"आप" ये क्या कर रहे हैं, पार्टी में लगातार बढ़ती दरार

आप ये क्या कर रहे हैं, पार्टी में लगातार बढ़ती दरार
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आप में एकदम एकपक्षीय स्थिति नहीं है और असहमति व्यक्त करने की गुंजाइश है पर फैसला वही होगा जो अरविंद केजरीवाल या उनके समर्थक चाहेंगे।
योगेंद्र यादव एवं प्रशांत भूषण को राजनीतिक मामलों की समिति यानी पीएसी से बाहर करने के आधार पर कहा जा सकता है कि आप में एकदम एकपक्षीय स्थिति नहीं है और असहमति व्यक्त करने की गुंजाइश है पर फैसला वही होगा जो अरविंद केजरीवाल या उनके समर्थक चाहेंगे।
आम आदमी पार्टी के दो संस्थापक सदस्यों और शीर्ष नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभानने वाले योगेंद्र यादव एवं प्रशांत भूषण को राजनीतिक मामलों की समिति यानी पीएसी से बाहर करने का अर्थ क्या लगाया जाए? राष्ट्रीय कार्यकारिणी में से 11 सदस्यों ने इनके निष्कासन के पक्ष में मत दिया और 8 ने विपक्ष में। इसके आधार पर कहा जा सकता है कि पार्टी में एकदम एकपक्षीय स्थिति नहीं है और असहमति व्यक्त करने की गुंजाइश है पर इसका दूसरा अर्थ यही है कि असहमति भले कोई व्यक्त करे फैसला वही होगा जो अरविंद केजरीवाल एवं मनीष सिसोदिया या उनके समर्थक चाहेंगे। पार्टियों में मतभेद और पदों से हटाया जाना आदि होता है, लेकिन आम आदमी पार्टी अपने लिए प्रकट रूप में जो मानक प्र्रस्तुत करती रही है यह पूरा प्रकरण उसके विपरीत तस्वीर पेश करता है। अंदर का वातावरण कितना विषैला है और एक दूसरे के प्रति कितना अविश्वास और अनादर का भाव है उसका प्रमाण इनके बयानों और घटनाओं से मिल जाता है। जिस तरह नेताओं के बीच का आपसी द्वेष और निजी राजनीतिक आकांक्षा सामने आया है, आपस में उनने जिन प्रकार के अपमानजनक और निंदनीय शब्दों का प्रयोग किया है उसके बाद भी अगर ये राजनीति में एकमात्र धवल, स्वच्छ, मानक स्थापित करने वाली पार्टी का दाव करते हैं तो फिर इसका कोई उत्तर देने की आवश्यकता नहीं।
हालांकि कार्यकारिणी के दिन सुबह प्रवक्ता आशीष खेतान ने बयान दिया कि उन्होंने प्रशांत भूषण परिवार के बारे में जैसे बयान दिये, वैसे उन्हें नहीं देना चाहिए था। इसके पूर्व खेतान ने ट्विट कर कहा था कि बाप, बेटा और बेटी की तिगड़ी यानी शांति भूषण, प्रशांत भूषण और शालिनी आप पर शिकंजा कस इसे एक परिवार की पार्टी बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन हम ऐसा होने नहीं देंगे? दिल्ली प्रदेश के संयोजक और प्रवक्ता आशुतोष ने कहा कि जो लोग एक व्यक्ति-एक पद की बात कर रहे हैं, उनके परिवार से खुद तीन लोग विभिन्न पदों पर काबिज हैं। प्रशांत भूषण पीएसी में हैं, शांति भूषण विशेष आमंत्रित सदस्य हैं, शालिनी भी पार्टी के एनआरआई चौप्टर को देखती हैं जबकि पार्टी का संविधान कहता है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति पद पर हो सकता है। दिल्ली के सचिव दिलीप पांडे ने शांति भूषण, प्रशांत भूषण और यादव पर केजरीवाल को पद से हटाने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए अनुशासनात्मक समिति को चिट्ठी भेजी और उसकी कॉपी भी सार्वजनिक कर दी। ये तीन तो उदाहरण हैं।
