Opinion: आम आदमी पार्टी का अस्तित्व दांव पर,  भ्रष्टाचार अब उनका मुद्दा नहीं

बहुत ही कम समय में आम आदमी चुने पार्टी ने नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया, लेकिन जिस मकसद के साथ पार्टी का जन्म हुआ था कमजोर हुआ है।

Updated On 2024-07-14 10:43:00 IST
आम आदमी पार्टी का अस्तित्व दांव पर

Opinion: वर्ष 2012 में अच्या आंदोलन से आम आदमी पार्टी व्यवस्था परिवर्तन और नई किस्म की राजनीति करने के वादे के साथ आई थी। देशभर में लोगों को उम्मीद बंधी थी कि भारतीय राजनीति में एक मौलिक बदलाव आएगा, लेकिन अब अरविंद केजरीवाल वही कर रहे हैं, जो बाकी राजनीतिक दल करते हैं। ये पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन से निकली थी, इसलिए लगा था कि इस पार्टी का मूल या केंद्रीय विषय भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई होगा, लेकिन अब ये पार्टी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बात नहीं करती है। 

शुरूआती दौर में भ्रष्टाचार के मुद्दे को लेकर आम आदमी पार्टी आक्रामक थी। एक वक्त केजरीवाल लिस्ट जारी करते थे कि देश में कौन-कौन से भ्रष्ट नेता हैं, लेकिन पिछले 12 साल में उन्होंने भ्रष्टाचार पर कोई बात नहीं की। भ्रष्टाचार अब उनके लिए मुद्दा नहीं रह गया है। पहले इन्होंने कहा कि पूर्ण बहुमत मिलने पर जन लोकपाल कानून लाएंगे, लेकिन आज तक वो हो नहीं सका। उल्य अरविंद केजरीवाल सहित आम आदमी पार्टी के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार समेत कई तरह के आरोप लगे।

मकसद कमज़ोर हुआ
बहरहाल, पार्टी के गठन के करीब 12 साल हो चुके हैं। इस दरम्यान आप ने 12 साल में दो राज्यों यानी दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाई तो वहीं गुजरात और गोवा में भी पार्टी के विधायक गए। बहुत ही कम समय में आम आदमी चुने पार्टी ने नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया, लेकिन जिस मकसद के साथ पार्टी का जन्म हुआ था कमजोर हुआ है। जितनी तेजी से पार्टी आगे उतनी ही तेजी से वह विवादों में घिरती भी गई। बेशक पार्टी के रूप में उनकी उपलब्धियां हैं। फिर भी आम आदमी पार्टी देश को एक उम्मीद बंधी थी कि राष्ट्रीय , वह बढ़ी, चली कई से पूरे स्तर पर कुछ बदलाय होगा। पैसा तो नहीं हुआ, लेकिन इसका असर ये जरूर हुआ कि भ्रष्टाचार खिलाफ इस आंदोलन के बाद जो पार्टी ( बीजेपी) केंद्र में कभी अपने बूते सता में नहीं आई थी, भारी बहुमत से सत्ता में आ गई।

कथनी-करनी में फर्क
ये पार्टी शुरू में ही कहती थी कि हम ना तो कभी कांग्रेस के साथ जाएंगे, ना बीजेपी के साथ जाएंगे। इसका मतलब था कि ये पार्टी जो परंपरागत राजनीति है उनके साथ जाने को तैयार नहीं है। इन्होंने कांग्रेस के नेताओं और बीजेपी के नेताओं पर कई तरह के आरोप भी लगाए थे। कई नेताओं की लिस्ट जारी कर उन्हें भ्रष्ट करार दिया गया, लेकिन कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार भी बनाई और लोक सभा में गठबंधन भी किया। इतना ही नहीं बीजेपी को मिलकर हराने की बात करने वाले विपक्षी पार्टियों के साथ मंच साझा करते हुए भी केजरीवाल को देखा गया है।

भ्रष्टाचार के आरोप में ही घिरे
बहरहाल, भ्रष्टाचार के आरोप में आज खुद अरविंद केजरीवाल जेल में हैं। उनसे पहले पार्टी के कई बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। । वहीं दूसरी तरफ आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी के कई नेता अपने शीर्ष नेता पर गंभीर आरोप लगा कर पार्टी से अलग हो रहे हैं। ऐसे में अब पार्टी के अस्तित्व पर भी संकट आ गया है। 

