस ने एक आईपीएस अधिकारी साजी मोहन को ड्रग्स की बड़ी खेप के साथ पकड़ा गया था। गिरफ्तारी के बाद उसने खुलासा किया कि देश के नौ राज्यों में उसका नेटवर्क है। वह इतना शातिर था कि पोम्प्रे और रोहू मछलियों के पेट में हेरोइन और कैमल नाम की कोकीन छिपाकर विदेशों में भेजता था। साजी मोहन द्वारा संचालित ड्रग्स का नेटवर्क अरबों रुपयों का कारोबार कर रहा था। एक बात साफ है कि नशे के कारोबारी बेहद शातिर हैं और नए-नए तरीकों से अपने काम को आगे बढ़ा रहे हैं। अब तो ये गंधहीन और स्वादहीन नशे की गोलियां के निर्माण के लिए देश में ही फैक्ट्रियां चलाने लगे हैं।
बहरहाल, यह समझना होगा कि नशे के खिलाफ लड़ाई में तमाम अवरोध आ रहे हैं और आएंगे। हां, अगर इच्छाशक्ति हो तो हरेक काम हो सकता है। इस लिहाज से प्रधानमंत्री मोदी का जनता से सुझाव मांगना साबित करता है कि अब नशे के खिलाफ लड़ाई के लिए देश तैयार है। क्या इस जंग में आप भी शामिल होंगे?
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