करेंसी: जाली नोट पर लगेगी रोक

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By - Satish Singh |26 Jun 2015 6:30 PM
2005 से पहले जारी की गई मुद्रा, वैसे करेंसी नोटों को माना गया है, जिसके पिछले भाग में छपाई का साल अंकित नहीं है।
रिर्जव बैंक द्वारा 2005 से पहले जारी करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने की समय-सीमा इस साल के अंत तक समाप्त होने वाली है। इसके बाद 2005 से पहले छपे करेंसी नोट वैध रहेंगे, लेकिन उनका चलन बंद हो जाएगा। केंद्रीय बैंक ने 2005 से नोटों के पिछले भाग में छोटे अक्षरों में उसे जारी करने का वर्ष छापना शुरू किया है। कहा जा रहा है कि ऐसे करेंसी नोटों में सुरक्षा फीचर 2005 के पहले के करेंसी नोटों से बेहतर हैं। बहरहाल, 2005 के पूर्व के करेंसी नोटों की वैधता अगले दिशा-निर्देश के जारी होने तक बनी रहेगी। हां, इस तरह के करेंसी नोटों को बदलने के लिए लोगों को बैंक की शरण में जाना होगा। कहने का तात्पर्य है कि दूकानदार या व्यक्ति ऐसे करेंसी नोटों को लेने से मना कर सकता है, लेकिन बैंक ग्राहकों एवं गैर ग्राहकों से 2005 से पहले जारी करेंसी नोटों को बदलने का काम करते रहेंगे। साथ ही 500 रुपये और 1000 रुपये के 10 से अधिक नोट बदलने के लिए गैर ग्राहकों को करेंसी नोट बदलने वाली शाखा में पहचान प्रमाणपत्र और आवास प्रमाणपत्र जमा करना होगा।
2005 से पहले जारी की गई मुद्रा, वैसे करेंसी नोटों को माना गया है, जिसके पिछले भाग में छपाई का साल अंकित नहीं है। लिहाजा कौन सा करेंसी नोट सकरुलेशन से बाहर किया जाएगा, इसकी पहचान करना बहुत-ही सरल है। मामले में रिर्जव बैंक ने आम जनता से डरने एवं परेशान नहीं होने की अपील की है। केंद्रीय बैंक द्वारा जारी दिशा-निर्देश में कहा गया है कि लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है। लोग सहजता एवं बिना डर-भय के इस बदलाव की प्रक्रिया को सफल बनाने में सरकार की मदद करें।
हालांकि रिर्जव बैंक पहली बार इस तरह का कदम नहीं उठाने जा रहा है। इसके पहले 1978 में जनता पार्टी की सरकार के समय 1000, 5000 और 10000 रुपये के करेंसी नोटों को रिर्जव बैंक ने चलन से बाहर किया था। उल्लेखनीय है कि 1949 में 5000 और 10000 रुपये के करेंसी नोट जारी किए गए थे। उस कालखंड में देश में कालेधन की व्यापकता में जबरदस्त इजाफा हुआ था। अस्तु, यह कदम विशेष तौर पर कालाधन पर नियंत्रण कायम करने के लिए उठाया गया था। बता दें कि रिर्जव बैंक के निर्णय को अमलीजामा पहनाने के क्रम में तब बैंकों में करेंसी नोट वापस करने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगी थीं। लोगों के बीच डर, आशंका और अफवाह का बाजार गर्म था।
बीते सालों देश में नकली करेंसी नोटों के चलन में गुणात्मक वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार की वजह से भी कालेधन में बढ़ोतरी हुई है। इस आलोक में कहा जा सकता है कि सरकार अपने प्रस्तावित कदम की मदद से नकली करेंसी नोटों और कालेधन पर अंकुश लगाना चाहती है। एक अनुमान के अनुसार 2011-12 के दौरान देश में 69.38 करोड़ रुपये के जाली करेंसी नोट चलन में थे। जानकारों की मानें तो 27 अरब रुपये के जाली करेंसी नोट 100 और 500 रुपये के हैं। यह महज एक अनुमान है, जो हकीकत से बहुत ही कम है। नकली करेंसी नोटों की पहचान जरूर थोड़ी मुश्किल है, लेकिन इस दिशा में उम्मीद की किरण यह है कि 2005 के बाद छपी करेंसी नोटों में सुरक्षा के कई नए मानकों, मसलन, मशीन से पढ़े जा सकने वाले सिक्योरिटी थ्रेड, इलेक्ट्रोटाइप वाटर मार्क, प्रकाशन का वर्ष आदि को जोड़ा गया है, जिसकी पहचान से नकली करेंसी नोटों को चलन से बाहर किया जा सकता है। उम्मीद है कि कालांतर में बड़ी संख्या में बड़े करेंसी नोटों के रूप में नकदी का खुलासा होगा। सीएमएस की रिपोर्ट के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में करोड़-अरबों रुपये कालेधन खर्च किए गए थे। कहा जा रहा है कि उक्त चुनाव में खर्च की गई एक तिहाई राशि कालाधन थी। जहां तक नकली करेंसी नोटों के देश में चलन की बात है तो उसका एक अहम हिस्सा पड़ोसी देशों से आता है, जिसके देश में आने की प्रक्रिया एक लंबे अरसे से चल रही है। बावजूद इसके सरकार इस पर काबू पाने में नाकाम रही है। सच कहा जाए तो नकली करेंसी नोटों से निजात पाने के लिए सरकार को अपने खुफिया तंत्र को मजबूत बनाना होगा।
2005 के पहले जारी करेंसी नोटों को सकरुलेशन से वापस लेने वाले रिर्जव बैंक के इस निर्णय को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसे त्रुटिहीन भी नहीं कहा जा सकता। भारत एक विविधतापूर्ण देश है। इस देश के मंदिरों में अरबों-खरबों की नकदी दान में दी जाती है। भारतीय समाज का तानाबाना इस तरह का है कि लोग अभी भी बैंक की जगह घर में नकदी रखने में विश्वास करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की एक बड़ी आबादी आज भी बैंक सुविधा से दूर है। इस संबंध में ग्रामीण क्षेत्रों की हालत बहुत ही दयनीय है। भारत की अधिकांश जनता निरक्षर है तथ वे बैंक के महत्व से अंजान है। देश में नकली करेंसी नोट का चलन और कालाधन जरूर एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन इस पर लगाम लगाने के लिए रिजर्व बैंक के द्वारा करेंसी नोट को चलन से बाहर करना तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है। सीमा रेखा पर चौकसी बढ़ाने, पुलिस को चुस्त-दुरुस्त करने, खुफिया तंत्र को चौकस व काबिल बनाने आदि की कवायद से स्थिति में सुधार आ सकता है।
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