जीवन दर्शन: मुण्डकोपनिषद् का दिव्य मंत्र- सृष्टि, ब्रह्म और अद्वैत का रहस्य

मुण्डकोपनिषद् का यह मंत्र ब्रह्म की सृजनात्मक शक्ति, अद्वैत वेदान्त और आत्म-बोध का गहन चित्रण करता है। जानिए स्वामी अवधेशानंद गिरि जी के 'जीवन दर्शन' स्तम्भ में इसका साहित्यिक व दार्शनिक विश्लेषण।

Updated On 2025-06-05 13:53:00 IST

स्वामी अवधेशानंद गिरि- जीवन दर्शन

स्तम्भ- जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज

मंत्र:

“स तपस्तप्त्वा सर्वं सृजति यद् विश्वं यच्च न विश्वं यद् विश्वस्य संनादति”

-मुण्डकोपनिषद् १.१.८

Jeevan Darshan: उपनिषदों का ज्ञान शाश्वत और कालातीत है। मुण्डकोपनिषद् का यह मंत्र एक ऐसा दिव्य दर्शन प्रस्तुत करता है, जो ब्रह्म की सृजनात्मक शक्ति, चेतना की व्यापकता और अद्वैत के सत्य को गहराई से उद्घाटित करता है। इस मंत्र में वेदांत का मूल तत्व समाहित है- सत्य, चेतना और आनंद से परिपूर्ण ब्रह्म का स्वरूप।

तपस्तप्त्वा- ब्रह्म की सृजनात्मक शक्ति का संकेत

"तपस्तप्त्वा" शब्द सृजन के पीछे छिपी ब्रह्म की अद्वितीय संकल्पशक्ति को दर्शाता है। यह कोई साधारण तपस्या नहीं, अपितु वह आध्यात्मिक ऊर्जा है, जो समस्त विश्व को जन्म देती है। यह तप ब्रह्म का आंतरिक चिंतन और रचनात्मक संकल्प है, जिससे सम्पूर्ण सृष्टि का उद्गम होता है।

“विश्वं यच्च न विश्वं”- दृश्य और अदृश्य का अद्वैत

इस वाक्यांश में द्वैत और अद्वैत का समन्वय है। “विश्वं” उस भौतिक जगत का प्रतीक है, जिसे हम अनुभव करते हैं, जबकि “यद् न विश्वं” उस सूक्ष्म, अमूर्त और दिव्य तत्त्व की ओर इशारा करता है, जो माया से परे है। यह उपनिषदात्मक भाषा में उस सत्य को दर्शाता है जो दृश्य और अदृश्य दोनों में व्याप्त है।

संनादति- ब्रह्म की सर्वव्यापकता का घोष

“संनादति” शब्द ब्रह्म की उपस्थिति को एक अनाहत नाद के रूप में प्रस्तुत करता है। यह वह दिव्य कंपन है, जो विश्व के प्रत्येक अणु में विद्यमान है। ब्रह्म की चेतना निरंतर संनादित होती रहती है और यही नाद सम्पूर्ण जगत का संचालन करता है। यह अनुभव, न केवल दार्शनिक है, बल्कि एक आध्यात्मिक संगीत जैसा है जो हृदय को छू जाता है।

वेदान्त का मूल दर्शन

वेदान्त ब्रह्म को “सत्-चित्-आनन्द” स्वरूप मानता है- जो सदा है, जो जानने योग्य है, और जो परमानन्द स्वरूप है। यह मंत्र उसी ब्रह्म को सृष्टिकर्ता, आधार और संचालक के रूप में प्रस्तुत करता है। सृष्टि कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि ब्रह्म की लीला है, उसकी इच्छा और संकल्प का प्रकटीकरण है।

मानव जीवन के लिए संदेश

यह मंत्र न केवल दर्शन है, बल्कि जीवन का पथप्रदर्शक भी है। यह मानव को आत्म-बोध की ओर अग्रसर करता है और उसे यह स्मरण कराता है कि वह स्वयं भी उसी ब्रह्म का अंश है। जीवन का अंतिम उद्देश्य है- उस परम सत्य की पहचान और उसमें लीन हो जाना।

निष्कर्ष: मुण्डकोपनिषद् का यह मंत्र अपने आप में साहित्य और दर्शन का अनुपम संगम है। यह न केवल ब्रह्म की रचनात्मकता को चित्रित करता है, बल्कि आत्मा के परमार्थ की ओर भी इशारा करता है। यह मंत्र अद्वैत वेदान्त की जड़ें गहराई से स्थापित करता है और हमें सिखाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि एक ही चेतना का विस्तार है।

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