अमर्यादित भाषा का प्रश्न
प्रश्न है कि आखिर विपक्ष खेद प्रकट करने से संतुष्ट क्यों नहीं है?;

नई दिल्ली.अगर राजनीति में भाषा एवं आचरण की मर्यादा स्थापित करनी है तो फिर पूरी राजनीति का चरित्र बदलना होगा। संघर्ष करते हुए एवं मूल्यों का प्रशिक्षण पाते हुए जो राजनीति में सीढ़ियां चढ़ेगा वह कभी ऐसा नहीं कर सकता, लेकिन क्या पार्टियां इस दिशा में चलने को तैयार हैं?
साध्वी निरंजन ज्योति केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री हैं। इस नाते वे संवैधानिक पद पर हैं। जाहिर है, ऐसे व्यक्तित्व को विरोधियों पर हमला करते हुए भी अपनी वाणी पर अति संयम की आवश्यकता है। सामान्य तौर पर देखा जाए तो निष्कर्ष यह आएगा कि अगर आप संयम नहीं बरतते तो फिर आपको उस पद पर रहने का अधिकार नहीं है। हालांकि विरोध के बाद निरंजन ज्योति ने लोकसभा में औपचारिक तौर पर खेद प्रकट कर दिया है। वैसे उनका बयान सदन के बाहर था, वे बाहर भी खेद प्रकट कर सकतीं थीं, लेकिन चूंकि हंगामा संसद में हुआ इसलिए संसद के रिकॉर्ड पर इसे लाना शायद प्रधानमंत्री एवं उनके सहयोगियों ने आवश्यक माना हो पर विपक्ष मानने को तैयार नहीं है। उसका तर्क है कि ऐसे व्यक्ति को एक क्षण भी मंत्रीपद पर नहीं रहना चाहिए, क्योंकि इससे संविधान का उल्लंघन हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं सदन में सांसदों से अपील की कि उन्होंने माफी मांग ली है तो उन्हें माफ कर दिया जाए और देशहित में ससंद को चलने दें, लेकिन विपक्ष इस्तीफा से कम पर मानने को तैयार नहीं है। तो हम क्या मानें?
एक नजरिया यह है कि सामान्यत: मंत्री के खेद प्रकट करने के साथ ही विवाद खत्म हो जाना चाहिए था। जोश में ऐसे तुकबंदी के शब्द गलती से निकल सकते हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि संवैधानिक पदों से बंधे लोगों को अपनी वाणी मधुर रखनी चाहिए और आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कभी भी और किसी के भी प्रति नहीं करना चाहिए। उसके एक दिन बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों एवं सांसदों से वाणी पर संयम रखने की अपील की। राज्य सभा में हंगामे का जवाब देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि ऐसे शब्द न केवल आपत्तिजनक हैं, बल्कि अस्वीकार्य भी हैं, लेकिन उन्होंने और पूरी सरकार ने साध्वी के त्यागपत्र की मांग को खारिज कर दिया।
हम आगे बढ़ें उससे पहले यह जानना जरूरी है कि साध्वी निरंजन ज्योति उत्तर प्रदेश के फतेहपुर से सांसद हैं। ज्योति 2002 और 2007 में विधानसभा चुनाव भी लड़ी थीं, लेकिन हार गई थीं। 2012 में हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र से उन्हें पहली बार जीत मिली। साध्वी ज्योति निषाद समुदाय की हैं। इस समय वो उत्तर प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष भी हैं। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि वो राजनीति में बिल्कुल नवसिखुआ हैं। उनसे ऐसी भाषा की उम्मीद नहीं की जा सकती। जिस भाषण पर हंगामा हुआ उसमें निरंजन ज्योति ने किसी का नाम नहीं लिया।
पर क्या इस्तीफा ही इसका निदान है? कांग्रेस के सदस्य तो एक दिन लोकसभा में वेल तक पहुंच कर नारेबाजी कर रहे थे। यह भी तो संसदीय मर्यादा का अतिक्रमण है। सभी पार्टियां ऐसा करती हैं। और न किसी का इस्तीफा होता है न कोई इसके लिए खेद ही प्रकट करता है। प्रश्न है कि आखिर विपक्ष खेद प्रकट करने से संतुष्ट क्यों नहीं है? कांग्रेस के आनंद शर्मा राज्य सभा में कह रहे थे कि प्रधानमंत्री ने कह दिया कि खेद प्रकट करने के बाद मामला खत्म कर दिया जाए, यह इतनी छोटी बात नहीं है। भाई, चुनावी सभा में मंत्री का भाषण था, शब्द गलता था, लेकिन उसकी सजा क्या होगी। दूसरी बात कि क्या भारत की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है? आखिर इसके पूर्व किसी ने त्यागपत्र दिया है?
