योजना आयोग से नीति आयोग तक, योजना पर नीति भारी

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By - ???? ???? |2 Jan 2015 6:30 PM
किसी भी देश के समावेशी विकास के लिए योजना बनाने की जरूरत होती है और यह आमतौर पर एक संस्था की मदद से की जाती है।
किसी भी देश के समावेशी विकास के लिए योजना बनाने की जरूरत होती है और यह आमतौर पर एक संस्था की मदद से की जाती है। इसलिए, स्वतंत्रता के बाद योजना बनाने वाली संस्था की जरूरत समझी गई और योजना आयोग, जो प्रधानमंत्री के निर्देश पर काम करता था, का गठन 15 मार्च, 1950 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता मे किया गया था। योजना आयोग अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं रहा है, क्योंकि 64 सालों के बाद भी देश में आर्थिक विसंगतियां मौजूद हैं। बावजूद इसके, इसकी भूमिका को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है। हालांकि विकास एक सतत् प्रक्रिया है और कूपमंडूकता पिछड़ेपन की परिचायक। इसलिए 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योजना आयोग को भंग करने की बात कही। प्रधानमंत्री का मानना है कि बीते सालों में आर्थिक परिदृश्य में उल्लेखनीय बदलाव आया है, लेकिन भारत में अभी भी बहुत सारे काम पुराने तरीके से हो रहे हैं, जिसके कारण अपेक्षित परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो रहे हैं।
संघात्मक ढांचे में केंद्र की जिम्मेदारी होती है कि वह देश के समावेशी विकास के लिए सभी राज्यों में समुचित विकास को सुनिश्चित करे, लेकिन योजना आयोग बीते सालों से इस कार्य को सुचारू रूप से नहीं कर पा रहा था। ऐसे में एक ऐसे आयोग की जरूरत महसूस की जा रही थी, जो समान रूप से सभी राज्यों को विकास की राह पर आगे लेकर जा सके। इस तरह से देखा जाये तो नीति आयोग बनाने के पीछे मोदी सरकार की मंशा देश का समग्र विकास करना है। अस्तु, कैबिनेट ने योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग के गठन को मंजूरी दे दी। यहां नीति का अर्थ है, नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफोर्मिंग इंडिया (एनआईटीआई)। माना जा रहा है कि नीति आयोग सरकार के पथ प्रदर्शक की तरह काम करेगा। अध्यादेश के मुताबिक अर्थव्यवस्था, जनता और सरकार की बदलती जरूरतों को पूरा करने के लिए नीति आयोग कार्य करेगी। इसका मुख्य काम केंद्र व राज्यों की सक्रिय भागीदार को सुनिश्चित करते हुए विकास की रणनीति, प्राथमिकता एवं राष्ट्रीय स्वप्न की दिशा को तय करना रहेगा। प्रधानमंत्री एवं राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विर्मश करके राष्ट्रीय कायर्सूची तैयार की जायेगी। ग्रामीण व शहरी स्तर तक विकास योजनाओं को तैयार करने में इस संस्था की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
योजना आयोग में अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता था और नीति आयोग का अध्यक्ष भी प्रधानमंत्री रहेंगे। योजना आयोग में क्षेत्रीय परिषदों को महत्व नहीं दिया गया था, लेकिन पिछड़े राज्यों को विशेष आर्थिक पैकेज देने की सिफारिश यह करता था। योजना आयोग में क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों को सलाहकार के रूप में शामिल किया जाता था। इस क्रम में नेशनल एडवाइजरी काउंसिल का गठन किया गया। इसी तर्ज पर नीति आयोग में भी विशेषज्ञों की सेवाएं लेने वाले विकल्प खुले रखे गये हैं। नीति आयोग में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को आमंत्रित सदस्य के रूप में प्रधानमंत्री नामित करेंगे। योजना आयोग में प्रधानमंत्री