ममता सरकार के खुलासे के बाद भी नेताजी का रहस्य बरकरार
सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक कर एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाया।;

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक कर एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाया। इन फाइलों के अवलोकन से यह पता चलता है कि नेताजी की मृत्यु 1945 में ताइवान में विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। ममता बनर्जी के इस ऐतिहासिक कदम के बाद सारा देश इस बात का इंतजार कर रहा है कि कब केंद्र सरकार अन्य सुरक्षित अति गोपनीय फाइलों को सामने लाएगी।
हाल में एक प्रतिष्ठित वकील ने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की थी कि केंद्र सरकार के पास जो गोपनीय फाइलें हैं उन्हें सार्वजनिक किया जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने पर जल्द कोई फैसला ले। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि नेताजी एक बेहतरीन व्यक्ति थे, इसमें कोई शक नहीं, परंतु उन्हें कोर्ट का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए। हम गृह मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय से कहते हैं कि वे आपके आवेदन पर शीघ्र निर्णय लें।
नेताजी की रहस्यमय मृत्यु पर तरह तरह की अटकलें पिछले कई वर्षों से लगाई जा रही हैं। कांग्रेस सरकार ने नेताजी की गुमशुदगी के बारे में दो आयोग गठित किए थे। दोनों आयोगों का कहना था कि नेताजी की मृत्यु ताइवान में हवाई दुर्घटना में हुई थी, परंतु इन आयोगों के निष्कर्ष को मानने के लिए भारत की जनता तैयार नहीं है। 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जस्टिस मनोज मुखर्जी आयोग का गठन किया था। इस आयोग ने कई साक्ष्यों और सबूतों के साथ यह साबित करने का प्रयास किया कि ताइवान विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत नहीं हुई थी।
हाल तक देश के कई प्रतिष्ठित और जानकार विद्वानों ने यह साबित करने का प्रयास किया कि फैजाबाद में गुमनामी बाबा के रूप में जो व्यक्ति थे वही असल में नेताजी थे। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी हुई कि नेताजी ने समय समय पर अपने परिवार के लोगों और मित्रों को जो पत्र लिखे थे उनकी हैंड राइटिंग गुमनामी बाबा की हैंड राइटिंग से हू-ब-हू मिलती थी। गुमनामी बाबा के निधन के बाद उनका जो सामान मिला वह इस बात को इंगित करता था कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस भी उसी तरह का सामान अपने दैनिक कायरें में इस्तेमाल करते थे, परंतु सारे सबूतों के बावजूद भी यह तय नहीं हो पाया है कि नेताजी की मृत्यु कब और कहां हुई थी और क्या सही अर्थ में गुमनामी बाबा सुभाषचंद्र बोस ही थे।
इस संदर्भ में मुझे एक महत्वपूर्ण घटना याद आ जाती है। यह तो सभी जानते हैं कि सुभाषचंद्र बोस चोरी छिपे अपने कोलकाता के घर से निकले थे और अफगानिस्तान होकर सोवियत रूस पहुंचे थे जहां उन्होंने स्टालिन से आग्रह किया था कि वे भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने में मदद करें, परंतु स्टालिन ने साफ मना कर दिया था क्योंकि रूस उन दिनों ब्रिटेन और अमेरिका के साथ मिलकर र्जमनी और जापान के खिलाफ युद्ध कर रहा था। निराश होकर नेताजी र्जमनी चले गए। फिर वहां से एक पनडुब्बी में सवार होकर चोरी छिपे जापान पहुंचे। फिर जापान से दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का भ्रमण कर उन भारतीयों को संगठित किया जो वर्षों से इन देशों में रह रहे थे और इस संगठन का नाम उन्होंने आजाद हिंद फौज रखा।
1996 में जब मैं कंबोडिया में भारत का राजदूत था तब बैंकॉक में आजाद हिंद फौज (आईएनए) की वर्षगांठ बनाई जिसमें दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में अवस्थित भारतीय राजदूतों को आमंत्रित किया गया था। संयोग से मुझे भी इस बैठक में सम्मिलित होने का निमंत्रण मिला था।
इस बैठक में अनेकों ऐसे लोग थे जिन्होंने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में नेताजी के कंधे से कंधा मिलाकर आजाद हिंद फौज की स्थापना में योगदान दिया था। उनका कहना था कि नेताजी काफी अरसे तक थाईलैंड में भी थे और नेताजी का सपना था कि जब भारत आजाद होगा और अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त होगा तब वे आसानी से हवाई जहाज द्वारा कुछ घंटों में बैंकॉक से कोलकाता पहुंच जाएंगे, परंतु नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था। नेताजी का साथ जापानी दे रहे थे और उनकी मदद से आजाद हिंद फौज बर्मा होकर भारत की भूमि में इम्फाल तक पहुंच गई थी। भारत में उस समय मानसून आ गया था और आजाद हिंद फौज को आगे बढ़ने में कठिनाई हो रही थी।
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