Safety Feature: कार चालकों के लिए ‘अदृश्य आंख’ है ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन, जानें कैसे करती है काम?

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कारों में ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन (BSD) तकनीक बेहद अहम होती है

सड़क सुरक्षा के लिहाज से कारों में ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन (BSD) तकनीक बेहद अहम होती है। यह सिस्टम लेन बदलते समय होने वाली संभावित टक्करों कम करती है।

Safety Feature: ब्लाइंड स्पॉट वे हिस्से होते हैं जो साइड मिरर में दिखाई नहीं देते, खासतौर पर वाहन के दोनों किनारों पर। ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन (BSD) यानी ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन सिस्टम इन्हीं अदृश्य क्षेत्रों पर नजर रखता है। यह तकनीक रडार, कैमरा या अल्ट्रासोनिक सेंसर की मदद से ड्राइवर को सतर्क करती है — कभी मिरर पर लाइट के जरिए, कभी बीप साउंड से, तो कभी स्टीयरिंग में हल्की कंपन (वाइब्रेशन) देकर।

बीएसडी तकनीक कब और कैसे आई

ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन तकनीक पहली बार 2001 में वॉल्वो SCC कॉन्सेप्ट कार में दिखाई दी थी। इसके बाद 2003 में वॉल्वो XC90 SUV में इसका प्रोडक्शन वर्जन लॉन्च हुआ। बाद में फोर्ड ने इसे ब्लाइंड स्पॉट इंफॉर्मेशन सिस्टम (BSIS) नाम से अपनाया। 2007 तक यह तकनीक दुनियाभर में फैल गई और 2022 में यूरोप में नई कारों के लिए अनिवार्य कर दी गई। भारत में यह फीचर 2020 के दशक से तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

क्यों जरूरी है यह फीचर

सड़क सुरक्षा के लिहाज से ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन (BSD) तकनीक बेहद अहम मानी जाती है। यह सिस्टम लेन बदलते समय होने वाली संभावित टक्करों को लगभग 14% तक कम कर देता है, जिससे सड़क पर सुरक्षा का स्तर काफी बढ़ जाता है। कई स्टडी से साबित हुआ है कि बीएसडी से लैस वाहनों में चोट वाली दुर्घटनाओं की संभावना लगभग 23% तक घट जाती है। यह न केवल हादसों से बचाव करता है, बल्कि ड्राइवर को तनावमुक्त और आत्मविश्वास भरी ड्राइविंग का अनुभव भी प्रदान करता है। खासतौर पर बड़े वाहनों में, जिनमें ब्लाइंड स्पॉट अधिक होते हैं, यह तकनीक एक अमूल्य सुरक्षा साधन साबित होती है।

कैसे काम करता है बीएसडी सिस्टम

रडार या कैमरा सेंसर वाहन के रियर बंपर या साइड मिरर में लगे होते हैं। ये सेंसर 3 से 10 मीटर की दूरी तक किसी भी वाहन की मौजूदगी का पता लगाते हैं। जैसे ही कोई वाहन ब्लाइंड स्पॉट में आता है, सेंसर ECU (इंजन कंट्रोल यूनिट) को सिग्नल भेजते हैं। इसके बाद ECU ड्राइवर को विजुअल (लाइट), ऑडियो (बीप) या टैक्टाइल (वाइब्रेशन) अलर्ट देता है। कुछ एडवांस्ड कारों में ब्लाइंड स्पॉट असिस्ट (BSA) सिस्टम होता है, जो खतरे की स्थिति में ऑटोमैटिक ब्रेकिंग या स्टीयरिंग एडजस्टमेंट करता है।

किन गाड़ियों में मिलता है बीएसडी

भारत में 2025 तक 100 से अधिक कारें ब्लाइंड स्पॉट डिटेक्शन सिस्टम से लैस हैं।

एंट्री लेवल मॉडल्स: टाटा नेक्सॉन, टाटा अल्ट्रोज़

मिड-रेंज SUVs: ह्यूंडई क्रेटा, महिंद्रा XUV700, किआ सेल्टॉस, एमजी हेक्टर

लक्ज़री सेगमेंट: ऑडी, बीएमडब्ल्यू, लैंड रोवर डिफेंडर

इन सबमें बीएसडी का असली हीरो होता है — रडार सेंसर।

क्या है रडार सेंसर

रडार का मतलब है Radio Detection and Ranging। यह तकनीक माइक्रोवेव या मिलीमीटर वेव्स (24GHz या 77GHz) के जरिए काम करती है। ये तरंगें किसी वस्तु से टकराकर लौटती हैं, जिससे सिस्टम दूरी, गति और दिशा का पता लगाता है। जिससे यह तकनीक बारिश या कोहरे में भी सटीक स्थिति बताती हैं, क्रैश अवॉइडेंस और पार्किंग में उपयोगी होती है।

हुंडई क्रेटा, टाटा हैरियर, महिंद्रा XUV700, किआ EV6 जैसी कारों में यह सेंसर पहले से मौजूद है। 2025 तक भारत में 50 से अधिक मॉडलों में रडार सेंसर स्टैंडर्ड फीचर के रूप में मिल रहा है।

(मंजू कुमारी)

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