पूरी स्थिति समझने के लिए हमें प्रशांत भूषण तथा योगेंद्र यादव के बयानों को भी देखना होगा। भूषण ने कहा कि उनके अनुसार विवाद इस बात का नहीं है कि किसे राजनीतिक मामलों की समिति यानी पीएसी या राष्ट्रीय कार्यसमिति में रहना चाहिए। मसला मूल सिद्घांतों का है, पारदर्शिता का है और स्वराज का है। इन्हीं सिद्घांतों पर तो आप की नींव रखी गई थी। उनके अनुसार पार्टी में सुप्रीमो संस्कृति का खतरा है। हमने पार्टी इसलिए नहीं बनाई थी कि इसमें हाईकमान संस्कृति बन जाए। जरा योगेंद्र यादव को सुनिए। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि पार्टी में अंदरूनी लोकतंत्र को कैसे मजबूत किया जाए। पार्टी में वोलंटियर्स और समर्थकों की भावनाओं का खयाल रखा जाना चाहिए। मैंने केजरीवाल को कभी संयोजक पद से हटाने की मांग नहीं की थी। हालांकि यादव ने कुछ दिनों पहले कहा था कि फर्जी चंदे का मामला पार्टी पदाधिकारियों के संज्ञान में लाया गया था। इसका विरोध कर रहे गुट से मुद्दे को पार्टी लाइन से बाहर नहीं ले जाने और चुनाव तक शांत बैठने को कह दिया गया था। योगेंद्र के अनुसार आरोपों की जांच के लिए प्रशांत भूषण को नियुक्त भी किया गया था। खुद प्रशांत ने चुनाव तक इस मामले में बयान देने से इनकार कर दिया था। यादव और भूषण दोनों ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी को नोट भेजकर एक नैतिक कमेटी गठित करने का सुझाव दिया था, जिससे चंदे के आरोपों की जांच और निर्णय लेने की प्रक्रिया को लोकतांत्रिक बनाया जा सके। इसमें गलत क्या था? उनको अलग करने का अर्थ यह भी है कि ये सारी बातें पार्टी में नहीं साकार होंगी।
स्वयं अरविंद केजरीवाल के सहयोगी ने जासूसी की। भारत के राजनीतिक इतिहास की पहली घटना है जब एक पार्टी के नेताओं ने पत्रकार का स्टिंग इस कारण कर लिया ताकि वे साबित कर सकें कि योगेंद्र यादव अरविंद के खिलाफ काम कर रहे हैं। बिना केजरीवाल और मनीष की सहमति के ऐसा हुआ होगा? कतई नहीं। अरविंद सर्मथक नेताओं से पूछिए तो उनके पास इसका भी नैतिक और आदर्श जवाब है कि क्या एक पत्रकार को अपना स्रोत बताना चाहिए। अरे, भैया आप उस पत्रकार से पूछ रहे हैं कि आपने ये खबर कैसे लिखी उसमें तथ्य गलत हैं तो उसने बता दिया कि आपकी पार्टी के बड़े नेता योगेंद्र यादव ने बताया। इसे स्रोत बताना कैसे कहते हैं? लेकिन आप के नेताओं का काम करने का यही तरीका है, वे ऐसे उत्तर देते हैं मानो उनमें कोई दोष हो ही नहीं।
चलो आपने योगेंद्र यादव और प्रशांत को किनारे लगा दिया, लेकिन उनने जो प्रश्न उठाए वो तो वाजिब हैं। गलत तरीके से फंड, खर्च का सही हिसाब नहीं, आलाकमान संस्कृति, एक आदमी की चाहत के अनुसार पार्टी की रीति नीति, इसका विरोध करना और बदलने की बात में तो कुछ भी गलत नहीं हैं। पार्टी के लोकपाल एडमिरल रामदास ने भी लोकतंत्र न होने और एक व्यक्ति पर पार्टी के निर्भर होने का पत्र लिखा है। शाजिया इल्मी यही बोलकर पार्टी से अलग हुई थीं कि यहां चांडाल चौकड़ी का हाईकमान है जो किसी को अंदर आने ही नहीं देता। तो यह एक सच है और यही आप के एक दिन राजनीतिक क्षरण और पतन का कारण बनेगा। प्रशांत तो यही पूछ रहे हैं कि स्वराज और अन्य सिद्घांत कहां चले गए? ये स्वाभाविक सवाल हैं। कार्यकारिणी की बैठक से भी अरविंद अनुपस्थित रहे। यानी उन्हें मालूम था कि यह निर्णय करना है तो स्वयं को क्यों भागीदार बनाओ। अरविंद केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा, पार्टी में जो कुछ भी हो रहा है, मैं उससे बहुत दुखी व आहत हूं। अजीब है। तो फिर आपने रोका क्यों नहीं। इसे कोई क्यों सच मान ले। मयंक गांधी ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि अरविंद ने उससे कहा कि अगर योगेंद्र और प्रशांत पीएसी में रहते हैं तो वे संयोजक नहीं रहेंगे। इसके बाद क्या उनकी भूमिका के बारे में कुछ कहने की आवश्यकता रह जाती है?
आप सोचिए जिस पार्टी में एक दूसरे के खिलाफ जासूसी हो रही हो, उसमें एक पत्रकार का स्टिंग कर लिया जाए तो वह पार्टी कैसी खतरनाक और शर्मनाक संस्कृति से ग्रस्त है। आप का जो होगा वह तो अलग बात है, लेकिन यह राजनीतिक चरित्र आतंकित करता है।
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