कूटनीति: इंडो-बांग्ला संबंध के नए परिप्रेक्ष्य

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By - Arvind Jaitilak |2 Jun 2015 6:30 PM
बांग्लादेश ने गंगा के पानी के बंटवारे की समस्या को भी वैश्विक मंचों पर उछालने की कोशिश की थी।
चंद रोज बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की यात्रा पर होंगे। इस यात्रा को लेकर दोनों देश उत्साहित हैं। आशा है कि वे आपसी सुझबुझ के जरिए सभी विवादित मुद्दों का हल ढूंढ़ने में कामयाब होंगे। पिछले दिनों भारत ने पहल करते हुए 1974 के जमीनी सीमा समझौते पर मुहर लगा दी। दोनों देशों के लिए उन सभी क्षेत्रों की अदला-बदली का रास्ता साफ हो गया है जहां एक दूसरे के नागरिक रह रहे हैं। यात्रा से पहले मोदी सरकार ने अहम निर्णय लेते हुए शिपिंग और मानव तस्करी के समझौते के मसौदे को हरी झंडी दे दी है। इससे दोनों देशों के बीच समुद्र के रास्ते माल की ढुलाई का रास्ता खुल जाएगा और दोनों देशों के बीच महिलाओं और बच्चों की तस्करी रुकेगी।
दोनों देशों के बीच पेट्रोलियम क्षेत्र में व्यापक समझौते की भी उम्मीद है। इसके तहत म्यांमार से बांग्लादेश होते हुए भारत तक गैस पाइपलाइन बिछाने की परियोजना शीर्ष प्राथमिकता में है। उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों देश इन मसलों के अलावा तीस्ता नदी जल विवाद को निपटाने, अन्य साझा नदियों के जल बंटवारे, पेयजल आपूर्ति, नदियों पर लिफ्ट सिंचाई योजनाओं नदी किनारा संरक्षण, बाढ़ पूर्व सूचना सहयोग और गंगा जल संधि 1996’ के कार्यान्यवन पर भी गहन विचार-विमर्श करेंगे। इनमें तीस्ता नदी जल विवाद सबसे अधिक पेंचीदा है। अगर यह विवाद सुलझ जाता है तो निश्चित रुप से दोनों देशों के तकरीबन 250 मिलियन लोगों का भला होगा। चूंकि दोनों देश कुशलतापूर्वक विवादित गंगा नदी के पानी का बंटवारा करने में सफल रहे हैं ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि तीस्ता नदी जल विवाद का निपटारा भी आसानी से हो जाएगा। भौगोलिक धरातल पर नजर डालें तो तीस्ता नदी सिक्किम से निकलकर भारत के पश्चिम बंगाल से बहती हुई बांग्लादेश जाती है।
बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी बनने से पहले यह पश्चिम बंगाल और सिक्किम को बांटती है। यह भारत व बंगलादेश दोनों की समृद्घि के लिए महत्वपूर्ण है। इसके किनारे पर धान की खेती होती है। विगत वर्षों में दोनों देश सूखे से निपटने के लिए बिना किसी समझौता के ही इस नदी पर बांध बना लिए हैं जिससे तनाव बढ़ा है। भारत ने तीस्ता पर पानी का बहाव नियंत्रित करने के लिए गोजालडोबा बांध निर्मित किया है वहीं बांग्लादेश ने भी दलिया बांध का निर्माण किया है। तीस्ता में अक्टुबर से मार्च के बीच पानी की बेहद कमी रहती है और अगर यह पानी बांग्लादेश को न मिले तो साढ़े सात लाख हेक्टेयर धान की फसल सूख सकती है। बांग्लादेश को आपत्ति है कि सूखे के मौसम में नदी के पानी का बहाव 6 हजार क्यूसेक से भी कम रह जाता है जबकि उसे 8 हजार क्यूसेक पानी की जरुरत होती है। वहीं भारत की दलील है कि उसे इस मौसम में 21 हजार क्यूसेक पानी चाहिए। भारत चाहता है कि तीस्ता का 52 फीसदी जल उसे मिले और शेष 48 फीसदी बांग्लादेश को। जबकि बांग्लादेष का कहना है कि भारत तीस्ता का 20 फीसदी पानी का प्राकृतिक बहाव उसके लिए छोडेÞ और उसके बाद बराबर तरीके से बंटवारा करे। भारत को यह मंजूर नहीं है। गौर करें तो तीस्ता नदी जल बंटवारा विवाद 1950 से उस समय से बना हुआ है जब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था।
