सपनों की दुनिया के आगे, हो सकती है भाजपा की उल्टी गिनती शुरू

सपनों की दुनिया के आगे, हो सकती है भाजपा की उल्टी गिनती शुरू
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लोकसभा चुनाव में भारी विफलता के बाद आम आदमी पार्टी में चारों तरफ निराशा का आलम था।

अरविंद केजरीवाल और उनके संगी साथियों को इतनी बड़ी और ऐतिहासिक जीत की उम्मीद नहीं थी। नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहित भाजपा नेताओं को भी अनुमान नहीं था कि राजधानी में उन्हें इतनी बड़ी शिकस्त का सामना करना पड़ेगा। वह भी लोकसभा चुनाव के आठ-नौ महीने के भीतर। मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों को तो इसका कतई इल्म नहीं था कि जिस आम आदमी पार्टी का लोकसभा चुनाव में लगभग सफाया हो गया था, वह अल्प समय में ही दिल्ली में एकतरफा जीत हासिल करके नया इतिहास रच देगी। जाहिर है, अब तरह-तरह से इन परिणामों के विश्लेषण होंगे। कुछ दिल्ली के नतीजों को भाजपा की उल्टी गिनती बताना शुरू करेंगे तो कुछ को नरेंद्र मोदी और भाजपा नेतृत्व में तमाम तरह की कमियां नजर आनी शुरू हो जाएंगी। बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। जो विपक्षी दल और नेता मोदी की निरंतर विजय यात्रा से भयभीत होते रहे हैं, वे अब केजरीवाल की कामयाबी में अपनी संभावनाएं टटोलने की कोशिश अवश्य करेंगे।

दिल्ली के चुनाव परिणामों को आप संक्षेप में इस तरह समझ सकते हैं। इसे आम आदमी पार्टी की तूफानी जीत माना जा सकता है, जिसमें कांग्रेस का सफाया हो गया है और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के तंबू उखड़ गए हैं। जिस तरह भाजपा का अबकी बार-मोदी सरकार का नारा चल निकला था, उसी प्रकार आम आदमी पार्टी का पांच साल-केजरीवाल नारा क्लिक कर गया, क्योंकि 49 दिन में इस्तीफा देने से केजरीवाल की अच्छी-खासी फजीहत हुई थी। इसे कांग्रेस और भाजपा ने मुद्दा बनाकर उन्हें भगोड़ा साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। केजरीवाल उसके लिए माफी मांगकर राजधानी के मतदाताओं को यह समझाने में सफल रहे कि उन्हें कांग्रेस और भाजपा शासन ही नहीं करने दे रही थी। इस बार पूर्ण बहुमत दें ताकि वे पांच साल तक काम कर सकें। गरीब तबके का वोट तो केजरीवाल की पार्टी को मिला ही, वह अल्पसंख्यकों और भाजपा के वोट बैंक समझे जाने वाले संपन्न वर्ग को भी तोड़ने में कामयाब रहे। हर वर्ग के समर्थन के बिना इतनी बड़ी जीत संभव ही नहीं थी। 2013 के विस चुनाव में भाजपा को बाहरी दिल्ली के मतदाताओं ने खुलकर वोट दिया था। इस बार वह आम आदमी पार्टी की तरफ खिसक गया।
दिल्ली में भाजपा के सारे दांव उल्टे पड़ते चले गए। नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव और उसके बाद चार राज्यों में विधानसभा चुनाव विकास और सुशासन के मुद्दे पर जीते। दिल्ली में प्रधानमंत्री ने बेशक विकास और सुशासन को केंद्र में रखा, परंतु केजरीवाल पर हमले करते समय वह काफी नकारात्मक हो गए। भाजपा के दूसरे नेता भी तीखे हमले बोलते दिखे, जिससे केजरीवाल लोगों की सहानुभूति के पात्र बनते चले गए। शुरू में भाजपा का मन था कि जिस तरह महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में वह बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ी है, उसी तरह का प्रयोग दिल्ली में भी किया जाए, परंतु जगदीश मुखी को प्रचारित कर जिस प्रकार केजरीवाल ने मतदाताओं के बीच भ्रम की खेती लहलहाने के प्रयास किए, उससे भाजपा को रणनीति पर पुर्नविचार करना पड़ा, परंतु अपने स्थापित नेताओं पर किरण बेदी को तरजीह देना और अचानक पार्टी में शामिल करके उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करना भाजपा को काफी महंगा पड़ा।
यह स्वीकार करना पड़ेगा कि दिल्ली के रण को जीतने के लिए कारगर रणनीति बनाने और उसे सफलतापूर्वक जमीन पर उतारने में केजरीवाल और उनकी टीम भाजपा पर भारी पड़ी। केजरीवाल राजधानी के आम आदमी को यह यकीन दिलाने में कामयाब हो गए कि वे उन्हें सस्ती बिजली, सस्ती दरों पर पानी, मुफ्त में वाई-फाई जैसी सुविधाएं उपलब्ध करा देंगे और रसोई के काम आने वाली वस्तुओं के दाम भी नीचे ले आएंगे। वे लोगों को यह समझाने में भी सफल रहे कि पिछले आठ-नौ महीने में मोदी सरकार महंगाई पर काबू पाने में विफल रही है और दिल्ली की महिलाओं को सुरक्षा देने में भी असफल रही है। उनकी सरकार बनी तो महिलाएं सुरक्षित हो जाएंगी।
लोकसभा चुनाव में भारी विफलता के बाद आम आदमी पार्टी में चारों तरफ निराशा का आलम था। पार्टी ने 434 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए थे, जिनमें से 413 की जमानत जब्त हो गई। केवल चार सांसद पंजाब से जीतकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने में सफल हो सके। आम आदमी पार्टी में एक समय ऐसा भी आया, जब भगदड़ सी मच गई।
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