हम नहीं कहते कि एक गलती का जवाब दूसरी गलती है, पर इस तरह की जिद का अर्थ क्या है? किस तरह सरकार को घेरो, आक्रामक विपक्ष है यह अहसास कराओ, देश में अपने बचे खुचे समर्थकों को राजनीति में अपने अस्तित्व का अहसास कराओ यही न। इसे नैतिक जिद नहीं कहा जा सकता है। हमने इसी संसद के अंदर नेताओं के मुंह से गालियां सुनी हैं, राख लगाकर जीभ खींच लेंगे यह कहते सुना है, मिर्ची पाउडर का स्प्रे और मारपीट देखा है। ऐसे नेताओं को संसद के अंदर खेद प्रकट करते नहीं देखा है। यही नहीं जहां तक चुनावी सभाओं तथा अन्य वक्तव्यों का प्रश्न है तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरित्रहनन जैसे शब्दों के अभियान को भी देखा है। प्रियंका गांधी ने अमेठी में कहा था कि नरेंद्र मोदी बंद कमरे में महिलाओं की मोबाइल पर आवाज सुनते हैं। कांग्रेस के नेताओं-नेत्रियों ने एक ऐसी महिला को लेकर, जिसने कभी शिकायत नहीं कि संबंधों का जैसा घृणित रूप प्रस्तुत किया और आज तक व्यंग्य में साहेब शब्द का प्रयोग करते हैं वह किसने नहीं सुना है। मोदी के लिए मौत के सौदागर से लेकर नपुंसक, टॉफी मौडल, यमराज, सांप, बिच्छू, हत्यारा पता नहीं क्या क्या कहा गया। क्या किसी ने इसके लिए खेद आज तक प्रकट किया है? क्या किसी ने माफी मांगी है? टॅाफी मॅाडल तो स्वयं राहुल गांधी ने कहा। बेनी प्रसाद वर्मा ने इसी संसद में अटल बिहारी वाजपेयी एवं लालकृष्ण आडवाणी को नीच कहा और खेद तक प्रकट न किया।
वस्तुत: हम नेताओं की जुबान से निकलने वाले विषाक्त शब्दों की लंबी फेहरिस्त गिना सकते हैं। ऐसे नेता बहुत कम हैं जिन्हें अपने कहे हुए विषैले या अपशब्दों पर अंदर से पश्चताप होता है। इसलिए यह कहना संभव नहीं है कि निरंजन ज्योति का भी अंतर्मन बदला होगा। दबाव के कारण उन्होने खेद प्रकट कर दिया। पर हमारी राजनीति में अब आंतरिक पश्चताप के लिए माहौल बचा कहां है? सारे हंगामें,विरोध,समर्थन केवल राजनीतिक खांचों तक संकुचित हो गए हैं। किसी को भी इस बात से लेना देना नही है कि भाषा की मर्यादा तोड़ने वाले की अंतरात्मा ने उसे धिक्कारा या नहीं। किसी को इससे सरोकार नहीं कि आगे इसकी पुनरावृत्ति न हो ऐसी स्थिति पैदा करने के लिए काम किया जाए। यांत्रिक तरीके से विरोध एवं यांत्रिक तरीके से खेद। इसलिए हम यह भी नहीं मान सकते कि आगे ऐसा नहीं होगा। जो आज हंगामा कर रहे हैं उनमें से कोई ऐसे शब्द प्रयोग नहीं करेगा यह कौन कह सकता है?
यह ऐसी स्थिति नहीं जिसके लिए किसी मंत्री को इस्तीफा दिलाया जाए। गलती हुई,उनने खेद प्रकट किया अब प्रधानमंत्री ने अपील की वर्तमान राजनीति इतना पर्याप्त होना चाहिए। पर यहां तो हर हाल में मोदी के खिलाफ हमारे पास अस्त्र हैं यह प्रदर्शित करना है। इससे ज्यादा उद्देश्य नजर नहीं आता। अगर राजनीति में भाषा एवं चरित्र की मर्यादा स्थापित करनी है तो फिर पूरी राजनीति का चरित्र बदलना होगा। जनता के बीच से संघर्ष करते हुए विचार एवं मूल्यों का प्रशिक्षण पाते हुए जो राजनीति में सीढ़ियां चढेगा वह ऐसा नहीं कर सकता , लेकिन क्या पार्टियां इस दिशा में चलने के लिए तैयार हैं? वर्तमान राजनीति में किसी दल के पास ऐसी सोच न ही बची है और न ही माद्दा ही। इसलिए हमें ऐसे प्रसंग आगे सुनने देखने को मिलेंगे।
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