हालांकि दोनों देश अस्सी के दशक से ही तीस्ता और फेनी नदियों के अंतरिम जल बंटवारें को लेकर प्रयासरत हैं। लेकिन राजनीतिक वजहों से अभी तक सफलता नहीं मिल पायी है। इसके लिए बांग्लादेश की राजनीतिक परिस्थितियां विशेषकर राजनीतिक उठापटक, तख्तापलट और अव्यवस्था ज्यादा जिम्मेदार रही है। पर आश्चर्य कि बांग्लादेश इस विवाद का समाधान न होने के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता है। बांग्लादेश का यह कहना कि अगर इस विवाद का शीध्र निपटारा नहीं होता है तो वह इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाएगा।
याद होगा बांग्लादेश ने गंगा के पानी के बंटवारे की समस्या को भी वैश्विक मंचों पर उछालने की कोशिश की थी। हालांकि भारत ने बांग्लादेश को इस जल विवाद को अंतरराष्ट्रीय रुप न देने के लिए मना लिया और ढांका एव दिल्ली में वार्तालाप के बाद दोनों देशों के बीच 26 सितंबर 1977 को समझौता हो गया। बेहतर होगा कि दोनों देश तीस्ता नदी जल विवाद के निपटारे के लिए आपसी सुझबुझ का परिचय दें। इसके अलावा दोनों देशों के बीच गंगा-ब्रह्मपुत्र नहर बनाने पर भी मतभेद हैं। बांग्लादेश इसके लिए नेपाल में बड़े-बड़े जलाशय के निर्माण पर बल देकर नेपाल को भी इस समस्या से जोड़ना चाहता है। भारत इसका विरोध करता है। बाढ़ का मुद्दा भी दोनों देशों के बीच विवाद का कारण है। 3200 किमी लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा से बांग्लादेश से आऩे वाले शरणार्थी भारत के लिए समस्या पैदा करते हैं। दोनों देशों के बीच नवमूर लीप को लेकर भी विवाद है। याद होगा अगस्त 1981 में बांगलादेश के आठ युद्धपोतों ने नवमूर लीप पर कब्जा करने का प्रयास किया था। लेकिन भारत ने उसकी मंशा को ध्वस्त कर दिया था। मौजूद समय में इस लीप पर भारत का कब्जा है। लेकिन बांग्लादेश इश मसले को वैश्विक मंचों पर उछालने से बाज नहीं आता है। हालांकि इन सभी मतभेदों के बावजूद दोनों देशों के बीच प्रगाढ़ता बढ़ी हैष दोनों देशों के बीच सहमति है कि वे एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करेंगे औऱ अपने भू क्षेत्रों का घरेलू अथवा विदेशी आतंकवादी कार्यवाहियों के लिए अनुमति नहीं देंगे।
बांग्लादेश ने असम के आतंकवादी नेता राजखोवा को भारत के हवाले कर उदारता का परिचय दिया। बांग्लादेश को भारत से होने वाले निर्यात में बढ़ोत्तरी हो रही है। आज बांग्लादेश भारत की सबसे गतिशील मंडियों में से एक है। भारत ने बांग्लादेश के हित के लिए कई सेक्टरों की वस्तुओं के आयात पर टैरिफ रियायतें दी हैं। दोनों देशों के बीच शीतयुद्धोत्तर युग में एशिया प्रशांत क्षेत्र में पनपते सहयोगों का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अब दोनों देशों को चाहिए कि वे इस सकारात्मक माहौल का लाभ उठाकर द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं विश्वशांति के वृहत दायरे में अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करें।
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