स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन: भारतीय सनातन संस्कृति का मूल स्वर है सेवा...ये भाव भगवान को भी अत्यंत प्रिय
Jeevan Darshan: जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए सेवा भाव के बारे में।
स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन
Jeevan Darshan: भगवान स्वयं उदार हैं, और सेवा का भाव उन्हें अत्यन्त प्रिय है। यही कारण है कि सेवा, परमार्थ, परोपकार और औदार्य जैसे गुण जीवन को दिव्यता की ओर ले जाते हैं। जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में आज पढ़िए सेवा भाव के बारे में।
मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार, दुःखों की निवृत्ति और परमात्मा की प्राप्ति है। यह कोई नवीन विचार नहीं, अपितु अनादि काल से ही यह आध्यात्मिक जिज्ञासा मानव की चेतना का मूल आधार रही है। जीवन की इस दिशा में सार्थक यात्रा तभी सम्भव है, जब हम सत्कर्मों का आश्रय लें। नि:स्वार्थ सेवा, दान, सत्याचरण और यज्ञ जैसे शुभ कर्म न केवल हमारी आत्मा को उज्जवल बनाते हैं, बल्कि समष्टि की भी उन्नति करते हैं।
श्रीमद्भागवत में कहा गया है- 'जन्मान्तरे भवेत् पुण्यं तदा भागवतं लभेत्', अर्थात् शुभ कर्मों की प्रेरणा भी कोटि-कोटि जन्मों के पुण्य की फलश्रुति है। जब किसी व्यक्ति के अंतःकरण में सत्कर्मों की भावना जागृत होती है, तो वह क्षण धन्य होता है। ये शुभ कर्म ही मानव जीवन को अर्थपूर्ण बनाते हैं और आत्म-उद्धार का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
हमारे द्वारा किए गए शुभ अथवा अशुभ कर्म ही हमारे जीवन में सुख-दुःख की फसल उगाते हैं। इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी हमें न तो दु:खी होना चाहिए और न ही विचलित। सुख और दुःख क्षणिक होते हैं, परन्तु सत्संग और सत्कर्म जीवन की दिशा और दशा दोनों को परिवर्तित कर सकते हैं। सत्संग से प्रेरित होकर जब हम शुभ कर्मों की ओर उन्मुख होते हैं, तब हमारा जीवन परम आनन्द और सौन्दर्य से भर उठता है।
सेवा, भारतीय सनातन संस्कृति का मूल स्वर है। यह एक ऐसी मूक साधना है, जिसमें व्यक्ति अपने श्रम, समय और ऊर्जा को निराभिमान भाव से लोकहित के लिए समर्पित करता है। भगवान स्वयं उदार हैं, और सेवा का भाव उन्हें अत्यन्त प्रिय है। यही कारण है कि सेवा, परमार्थ, परोपकार और औदार्य जैसे गुण जीवन को दिव्यता की ओर ले जाते हैं। जब हमारे भीतर शुभ और लोक-कल्याणकारी विचारों का उद्भव होता है, तब हमारा परिवेश भी सौन्दर्य, माधुर्य और समरसता से आपूरित हो जाता है।
जब कोई व्यक्ति शुभ कर्मों के पथ पर अग्रसर होता है, तो उसका प्रभाव केवल व्यक्तिगत नहीं रहता, वह समाज के लिए भी प्रेरणादायक बनता है। ऐसे कर्मों से सामाजिक सद्भाव, करुणा और नैतिकता को बल मिलता है। एक व्यक्ति का जागरण, सम्पूर्ण समाज के रूपांतरण का कारण बन सकता है।
जीवन को दिव्यता की ओर ले जाने का मार्ग कोई दूरस्थ या कठिन लक्ष्य नहीं है। यह मार्ग हमारे शुभ संकल्पों, सत्कर्मों, सेवा और सत्याचरण में ही निहित है। आवश्यकता है तो बस इस दिशा में पहला कदम बढ़ाने की। आइये ! हम सब मिलकर शुभ कर्मों का आश्रय लें और अपने जीवन को दिव्य चेतना से प्रकाशित करें। यही मानव जीवन की सार्थकता है।