स्वामी अवधेशानंद गिरि-जीवन दर्शन: 'तप और स्वाध्याय से कभी विरत न हों'; भगवान बद्रीनाथ की महिमा जानें

Jeevan Darshan: बद्रीनाथ धाम को भू वैकुंठ कहा जाता है। यहां त्रैलोक्य पालक भगवान विष्णु स्वयं तपस्वी वेश में विद्यमान हैं। यानी मनुष्य को तप और स्वाध्याय से कभी विरत नहीं होना चाहिए। 

Updated On 2025-05-04 11:36:00 IST
स्वामी अवधेशानंद जी गिरि- जीवन दर्शन: क्या बाह्य व्यथाओं के कारण हमारे भीतर का सुख, शांति और आनंद नष्ट हो जाता है?

Swami Avadheshanand Giri Jeevan Darshan: भगवान के अवतार का के लिए साधकों के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करना है, इसलिए जघन्य पापी भी बद्रीनाथ जाकर  सर्वथा मुक्त हो जाता है। जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज से 'जीवन दर्शन' में जानिए देवभूमि उत्तराखंड स्थित केदार-खण्ड, नारद-क्षेत्र, भैरवी-चक्र, उर्वशी-पीठ, घंटाकर्ण-देव ब्रह्म-कपाली, नारद-शिला, तप्त-कुण्ड और बद्री विशाला पुरी की महिमा।  

"भू-वैण्ठकृतावासं देवदेवं जगत्पतिम् ।
चतुर्वर्गप्रदातारं श्रीबद्रीशं नमाम्यहम् ।।"

हिमालय के उत्तुंग शिखर पर स्थित नर-नारायण पर्वत के मध्य में केदार-खण्ड, नारद-क्षेत्र, कल्याणी अलकनंदा के तीरे भैरवी-चक्र, उर्वशी-पीठ, घंटाकर्ण-देव ब्रह्म-कपाली, नारद-शिला, तप्त-कुण्ड सहित भू वैकुण्ठ बद्री विशाला पुरी में विराजमान परात्पर-ब्रह्म भगवान श्रीबद्रीनाथ व मां लक्ष्मी जी के आज कपाट खुले। अनेक शुभकामनाएं! 

बद्रीनाथ धाम को भू वैकुंठ कहा जाता है, जहां त्रैलोक्य पालक भगवान विष्णु स्वयं संन्यासी अर्थात् तपस्वी वेश में विद्यमान हैं। इसका आशय यह है कि मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में तप और स्वाध्याय से विरत नहीं होना चाहिए। भगवान नर-नारायण यद्यपि भगवान के चौबीस अवतारों में से प्रमुख हैं, तथापि लीला की दृष्टि से वो धर्म और मूर्ति के पुत्र रूप में प्रकट हुए। अर्थात् जिनके जीवन में धर्म है, उनके लिए परमात्मा सहज सुलभ हैं।

बद्रीनाथ धाम में जीव मात्र पर करुणा और कृपा करने के लिए भगवान साक्षात् विद्यमान हैं। भगवान के अवतार का के लिए साधकों के मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करना है, इसलिए जघन्य पापी भी बद्रीनाथ जाकर  सर्वथा मुक्त हो जाता है। त्रैलोक्य के कल्याण के निमित्त जब भगवान नारायण तप और समाधि में लीन थे, तो प्राकृतिक प्रकोप एवं हिमपात के कारण भगवान का पूरा श्रीविग्रह हिम आच्छादित हो गया, जिसे देखकर उनकी सहधार्मिणी जगत जननी माता लक्ष्मी व्याकुल हो उठीं और स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े होकर एक बेर “बदरी” वृक्ष का रूप धारण कर लिया। 

मां लक्ष्मी समस्त प्राकृतिक आपदाओं जैसे वर्षा-हिमपात आदि को स्वयं सहने लगीं और भगवान नारायण की निरापद तपस्या पूर्ण होने में सहायक बनीं। यह आख्यान इस बात का द्योतक है कि जीवन के श्रेष्ठ संकल्प और उद्देश्य बिना मातृ सत्ता की सहायता के पूर्ण नहीं होते। 

भगवान बद्रीश के कपाट खुलने के इस शुभ अवसर पर हम भगवान नर-नारायण  सहित मां लक्ष्मी, कुबेर एवं इस दिव्य धाम के समस्त देवताओं से राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व के कुशल क्षेम की प्रार्थना करते हैं। साथ ही नारायण के मानस आचार्य देवर्षि नारद और सनातन धर्म के प्रमुख आधार-स्तम्भ भगवद्पादाचार्य भाष्यकार भगवान आद्य जगद्गुरू शंकराचार्य जी सहित हिमालय के समस्त देवगणों, सिद्धों ऋषियों और अलौकिक शक्तियों को कोटिशः नमन करते हैं। 

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