छठी मैया कौन हैं: जानिए छठ पूजा में सूर्यदेव और छठी मैया की एक साथ क्यों होती है पूजा?
छठ पूजा में सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा क्यों की जाती है? जानिए छठी मैया की उत्पत्ति, महत्व और पौराणिक कथाएं जो इस पर्व को विशेष बनाती हैं।
छठी मैया
Chhath Puja 2025: छठ का पर्व पूरे देशभर में इन दिनों आस्था के साथ धूमधाम से मनाया जा रहा है। लेकिन बिहार और यूपी में इस पर्व को सबसे ज्यादा मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व सूर्य उपासना और मातृत्व की शक्ति को समर्पित है। छठ पूजा को सूर्य षष्ठी व्रत भी कहा जाता है, जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है।
इस वर्ष छठ पर्व की शुरुआत शनिवार 25 अक्टूबर 2025 से हो चुकी है, और व्रती अब सूर्यदेव के साथ छठी मैया की पूजा कर रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि छठी मैया कौन हैं और क्यों उन्हें सूर्यदेव की बहन कहा जाता है? आइए जानते हैं इस महापर्व के धार्मिक और पौराणिक रहस्य के बारे में।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा केवल सूर्यदेव की उपासना नहीं, बल्कि प्रकृति, मातृत्व और जीवन की रक्षा का प्रतीक भी है। मान्यता है कि सूर्यदेव की कृपा से जीवन में ऊर्जा, शक्ति और समृद्धि बनी रहती है, जबकि छठी मैया बच्चों की रक्षा करती हैं और परिवार में खुशहाली बनाए रखती हैं। यह पर्व दिवाली के छह दिन बाद आता है और चार दिनों तक चलने वाले अनुष्ठानों नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य के रूप में मनाया जाता है।
छठी मैया कौन हैं?
धार्मिक ग्रंथों, विशेषकर मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, सृष्टि की रचना करने वाली देवी प्रकृति ने स्वयं को छह भागों में विभाजित किया था। उनका छठा अंश सबसे प्रभावशाली माना गया, जिसे छठी देवी या छठी मैया कहा गया। उन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री और समस्त मातृशक्ति की अधिष्ठात्री देवी बताया गया है। मान्यता है कि छठी मैया नवजात शिशुओं की रक्षा करती हैं और जन्म के बाद छह माह तक उन पर विशेष कृपा रखती हैं। इसी कारण यह व्रत न केवल सूर्य उपासना का पर्व है, बल्कि मातृत्व, संतान संरक्षण और परिवार की दीर्घायु का उत्सव भी है।
क्यों की जाती है सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, छठी मैया सूर्यदेव की बहन हैं। इसीलिए छठ पूजा में व्रती दोनों की संयुक्त पूजा करते हैं। सूर्यदेव जीवन के स्रोत हैं, जबकि छठी मैया उस जीवन की रक्षा करने वाली देवी हैं। कहा जाता है कि जब सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, तब छठी मैया के आशीर्वाद से परिवार में स्वास्थ्य, समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। छठ व्रत को महिलाओं का व्रत माना जाता है, लेकिन आजकल पुरुष भी श्रद्धा से इस व्रत का पालन करते हैं। यह पर्व सात्विकता, संयम और आत्मशुद्धि का प्रतीक है।
द्रौपदी का छठ व्रत
महाभारत काल में भी इस व्रत का उल्लेख मिलता है। जब पांडव अपना राज्य खो चुके थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को छठ व्रत करने की सलाह दी। द्रौपदी ने श्रद्धापूर्वक सूर्यदेव और छठी मैया की उपासना की, जिसके फलस्वरूप पांडवों को अपना राज्य पुनः प्राप्त हुआ। तब से यह व्रत मनोकामना पूर्ति का प्रतीक माना जाने लगा।
- छठ पूजा में व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर जीवन के संघर्षों को विदा करते हैं और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर नई शुरुआत का संकल्प लेते हैं।
- व्रती बिना नमक का सात्विक भोजन करते हैं, जिससे शरीर और मन दोनों पवित्र रहें।
- छठी मैया को दूध, ठेकुआ, फल और गन्ने का प्रसाद अर्पित किया जाता है।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। HariBhoomi.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।