पढ़िए, कैसे रोक सकते हैं बाल विवाह

पढ़िए, कैसे रोक सकते हैं बाल विवाह
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पूरे प्रशासन को इस दिशा में सक्रिय किया तथा कार्यक्रम विकासखंड तहसील तक अलग-अलग स्तरों पर निगरानी समितियों का गठन कर उनकी जिम्मेदारी भी निर्धारित की।
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सन् 1929 में आजादी के पूर्व ही बाल विवाह निरोधक अधिनियम बन गया था तथा 1 अपैल 1930 को शारदा एक्ट के नाम से संपूर्ण देश में यह लागू भी हुआ। लेकिन तब से लेकर शायद किसी भी सरकार ने इसे सख्ती के साथ लागू करने की दिशा में बहुत गंभीर प्रयास नहीं किया है।

अक्षय तृतीया का मुर्हूत हिन्दुओं में शुभ माना जाता है, जिसके फ लस्वरूप पूरे देश में इस तिथि में हजारों- लाखों शादियां संपन्न हो जाती हैं, और यह भी सत्य है कि ऐसे होने वाली शादियों में बड़ी संख्या में बाल विवाह भी होते हैं। मैंने 19 दिसम्बर 2003 में जब राजनांदगांव जिले में कलेक्टर के पद पर कार्यभार ग्रहण किया तो वहां भी स्थिति इससे भिन्न नहीं थी। मैंने इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने का निर्णय लिया।

पूरे प्रशासन को इस दिशा में सक्रिय किया तथा कार्यक्रम विकासखंड तहसील तक अलग-अलग स्तरों पर निगरानी समितियों का गठन कर उनकी जिम्मेदारी भी निर्धारित की। प्रशासन के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर पंचायत प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि विभिन्न समाज एवं जाति के नेतृत्वकर्ता एवं प्रतिनिधि तथा पंचायत राज संस्थाओं को जहां जनजागरण अभियान में सहयोगी बनाया वहीं दूसरी ओर गांव-गांव में बाल विवाह की रस्म संपन्न कराने वाले जिले के समस्त पंडितों पुरोहितोें को भी मैंने स्वयं पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया, कि ऐसे संस्कार संपन्न कराने के पूर्व वे यह अवश्य सुनिश्चित कर लेवें कि लड़के एवं लड़कियों की आयु क्रमश: 21 एवं 18 वर्ष से अधिक हो अन्यथा वे एक अवैधानिक कार्य में भागी होंगे।

साथ- साथ ही जिस वर्ग के हित के लिए यह कार्य एवं अभियान चलाया जा रहा है उसे सामाजिक बुराई के विरूद्ध इस अभियान में शामिल करना जरूरी था और इस उद्देश्य से जिले में 13 से 19 वर्ष की आयु समूह की किशोरी बालिकाओं का 1325 समूहों का गठन कर लगभग 20 हजार बालिकाओं को इससे जोड़ा गया। इन बालिकाओं को ग्राम एवं तहसील स्तर पर प्रोत्साहित कर बाल विवाह की बुराई से अवगत कराते हुए इस कुरीति के विरूद्ध युद्ध का शंखनाद करने हेतु प्रेरित किया गया, तथा इस लड़ाई में सरकार उनके साथ में है इसका अहसास कराया गया।

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उन्हीं दिनों मध्यप्रदेश के धार जिले में शकुंतला नाम की महिला बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर का हाथ बाल विवाह का विरोध करने पर असामाजिक तत्वों द्वारा काट दिया गया था । 24 अप्रैल 2004 को खैरागढ़ तहसील के ग्राम रगरा में ग्राम स्तरीय इकाई द्वारा जिला स्तरीय नियंत्रण कक्ष को यह सूचना दी गयी कि वहां पर 4 नाबालिक बालिकाओं का विवाह जिनकी उम्र 18 वर्ष से कम है, होना तय हुआ है। मैं स्वयं, सीईओ जिला पंचायत एवं एसडीएम के साथ तत्काल गांव में पहुंचा तथा ग्रामसभा में ही चारों बालिकाओं एवं उनके माता-पिता को बुलाकर उनसे चर्चा की, तथा वैधानिक प्रावधानों का उल्लेख कर उक्त सामाजिक बुराई से दूर रहने हेतु समझाइश दिया।

तभी गांव के रोहित के भड़कावे में आकर कुछ लोगों द्वारा ग्रामसभा में अवरोध करने का प्रयास किया गया। तत्काल ग्राम के पुरोहित को गिरफ्तार कर जेल भेजने की कार्यवाही की गयी। यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे जिले में फै ल गयी। खैरागढ़ तहसील में रहने वाली अंजली सिरमौर्य नाम के अनुसूचित जाति वर्ग की एक बालिका ने अभियान के दौरान अवयस्क होने के कारण अपने विवाह के विरूद्ध खुलकर विद्रोह किया था, तथा लड़के वाले जब उन्हें देखने आये थे तब साहस करके शादी न करने की बात उनके सामने कहते हुए न मानने पर अपने माता-पिता को कलेक्टर से मिलकर जेल भेजने की धमकी भी दी, जिससे वर पक्ष के लोग वापस चले गये। अंजली सिरमौर्य को उसके सराहनीय कार्य के लिए मिनीमाता पुरस्कार से शासन ने सम्मानित किया था।

राजनांदगांव जिले में किया गया प्रयास अभूतपूर्व था। राजनांदगांव जिले में चलाये गये अभियान के लिए कलेक्टर के रूप में मेरे अनुभव को साझा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनिसेफ द्वारा मुझे लोकसभा की पार्लियामेंट्री फोरम आॅन युथ के मंच पर आमंत्रित किया गया । जहां 50 वरिष्ठ सांसदों के समक्ष राजनांदगांव के सफ ल प्रयासों के अनुभव की प्रस्तुतिकरण और अनुभवों की साझेदारी की गई।

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