Delhi ki Kahani: दिल्ली की शान है हरिनगर का घंटाघर, नवाबों से अंग्रेजों तक के शासन का रहा गवाह
Delhi ki Kahani: पश्चिमी दिल्ली का लैंडमार्क कहा जाने वाला हरिनगर घंटाघर, स्थानीय लोगों के साथ ही बाहरी लोगों के बीच भी अपनी अलग पहचान रखता है। ऐतिहासिक रूप से भी इस घंटाघर का खास महत्व है। आइए जानते हैं...
हरि नगर घंटा घर
Delhi ki Kahani: अगर आप दिल्ली के रहने वाले हैं, तो आपने हरिनगर घंटाघर के बारे में जरूर सुना होगा। इसकी कहानी अब समय के पन्नों में गायब हो गई है। दूर से देखने पर घंटाघर एक साधारण सा टॉवर लगता है, लेकिन यह दिल्ली के बदलते दौर की कहानियों को समेटे हुए है। इसका इतिहास बेहद रोचक और आकर्षक है, आइए जानते हैं पूरी कहानी...
हरिनगर के घंटाघर का निर्माण 1950 में हुआ था। यह समय बताने के साथ-साथ दिल्ली के बदलते रंगों की कहानी भी बयां करता है। हरिनगर घंटाघर के बारे में आरवी स्मिथ ने अपनी एक किताब 'दिल्ली- अननोन टेल्स ऑफ ए सिटी' में बताया है कि इस घंटाघर को बनवाने वाले तो गुजर गए, परन्तु उनकी विरासत आज भी जिंदा है।
घंटाघर का निर्माण स्वरूप लाल दीवान ने करवाया था, जो हरिराम के बेटे थे। आज भी स्वरूप लाल के बेटे पुश्तैनी बंगले में रहते हैं, जिनका नाम श्याम गोपाल है। उनका यह पुश्तैनी बंगला हरे-भरे खेतों के बीच बेरीवाला बाग में 1906 में बनवाया गया था। हालांकि अब ऐसा कुछ नहीं है, बेरीवाला बाग केवल नाममात्र का रह गया है। इस बाग की जगह पर फ्लैट्स, जिम, और सुलभ शौचालय बन चुके हैं। पहले इस बंगले के आगे खूंखार कुत्तों की चेतावनी देने के लिए एक तख्ती लटकी रहती थी, जो अब गायब हो चुकी है। मगर बंगले की मोटी-मोटी दीवार अपने पुराने दौर की कहानी बयां करती हैं।
नवाबों की विरासत पर अब दिल्ली की कई बड़ी कॉलोनियां बन गई हैं। इन कॉलोनी के नाम तिलक नगर, राजेंद्र नगर, स्वरूप नगर, अशोक नगर सुभाष नगर, श्याम पार्क, और अजय एन्क्लेव हैं। इसके अलावा तिहाड़ जेल, डीडीयू अस्पताल, हरिनगर और अर्चना सिनेमा नवाबों की जमीन पर बनाए हुए हैं। हां, यह बात अलग है कि दीवान परिवार अब भी हरिनगर की जमीन पर अपनी गहरी जड़ जमाए हुए है।
एक समय था जब घंटाघर की घड़ियां ब्रिटेन से मंगवाई जाती थीं। मगर अब ये घड़ियां हैदराबाद से मगवाई जाती हैं। अब घंटाघर की सुरक्षा के लिए इसके तहखाने में एक चौकीदार और उसका परिवार रहता है। इस परिवार की देखरेख में ये घंटाघर दूर से दिखाई ही देता है, जो पीले रंग से रंगा हुआ है। हरिनगर घंटाघर न केवल एक ऐतिहासिक स्मारक है बल्कि बदलते समय की एक निशानी भी है। एक समय पर इसके आस-पास जंगल और खेत हुआ करते थे। लेकिन उनकी जगह आज आधुनिकता की चकाचौंध ने घेर ली। आज भी ये घंटाघर दिल्ली और एक परिवार की गौरवमयी विरासत का हिस्सा है और चीख-चीखकर अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है।