Tyre Industry: आगामी दशकों में भारत में गेमचेंजर होगा टायर उद्योग, ग्रोथ की अनंत संभावनाएं

Indian tyre industry project to reach rs 13 lakh crore by 2047
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रिपोर्ट का अनुमान है कि जब भारत 2047 तक "विकसित भारत" बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ेगा

भारत के 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने तक टायर प्रोडक्शन मौजूदा स्तर से 4 गुना और राजस्व 12 गुना बढ़कर करीब 13 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा।

Tyre Industry: आमतौर पर टायर उद्योग की चर्चा केवल दामों में बढ़ोतरी या कच्चे माल की कमी को लेकर होती है। लेकिन ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ATMA) और प्राइसवाटरहाउस कूपर्स (PwC) की ताज़ा रिपोर्ट इस धारणा को बदल सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले वर्षों में भारत का टायर उद्योग देश की गतिशीलता और विनिर्माण की कहानी का छिपा हुआ नायक बन सकता है।

2047 तक चार गुना उत्पादन, 12 गुना राजस्व

रिपोर्ट का अनुमान है कि जब भारत 2047 तक "विकसित भारत" बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ेगा, तब तक टायर उत्पादन मौजूदा स्तर से चार गुना और राजस्व 12 गुना बढ़कर करीब 13 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। इस सफर में टायर उद्योग सिर्फ घरेलू बाजार पर निर्भर रहने वाला क्षेत्र नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक स्तर का खिलाड़ी बन सकता है। यानी टायर अब केवल वाहनों के पहियों पर लगे रबर नहीं, बल्कि हाई-टेक, टिकाऊ और एक्सपोर्ट-रेडी प्रोडक्ट्स के रूप में सामने आएंगे।

मांग कहां से बढ़ेगी?

  • घरेलू बाजार इस विकास की रीढ़ रहेगा। बढ़ती आय और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च से ऑटो कंपनियों (OEMs) से टायर की मांग तेजी से बढ़ेगी। यात्री वाहन और दोपहिया इस मांग का बड़ा हिस्सा बनेंगे, जबकि ट्रक और कमर्शियल व्हीकल्स इसे और मजबूती देंगे। साथ ही, रिप्लेसमेंट टायर की लगातार बढ़ती मांग राजस्व का स्थिर स्रोत बनी रहेगी। निर्यात भी इस कहानी का गेमचेंजर साबित हो सकता है।
  • रिपोर्ट बताती है कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स और किफायती उत्पादन के दम पर भारत अमेरिका और यूरोप जैसे बड़े बाजारों में अपनी मजबूत पकड़ बना सकता है। रबर से टेक्नोलॉजी तक राजस्व में उछाल सिर्फ टायरों की संख्या बढ़ने से नहीं, बल्कि प्रीमियम और स्मार्ट प्रोडक्ट्स की वजह से भी आएगा।

नई मटीरियल टेक्नोलॉजी

इलेक्ट्रॉनिक्स इंटीग्रेशन जैसे TPMS (टायर प्रेशर मॉनिटरिंग सिस्टम) और प्रोफेशनल फ्लीट सर्विसेज, इन सबके चलते टायर अब सिर्फ "डम्ब रबर" नहीं रहेंगे, बल्कि टेक प्रोडक्ट्स में बदल जाएंगे। फ्लीट ऑपरेटर्स के लिए टायर अब केवल उपभोग की चीज नहीं, बल्कि सर्विस, मैनेजमेंट और हेल्थ-ट्रैकिंग का पैकेज बनेंगे।

सस्टेनेबिलिटी की चुनौती

बढ़ती जिम्मेदारी के साथ उद्योग पर पर्यावरणीय दबाव भी है। प्राकृतिक रबर के विकल्प तलाशना, कार्बन उत्सर्जन कम करना और नई ग्रीन मैन्युफैक्चरिंग तकनीक अपनाना अब ज़रूरी हो गया है। PwC ने इसके लिए "CHARGE फ्रेमवर्क" के तहत इनोवेशन और साझेदारी पर ध्यान देने की सलाह दी है।

आगे का रास्ता

ATMA के अध्यक्ष अरुण मम्मेन का मानना है कि यह उद्योग के लिए "पीढ़ी में एक बार मिलने वाला मौका" है। उनका कहना है कि भारत के ऑटो सेक्टर की मजबूती में टायर अहम भूमिका निभाएंगे। PwC भी मानता है कि ब्रांड बिल्डिंग और टेक्नोलॉजी ही भारत को ग्लोबल मार्केट में टिकाए रखेंगे।

हालांकि, चुनौतियां भी सामने हैं – प्राकृतिक रबर की कमी, नीतिगत अस्थिरता, और अन्य देशों की व्यापारिक बाधाएं इस ग्रोथ को धीमा कर सकती हैं। साथ ही, ईवी और भविष्य की VTOL (उड़ने वाली गाड़ियां) जैसी नई तकनीकें इंडस्ट्री के लिए नई परीक्षा होंगी।

(मंजू कुमारी)

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