स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: 'हृदय जितना सरल होगा, प्रभु उतने निकट होंगे'

Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में आज जानिए आत्मा की एक ऐसी दिव्य दीप्ति के बारे में, जो निर्मल, निष्कलंक, निष्कपट है।

Updated On 2025-05-14 12:12:00 IST

स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन

swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य जी ने कहा है- 'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।' परन्तु उस ‘सत्य’ की अनुभूति उसी को होती है, जिसने भीतर की उलझनों, बनावटीपन और आत्म-प्रदर्शन से स्वयं को उबार लिया हो। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में आज जानिए आत्मा की एक ऐसी दिव्य दीप्ति के बारे में, जो निर्मल, निष्कलंक, निष्कपट है।

जीवन के इस नश्वर नाट्य-मंच पर मनुष्य अनेक वेश धारण करता है-कभी प्रभावशाली, कभी पदार्थ सम्पन्न , कभी भव्य, कभी रहस्यमय। वह अपने बाह्य अस्तित्व को सजाने-संवारने में इतना रत हो जाता है कि अंतःकरण की सौम्यता, सरलता और सहृदयता से दूर होता जाता है। परन्तु इस समूची बाह्य शोभा में भी यदि कोई गुण ईश्वर के नेत्रों में ठहरता है, तो वह है- सरलता।

सरलता, कोई सामान्य गुण नहीं; यह आत्मा की एक दिव्य दीप्ति है-एक विशुद्ध आध्यात्मिक भाव, जो जीवन को निर्मल बनाता है। यह वह गुण है, जहां वाणी मौन बन जाती है, और मौन स्वयं वाणी बन प्रभु तक पहुंचता है। जो सरल है, वह सहज है; जो सहज है, वही सत्य है; और जहां सत्य है, वहां प्रभु स्वयं निवास करते हैं।

भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य जी ने कहा है-
'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म।' परन्तु उस ‘सत्य’ की अनुभूति उसी को होती है, जिसने भीतर की उलझनों, बनावटीपन और आत्म-प्रदर्शन से स्वयं को उबार लिया हो। सरलता, आत्मा का वह स्वभाव है, जहां न कोई छल है, न कोई कलुष; केवल प्रार्थना है- निर्मल, निष्कलंक, निष्कपट।

आज हम अपने अस्तित्व को दूसरों की अपेक्षाओं, मानकों और प्रभावों में ढालने में लगे हैं। हम अपने चारों ओर आकर्षण का कृत्रिम आभामण्डल खड़ा करते हैं। मानो, दूसरों को आकर्षित करना ही आत्म-विकास का प्रमाण हो। पर यह सजावट आत्मा को असहज बनाती है और सहजता से दूर करती है।

सरलता में न कोई प्रदर्शन है, न कोई प्रयत्न- वह तो आत्मा का सहज पुष्प है, जो स्वयं खिलता है और अपनी अनगिनत सुगन्ध से वातावरण को सुवासित कर देता है। जो सरल है, उसमें सत्य का आलोक स्वाभाविक रूप से झलकता है। उसकी दृष्टि निर्दोष होती है, उसका स्पर्श शीतल होता है, उसकी वाणी जलधारा की भांति शान्त होती है। वह दूसरों को प्रभावित नहीं करता, वरन् उनके हृदयों में आत्मीयता का संचार करता है।

भगवत्प्राप्ति का पथ कोई महान प्रयोगशाला नहीं- वह तो सरल, शान्त और निष्कलुष मार्ग है। वहां नाटक नहीं चलता, वहां केवल सच्चाई की मांग होती है। अतः हृदय जितना सरल, प्रभु उतने निकट।

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