स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: कछुआ केवल एक प्राणी नहीं, बल्कि जीवन दृष्टि का प्रतीक है
Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए 'विश्व कछुआ दिवस' पर विशेष।
स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
swami avadheshanand giri Jeevan Darshan: कछुए का महत्त्व केवल जीव-विज्ञान या पारिस्थितिकी तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भारत की पवित्र परम्पराओं और धर्मशास्त्रों में भी प्रतिष्ठित स्थान रखता है। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए 'विश्व कछुआ दिवस' पर विशेष।
प्रकृति के अद्भुत जीवों में से एक कछुआ न केवल जैव विविधता का एक अनमोल अंग है, अपितु वह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और पर्यावरणीय संतुलन का प्रतीक भी है। यह सरीसृप प्राणी 'टेस्टुडिनिस' उपवर्ग के अंतर्गत आता है और पृथ्वी पर प्राचीनतम जीवों में इसकी गणना होती है। 'विश्व कछुआ दिवस', जो प्रतिवर्ष 23 मई को मनाया जाता है, हमें इस मौन किन्तु अत्यन्त उपयोगी प्राणी की रक्षा हेतु सजग रहने का सन्देश देता है।
कछुए का महत्त्व केवल जीव-विज्ञान या पारिस्थितिकी तक सीमित नहीं है, बल्कि वह भारत की पवित्र परम्पराओं और धर्मशास्त्रों में भी प्रतिष्ठित स्थान रखता है। संस्कृत में कछुए को 'कूर्म' कहा गया है। भगवान नारायण के दस अवतारों में से एक- कूर्मावतार, इसी रूप में हुआ था, जिसमें भगवान ने मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण कर समुद्र मन्थन की प्रक्रिया को सफल बनाया। यह प्रतीकात्मक कथा बताती है कि धैर्य, स्थिरता और संतुलन जैसे गुणों को जीवन में अपनाकर ही महान उद्देश्यों की सिद्धि सम्भव है। अतः कछुआ केवल एक प्राणी नहीं, बल्कि जीवन दृष्टि का प्रतीक है।
पर्यावरणीय दृष्टि से कछुए की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। जल, जो जीवन का मूल आधार है, उसकी स्वच्छता और गुणवत्ता को बनाए रखने में कछुए का योगदान अविस्मरणीय है। यह जलाशयों में अनियंत्रित शैवाल वृद्धि को रोकते हैं, जिससे पानी का पारिस्थितिक संतुलन बना रहता है। साथ ही, कछुए कुछ विशिष्ट पौधों और कवकों के बीज और बीजाणुओं के प्रसार में भी सहायता करते हैं, जिससे पारिस्थितिक विविधता बनी रहती है।
मृदा संरक्षण में भी कछुए की भूमिका कम नहीं है। भूमि की उर्वरता और संरचना को स्थिर बनाए रखने में वे अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त, समुद्री कछुए तो पूरे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक आधार स्तम्भ के समान हैं- जिनकी उपस्थिति कई अन्य प्रजातियों के अस्तित्व से जुड़ी है।
दुर्भाग्यवश, पर्यावरणीय असंतुलन, मानव जनित प्रदूषण और अवैध शिकार जैसे कारणों से कछुए की अनेक प्रजातियाँ आज लुप्तप्राय हो चुकी हैं। जो कुछ शेष हैं, उनका संरक्षण मानव समाज के लिए न केवल एक नैतिक दायित्व है, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन की दृष्टि से भी अनिवार्य है।
आज जब हम 'विश्व कछुआ दिवस' मना रहे हैं, तो यह केवल एक औपचारिकता न होकर एक संकल्प बनना चाहिए- हम सब मिलकर इस मौन संरक्षक की रक्षा करें, ताकि प्रकृति की धड़कनें अनवरत् बनी रहें।
कछुए का जीवन हमें यह सिखाता है कि धीरे चलना भी जीत की ओर ले जा सकता है, यदि दिशा सही हो और धैर्य बना रहे। यह जीव हमें पर्यावरण, जीवन-दर्शन और अध्यात्म का ऐसा पाठ पढ़ाता है जिसे मानवता ने यदि समझ लिया, तो न केवल प्रकृति बचेगी, बल्कि भविष्य भी सुरक्षित होगा।
आइये ! इस 'विश्व कछुआ दिवस' पर हम यह प्रतिज्ञा करें कि इस प्राचीन, शान्त, और उपयोगी जीव की रक्षा के लिए हम सदैव सजग और समर्पित रहेंगे।