के निर्देश पर उपाध्यक्ष की नियुक्ति की जाती थी। नीति आयोग में भी उपाध्यक्ष को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे। भारत सरकार का सचिव स्तर का अधिकारी इसमें सदस्यसचिव के तौर पर काम करता था, जबकि नीति आयोग में भारत सरकार का एक सचिव स्तर का अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर काम करेगा। योजना आयोग में सरकारी व गैर सरकारी विशेषज्ञों को सदस्य के तौर पर नामित किया जाता था, जबकि नीति आयोग में कुछ पूर्णकालिक व अधिकतम दो पार्ट टाइम सदस्य भी होंगे, जिनकी नियुक्ति देश के नामचीन विश्वविद्यालयों व संस्थानों से रोटेशन के आधार पर किये जाएंगे। कैबिनेट के अधिकतम चार मंत्रियों को पदेन सदस्य के रूप में नामित किया जायेगा, जबकि योजना आयोग में ऐसा नहीं था।
योजना आयोग का गठन पूंजीवाद, साम्यवाद, उदारवाद आदि विचारधारा को दृष्टिगत करके किया गया था, जबकि नीति आयोग में महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, बीआर अंबेडकर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, तमिल कवि तिरुवल्लूर एवं संत शंकर देव के विचारधारा को समाहित किया गया है। अंबेडकर अधिकारों के केंद्रीकरण के खिलाफ थे, कवि तिरुवल्लूर गरीबी को सबसे बड़ा अभिशाप मानते थे, पंडित दीनदयाल उपाध्याय विकास का फल सभी तक पहुंचाना चाहते थे, असमिया भाषा के मध्यकालीन कवि शंकर देव का कहना था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समेत समाज के सभी वगरें का समावेशी विकास किया जाना चाहिए। नीति आयोग के स्वरूप से साफ तौर पर पता चलता है कि देश की आर्थिक योजना बनाने में अब राज्यों की भूमिका बढ़ेगी। इस आयोग की अध्यक्षता भले ही प्रधानमंत्री करेंगे, लेकिन इसकी गवर्निंग काउंसिल में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नर शामिल रहेंगे। इतना ही नहीं, देश के विविध हिस्सों के विकास व पिछड़ेपन से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए क्षेत्रीय परिषदों का गठन किया जायेगा, जिसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व भी होगा।
योजना बोर्ड और सोवियत संघ के समाजवादी मॉडल से प्रभावित होकर योजना आयोग का गठन किया गया था। निश्चित रूप से नीति निर्माण और राज्यों को वित्तीय संसाधनों के आवंटन में योजना आयोग पिछले 64 सालों से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा था। फिर भी नीति आयोग के गठन की मंशा को गलत नहीं ठहराया जा सकता है। इस आयोग का उद्देश्य भी नीति निर्माण, केंद्र व राज्य सरकारों को सही दिशा दिखाना, एजेंडा तय करना एवं उन्हें कार्य रूप देने के लिए सतत् प्रयास करना है। इन समानताओं के बावजूद नीति आयोग की संकल्पना को अनेक मायनों में अलग कहा जा सकता है, जैसे, समकालीन आर्थिक चुनौतियों व अवसरों को ध्यान में रखना, विकास को सुनिश्चित करने के लिए राज्यों व क्षेत्रीय परिषदों को तरजीह देना, संघीय ढांचे को मजबूत करने के लिए प्रयास करना, केंद्रीय मंत्रियों की विशेष भूमिका सुनिश्चित करना आदि।
नीति आयोग में जिस तरह से राज्यों की सक्रिय भूमिका को सुनिश्चित करने की कोशिश की गई है, उसे सकारात्मक पहल माना जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद जाहिर की है कि यह आयोग हर व्यक्ति तक विकास का लाभ सुनिश्चित करते हुए भारत के समग्र विकास को सुनिश्चित करने में सफल रहेगा। हालांकि उम्मीदों व कोशिशों के बाद भी नीति आयोग की प्रासंगिकता को साबित करना मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
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