लोकसभा चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद अब सहयोगी दल कांग्रेस का भी साथ छूट चुका है। स्वाभाविक है दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में भगदड़ मचना तय है, क्योंकि आम पार्टी अरविंद केजरीवाल से शुरू होकर अरविंद केजरीवाल पर ही खत्म हो जाती है। जो भविष्य के नेता हो सकते थे, उनसे या तो अरविंद केजरीवाल ने पीछा छुड़ा लिया या फिर वो खुद अरविंद केजरीवाल को छोड़कर चले गए। जो बचे रह गए उनमें से अधिकांश जेल पहुंच गए हैं, इसलिए। इस समय केजरीवाल की गिरफ्तारी के साथ ही आम आदमी पार्टी के सामने नेतृत्य का संकट पैदा हो गया है। कई सवाल पैदा हो गए हैं जिनका जवाब पार्टी को तत्काल खोजना होगा। 

कांग्रेस के साथ गठबंधन से इनकार
आम आदमी पार्टी किसी लंबे संघर्ष से निकली जमी जमाई पार्टी नहीं है, इसलिए उसमें टूट की संभावना पैदा हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। केजरीवाल के जेल जाने से संकट सिर्फ दिल्ली सरकार पर ही नहीं बल्कि समूची आम आदमी पार्टी पर आ गया है, क्योंकि दिल्ली में विधानसभा सभा चुनाव अगले साल होने वाला है। आम आदमी पार्टी दिल्ली में अकेल विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। कांग्रेस के साथ किसी भी प्रकार के गठबंधन से इनकार कर दिया है। 

आज भले ही कांग्रेसी नेता केजरीवाल के समर्थन में बयान दे रहे हैं, लेकिन इस गिरफ्तारी का सचसे ज्यादा लाभ कांग्रेस ही उठाने की कोशिश करेगी, क्योंकि कांग्रेस के लिए दिल्ली में केजरीवाल वो बाधा है जिसके दूर हो जाने पर उनके लिए मैदान साफ हो जाता है। वहीं अरविन्द केजरीवाल विहीन आम आदमी पार्टी का विधानसभा चुनाव में कुछ खास हासिल करना मुश्किल ही है। ऐसे में 'आप' के 'आम आदमी' अगर कहीं और ठौर तलाशने निकल जाएं तो भी कोई आवर्य नहीं होगा। याद रखिए जनता वाल बिखरा था तो उसमें से छोटे छोटे दल निकले थे। आम आदमी पार्टी बिखरी तो उसमें सिर्फ आदमी निकलेंगे जो अपनी सुविधानुसार कहीं और अपना ठिकाना तलाश लेंगे।

बुनियादी मुद्दों से मुंह मोड़ा
बहरहाल, महज कुछ सालों में ही अरविंद केजरीवाल ने विशुद्ध व्यावहारिक राजनीति का रुख लेते हुए और अण्णा आंदोलन के पीछे काम कर रहे धुर दक्षिणपंथी ईको सिस्टम के मुताबिक अपनी राजनीति को सेवा-सुविधा आधारित बना लिया और देश के उन बुनियादी मुद्दों से न केवल मुंह ही मोड़ा बल्कि उन्हें हवा देने के लिए एक ऐसे विपक्ष का रूप भी धारण कर लिया जो पक्ष विपक्ष के कांग्रेस मुक्त भारत के कतई अलोकतांत्रिक, लेकिन साझा सपने के अनुकूल हो, इसलिए आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी दुविधा ये है कि वे किस मुंह से राज्य के लोगों के साथ नए वादे करे। क्योंकि कई पुराने वादे अभी तक पार्टी पूरी नहीं कर सकी।

विस चुनाव में आप की परीक्षा
बहरहाल, अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का देश समाज पर कोई असर हो न हो, आम आदमी पार्टी के अस्तित्य पर बहुत गहरा असर होने वाला है। ये भी संभव है कि जब यह राजनीतिक बयंडर खत्म हो तब पता चले कि जो अंधड़ आया था, यह अपने साथ उस पार्टी को ही उड़ाकर से गया जो संयोग से एक दशक पहले आंदोलन की आंधी से ही पैदा हुई थी। अगले साल दिल्ली में विधानसभा चुनाव हैं और देखना होगा कि नेता के तौर पर अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी फिर से अपना करिश्मा तिहरा पाते हैं या नहीं? भ्रष्टाचार के खिलाफ की राजनीति का भ्रष्टाचार के आरोप में ही घिर जाना किसी विडंबना से कम नहीं है, आप का यही संकट है
रवि शंकर (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह उनके अपने विचार हैं।) 

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