Opinion: साइबर ठगों व करप्शन से बचाना होगा बैंकों को, झेले हैं उतार- चढ़ाव 

भारतीय बैंक इस तथ्य के साक्षी हैं कि देश की आजादी से पहले और बाद में भी वे डूबते रहे या भारी घाटा सहते रहे हैं।

Updated On 2024-07-09 11:10:00 IST
करप्शन से बचाना होगा बैंकों को

Opinion: नरेंद्र मोदी सरकार के केंद्र में लगातार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद एक उम्मीद पैदा हुई है कि सरकार अब बैंकिंग सेक्टर को अधिक पारदर्शी और बेहतर बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाती रहेगी। बीते कुछ सालों के दौरान, भारतीय बैंकों ने जितने उतार- चढ़ाव झेले हैं, शायद किसी अन्य देश ने नहीं झेला होगा।

कई भारतीय बैंक अनेक घोटालों-घपलों, ऋण अदायगी न होने, जालसाजियों, अनर्जक परिसम्पत्तियों (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) के बढ़ते बोझ, कर्जमाफी की गलत नीतियों आदि के कारण कई बार तो पूरी तरह डूब गए या भारी घाटे में चले गए।इससे निपटने के लिए पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों ने कुछ कदम भी उठाए, लेकिन, इनके आधे-अधूरे कार्यान्वयन से आशातीत सफलता नहीं मिली। लेकिन, राहत की बात है कि मोदी सरकार ने पिछले दस वर्षों में बैकिंग क्षेत्र में फैली गड़बड़ियों को दूर करने के लिए अनेक फौरी कदम उठाए, जिससे बैंकों की स्थिति में अब धीरे-धीरे सुधार आने लगा है।

बैंकों का पुनर्पूजीकरण
अनेक बैंक न सिर्फ घाटे से उबर कर लाभ की ओर अग्रसर हैं, बल्कि अनेकों घोटालों पर लगाम भी लगी है। अनेक घोटालेबाजों की सम्पत्ति कुर्क कर ऋण वसूली भी की गई है, बैंकों का पुनर्पूजीकरण किया गया और अनर्जक परिसम्पत्तियों का बोझ काफी कम हुआ है। क्या यह सुखद स्थिति नहीं है कि 2013 से 2017 के बीच बैंकों की अनर्जक परिसम्पत्तियां 12.47 प्रतिशत थी, जो धीरे-धीरे लुढ़कते हुए सितंबर 2023 में 3.2 प्रतिशत हो गई, भले ही इसमें सरकार द्वारा बैंकों के पुनर्पूजीकरण का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा।

लंबे समय तक सुधार प्रक्रिया जारी नहीं
अब सवाल यह है कि क्या बैंकों में सुधार की वर्तमान स्थिति भविष्य में भी जारी रहेगी या "लौट के बुद्ध घर आए" की कहावत चरितार्थ होगी? भारतीय बैंक इस तथ्य के साक्षी हैं कि देश की आजादी से पहले और बाद में भी वे डूबते रहे या भारी घाटा सहते रहे हैं। यह उबड़-खाबड़ स्थिति सोचने को विवश करती है कि जब तक लंबे समय तक सुधार प्रक्रिया जारी नहीं रहेगी, तब तक समस्या का स्थायी निराकरण संभव नहीं है।

स विषय पर वरिष्ठ लेखक श्रीपाल जैन की हालिया प्रकाशित पुस्तक- "भारतीय बैंकों का बदलता चेहरा" उपरोक्त विविध पहलुओं का बखूबी विश्लेषण करती है। आजादी से पहले और बाद में बैंकों में घोटालों, महाघोटालेबाजों, जालसाजी के हथकंडों, बैंकिंग में साइबर अपराधों, यस बैंक के उत्कर्ष एवं पतन, अनर्जक परिसम्पत्तियों के मकड़जाल आदि का विस्तृत विवरण दिया गया है। साथ ही, बैंकों के निजीकरण की गूंज, कृषि ऋणमाफी के अर्थशाख, नोटबंदी, जन-धन योजना, रिजर्व बैंक की स्वायत्तता, डिजिटल बैंकिंग की बढ़ती लोकप्रियता एवं जोखिम आदि की आलोचनात्मक चर्चा की गई है। 

व्यवसाय में वृद्धि में एक प्रमुख इंजन
देश में आजादी के बाद निजी और सरकारी बैंक दोनों थे, लेकिन, उनमें अनेक घोटाले हुए और कई बैंक डूबे भी। फिर भी, सरकारी बैंक अर्थव्यवस्था की प्रगति एवं व्यवसाय में वृद्धि में एक प्रमुख इंजन रहे। निजी बैंक आम लोगों के आसानी से खाते भी नहीं खोलते थे। जुलाई 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से आम जनता की बैंकों तक पहुंच बढ़ने लगी। इस दौर में अनेक बैंकों का विलय हुआ, जिसके कतिपय सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे। लेकिन धीरे-धीरे सरकारी बैंकों में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, राजनीतिक हस्तक्षेप आदि से असली और फर्जी कंपनियों को अनाप-शनाप मात्रा में ऋण दिए गए, जिनमें से कइयों की वसूली नहीं हुई या आंशिक वसूली हो पाई। इससे सरकारी और निजी बैंकों दोनों को भारी घाटा हुआ।

बैंक के डूबने जैसे घटनाक्रम
1990 के दशक के आरंभ में उदारीकरण की नीति अपनाई गई और कुछ समय के बाद आधुनिक प्रौद्योगिकी से लैंस (क्रेडिट कार्य, डेबिट कार्य, चेकों का शीघ्र समशोधन, बीमा. म्यूचुअल फंड खोलना आदि) एच.डी.एफ.सी., आई.सी.आई.सी.आई. बैंक, यस बैंक जैसे निजी बैंक लोकप्रिय हुए। निजी बैंकों के नए उत्पादों, योजनाओं और आधुनिक प्रौद्योगिकी ने सरकारी बैंकों के सामने तगड़ी प्रतिस्पर्धा पेश कर दी।

इससे सरकारी एवं अन्य निजी बैंक भी नए उत्पादों, योजनाओं और आधुनिक प्रौद्योगिकी का सहारा लेने को विवश हुए। नतीजतन, सरकारी एवं निजी बैंकों की स्थिति में कुछ सुधार अवश्य दर्ज किया गया, लेकिन उदारीकरण की लहर में घोटालों-घपलों, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, राजनीति हस्तक्षेप का सिलसिला भी आगे बढ़ता गया। हर्षद मेहता, केतन पारिख के घोटाले और ग्लोबल ट्रस्ट जैसे बैंक के डूबने जैसे घटनाक्रम इसी काल में हुए। मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में पीएनबी बैंक, पीएमसी बैंक एवं अन्य सहकारी बैंकों, यस बैंक के घोटालों, महाघोटालेबाजों के विदेश भागने से भारी संकट पैदा हो गया था।
आरके सिन्हा: (लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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