जीवन का स्रोत है गंगा

जीवन का स्रोत है गंगा
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गंगा कोई साधारण नदी नहीं है, वह इस धरती पर सतत प्रवाहमयी चैतन्य की धारा है।

नई दिल्ली. गंगा की सफाई सिर्फ इसलिए ही नहीं होनी चाहिए कि उसका धार्मिक महत्व है बल्कि वह हमारे आपके जीवन का सबसे बड़ा स्रोत है। गंगा की सफाई के मामले की सुनवाई करते हुए एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने नदी के किनारे स्थापित उन उद्योगों का मुद्दा उठाया है जो अपना कचरा उसमें उड़ेल रहे हैं। उसने ऐसे उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई की निगरानी का जिम्मा अब राष्टÑीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) को सौंपा है। गंगा तट के आसपास स्थापित चीनी, चमड़े, कीटनाशक, दवा, कार्बनिक, अकार्बनिक, खाद, ब्लीचिंग, डाइंग एवं वस्त्र, डिस्टलरी और तेल शोधक कारखानों का गंदा पानी और कचरा गंगा में बहा दिया जाता है। बूचड़खानों का भी कचरा गंगा में ही जाता है। बिजली, सीमेंट, वाहन, लोकोमेटिव एवं पेंट उद्योग का भी गंदा पानी गंगा में बहाया जाता है।

ऐसे उद्योगों के खिलाफ राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कोई ठोस कार्रवाई कर पाने में अब तक नाकाम रहे हैं। इसी तरह नगर निकाय सीवर और अन्य गंदे नालों की गदंगी को नदियों में शोधित कर डालने में अब तक नाकाम रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने इनके खिलाफ कार्रवाई का अधिकार एनजीटी को दिया है। वह प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की बिजली काट सकता है और उसे बंद करने का भी आदेश दे सकता है। अब सुप्रीम कोर्ट के अलावा जनता को भी अपनी नदियों की साफ-सफाई की निगरानी करनी चाहिए ताकि प्रदूषणकारी उद्योग धंधों के खिलाफ जनमत तैयार हो ताकि वे अपने गंदे पानी को शोधित कर ही नदियों में बहा सकें।
गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक इसके किनारे बसी हुई तीस करोड़ से अधिक आबादी और तमाम जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों के जीवन का मूल आधार गंगा ही है। गंगा के बिना गंगा की घाटी में जीवन संभव नहीं है, इसलिए इसकी रक्षा, इसे निर्मल बनाये रखने की चिंता और प्रयास जो नहीं करता है वह अपने साथ ही आत्मघात कर रहा है। वेदों से लेकर वेदव्यास तक, वाल्मीकि से लेकर आधुनिक कवियों और साहित्यकारों ने इसका गुणगान किया है। इसका भौगोलिक, पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और साथ-साथ अध्यात्मिक महत्व है।
गंगा कोई साधारण नदी नहीं है, वह इस धरती पर सतत प्रवाहमयी चैतन्य की धारा है। गंगा की उत्पत्ति के अनुसार इसके कई नाम हैं। यह विष्णु के चरण से निकली है इसलिए विष्णुपदी, भगीरथ की तपस्या से उतरी है, इसलिए भागीरथी, जाह्नू की कृपा से मुक्त हुई, इसलिए जाह्नवी और पृथ्वी पर उतरी है इसलिए गंगा कहलाती है। वह इस पृथ्वी पर पत्नी तथा माता के रूप में प्रसिद्घ है। वह शान्तनु की पत्नी और भीष्म की माता भी है। पुराणों में गंगा को लोकमाता कहा गया है। भगवतस्वरूपिणी गंगा का पूजन, कीर्तन और चिन्तन करना और भगवान का पूजन करना एक समान माना गया है। नाना प्रकार की औषधियों एवं स्वास्थ्यवर्द्घक अमृतोपम गुणों से सम्बन्धित इसके जल में स्रान कर प्रसन्नता, तृप्ति, शक्ति-वर्द्घन और स्वास्थ्य के तत्वों को अनायास ही जीव प्राप्त करता रहता है। इसीलिए कोटि-कोटि भारतीयों के लिए गंगा माता है, धरित्री के समान पोषक और अपकर्मों से ऊपर उठाने वाली, धर्म की भांति तत्वधारक तथा परमेश्वर की भांति कैवल्य एवं मोक्ष प्रदाता हैं।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, ‘नदियों में, मैं गंगा हूं। भगवान श्री कृष्ण के इस कथन से गंगा और भगवान में कोई भेद नहीं है। ब्रह्म सिद्घांत के अनुसार गंगा की धारा और जगत के प्रवाह में कोई विशेष अंतर नहीं है। वास्तव में विश्व की विभिन्न रूप-रचनाओं में जो सारस्वत एवं सर्वनिष्ठ सत्ता निवास करती है, उसी ‘एक’ की गति चेतना को गंगा कहा जाता है। भारतीयों के हृदय में गंगा के प्रति इतनी श्रद्घा है कि वे सभी नदियों में गंगा का ही दर्शन करते हैं जैसे तुलसी की घोषणा है कि जगत के सभी नर-नारी सियाराममय हैं वैसे ही मार्कण्डेय पुराण का कहना है कि समुद्र से मिलने वाली सारी नदियां गंगा का ही रूपांतर हैं। वैसे भी जल को जीवन का वायु के बाद दूसरा सबसे बड़ा आधार माना गया है। जल जीवन का पर्याय है अत: समस्त जीवन-धारा को प्रतीकात्मक रूप से गंगा-प्रवाह कहा जाता है।
दुनिया की किसी नदी ने गंगा की भांति न तो मानवता को प्रभावित किया है और न भौतिक सभ्यता तथा सामाजिक नैतिकता पर इतना प्रभाव डाला है। जितने व्यक्तियों और जितने क्षेत्रों को गंगा के जल से लाभ मिलता है, उतना संसार की किसी और नदी से नहीं पहुंचता है। यह वस्तुत: भारतीय संस्कृति का मेरूदण्ड बन गई है।
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