स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: शान्ति, सत्य और कल्याण का मार्ग क्या है?
स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए 'भगवदीय मार्ग' के बारे में।
स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
swami avadheshanand giri jeevan darshan: 'भगवान सबके हैं'- यह विचार न केवल दार्शनिक सत्य है, अपितु मानवता के लिए गहरी अपनत्व भावना का सन्देश भी है। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए 'भगवदीय मार्ग' के बारे में।
संसार एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है, जिसमें प्रत्येक प्राणी को अपने जीवन की सार्थकता खोजनी होती है। इस यात्रा में ईश्वर ही हमारा एकमात्र आश्रय और पथप्रदर्शक हैं। 'भगवान सबके हैं'- यह विचार न केवल दार्शनिक सत्य है, अपितु मानवता के लिए गहरी अपनत्व भावना का सन्देश भी है। जगत के प्रत्येक जीव में जगन्नाथ का अंश समाहित है और उनका भाव- अपनत्व, औदार्य, अनुग्रह एवं करूणा से परिपूर्ण है। इसलिए भगवदीय विधान न केवल सर्व-सिद्धिप्रद है, बल्कि सर्व-हितकारी भी है।
परमार्थ की सिद्धि के लिए मनुष्य को चाहिए कि वह निर्भय, निशंक और अनन्याश्रित होकर भगवद्भक्ति में रत रहे। ऐसे पथिक का मन सत्संग और स्वाध्याय के माध्यम से शुद्ध होता है। सत्संग, जो कि सज्जनों की संगति है, व्यक्ति के जीवन को न केवल दिशा देता है, अपितु उसे आत्म-कल्याण की ओर अग्रसर करता है। स्वाध्याय, जो शास्त्रों का अध्ययन है, मन में विवेक उत्पन्न करता है और दैवीय गुणों की स्थापना करता है। इन दो माध्यमों से मनुष्य सहज ही भगवान की कृपा और करुणा का अधिकारी बन जाता है।
जीवन में हम जाने-अनजाने अनेक पाप करते हैं। इनसे मुक्त होने का एकमात्र उपाय है- ईश्वर के समक्ष पश्चाताप और प्रायश्चित। यह भाव हमारे भीतर विनम्रता और जागरूकता का संचार करता है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति क्रोध, लोभ, मोह और हिंसा जैसे आसुरी प्रवृत्तियों का त्याग कर, विवेकपूर्ण जीवन जीयें, क्योंकि धर्म का मार्ग ही शान्ति, सत्य और कल्याण का मार्ग है। अधर्म, यद्यपि कुछ समय के लिए आकर्षक और फलदायी प्रतीत हो सकता है, परन्तु उसका प्रभाव दीर्घकालिक कष्ट और बन्धनों की ओर ले जाता है।
भगवत्स्मरण की महिमा अपरंपार है। यह न केवल हमारे चित्त को शुद्ध करता है, बल्कि हमें परम शान्ति की अनुभूति भी कराता है। जिनके हृदय में भगवान का वास होता है, और जिनकी बुद्धि निश्चयात्मक हो जाती है, उनका कोई अनिष्ट नहीं कर सकता। वे जीवन की हर परिस्थिति में समत्व भाव बनाए रखते हैं- न उन्हें सुख विचलित करता है, न दुःख। न मान से गर्व होता है, न अपमान से हीनता का अनुभव।
यह भी समझना आवश्यक है कि यह समस्त सृष्टि ईश्वर का ही साकार स्वरूप है। वह प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक प्राणी में व्याप्त हैं। अतः किसी में भेद करना, किसी धर्म, मत या वैदिक विचारों की निन्दा करना अत्यन्त अनुचित है। सभी नाम, रूप और पंथ अंततः उसी एक परम सत्य की ओर ले जाते हैं। इसलिए शास्त्रों का सम्मान करना और सद्गुरु एवं ज्ञानीजनों के प्रति श्रद्धा रखना आध्यात्मिक प्रगति के लिए अनिवार्य है।
सद्गुरु ही वे दिव्य सन्मार्ग-दर्शक हैं, जो हमें ईश्वरीय आज्ञाओं से परिचित कराते हैं और उन्हें जीवन में आत्मसात करने की प्रेरणा देते हैं। जो व्यक्ति उनके द्वारा स्थापित सेवा कार्यों में सहभागी बनता है, और धर्म की रक्षा हेतु कष्ट सहते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन करता है, वह न केवल स्वयं मोक्ष प्राप्त करता है, बल्कि उसकी अनेक पीढ़ियां भी भवसागर से पार हो जाती हैं।
अतः यह आवश्यक है कि हम धर्म के पुण्य कार्यों में भाग लें, सेवा और सहयोग को जीवन का अभिन्न अंग बनाएं। इससे न केवल हमें ईश्वरीय सामर्थ्य का अनुभव होगा, बल्कि हमारे जीवन में आलोक, प्रेम और आनन्द की सतत् धारा प्रवाहित होगी। यही भगवदीय मार्ग है- जो सत्संग से आरंभ होता है, सेवा में विकसित होता है और समत्व में पूर्ण होता है।