'कर्म' ने छुड़ा दिया 'जन्मभूमि' का मोह : छत्तीसगढ़िया संस्कृति और कला को दीवारों पर उकेरते हैं मिंटू माझी

राजधानी रायपुर के महावीर नगर निवासी मिंटू मांझी ने अपनी जन्मभूमि कोलकाता से दूर रहते हुए छत्तीसगढ़ को अपनी कर्मभूमि बना लिया है। 

Updated On 2024-08-14 13:32:00 IST
छत्तीसगढ़िया संस्कृति और कला को दीवारों पर उकेरते हैं मिंटू माझी

दामिनी बंजारे- रायपुर। 10 साल की उम्र में एक बच्चे ने कला के क्षेत्र में कॅरियर बनाने का सपना देखा। जब वह मिट्टी को हाथ में लेता तो नई कलाकृतियों का चित्त में उदय होता। इसी हुनर को तराशते हुए अब उसने अपनी एक अलग ही पहचान बना ली है। यहां हम बात कर रहे हैं राजधानी रायपुर के महावीर नगर निवासी मिंटू मांझी की। मिंटू ने अपनी जन्मभूमि कोलकाता से दूर रहते हुए छत्तीसगढ़ को अपनी कर्मभूमि बना लिया है। उसकी छत्तीसगढ़ के प्रति लगन ने उसे कभी अपनी जन्मभूमि वापस लौटने के बारे में सोचने तक का मौका नहीं दिया। आज वह छत्तीसगढ़ के लोगों को कला से जोड़कर रोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रहे हैं। लोग न केवल उनके साथ काम कर रहे हैं, बल्कि इस नई कला को सीखने में भी रुचि दिखा रहे हैं।

'हरिभूमि से खास बातचीत' में मिंटू मांझी बताते हैं कि जब वे छठवीं कक्षा में थे, तबसे ही उनकी रुचि कला में थी। मिट्टी को देखकर उनके मन में हमेशा नई-नई कलाकृतियां बनाने के विचार उत्पन्न होने लगते थे। बचपन में ही उन्होंने कई कलाकृतियों का निर्माण किया। उन्होंने कोलकाता की गलियों में घूम-घूमकर कला का अध्ययन किया और उसके बाद छत्तीसगढ़ के इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ में पढ़ाई करने के लिए अपना रुख किया।

बचपन से कला और संस्कृति में रुचि

मिंटू मांझी का जन्म भारतीय साहित्यिक और कलात्मक विचारों और भारतीय राष्ट्रवाद के जन्मस्थान कोलकाता के समीप एक छोटे से गांव में हुआ। बचपन से ही उनकी रुचि कला और संस्कृति की ओर रही। उन्होंने अपने इस शौक को पूरा करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त की और आज कई लोगों को इस कला में निपुण बना रहे हैं। सीमेंट आर्ट के माध्यम से उन्होंने छत्तीसगढ़ की संस्कृति को सहेजने का काम किया है।

नहीं कर पाए 32 हजार की नौकरी

मिंटू को आर्ट टीचर के रूप में कवर्धा के एक स्कूल में नौकरी करने का मौका मिला, लेकिन उन्होंने अपनी कला के काम को फैलाने का निर्णय लिया और केवल एक हफ्ते में ही वह नौकरी छोड़ दी। वहां उन्हें 32 हजार रुपए की सैलरी ऑफर की गई थी। आज उनके साथ लगभग 18 से 20 लोग काम कर रहे हैं, जिनमें से चार बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स के छात्र हैं। ये सभी रोजाना 700 रुपए से अधिक कमाई कर रहे हैं।

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