
बाईस अप्रैल 1959 को दिल्ली में जाने-माने कवि जैमिनी हरियाणवी के घर जन्मे हास्य के सुप्रसिद्ध कवि अरुण जैमिनी आज देश-विदेश में कवि सम्मेलनों के सर्वाधिक लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं। जिस तरह एक दौर में अमिताभ बच्चन के किसी हिंदी फिल्म में होने को उसकी सफलता की गारंटी मान लिया जाता था। लगभग वैसी ही स्थिति आज अरुण जैमिनी की है। वे मंच पर होते हैं तो कवि सम्मेलन की सफलता तय मानी जाती है। अरुण जैमिनी से हरिभूमि के संपादक ओमकार चौधरी ने यह खास बातचीत की। जैमिनी ने कहा कि बच्चों की तरह जब लोग खिलखिलाते हैं तो वह क्षण उनके लिए सबसे आनंददायक होते हैं।
पहली बार कब लगा कि आपके भीतर कुछ है, जिससे लोगों को हंसा सकते हैं?
मैं आठवीं में था, तब पहली कविता लिखी। पराग पत्रिका निकलती थी। मैं कविता लिखकर वहां दे आया। वो गलती से छप गई। बस..गलतफहमी हो गयी (खुलकर हंसते हैं) कि लिख सकता हूं।
मंचों पर शुरुआत कैसे हुई?
1980 तक तो हास्य कविता लिखी, जो छपी। तब तक पढ़ाई कर रहा था। एक बाल कवि सम्मेलन भी हमने करा दिया था सन इकहत्तर में। तब मैं नौवीं में था। अस्सी में एमए करने के बाद मैं मंच पर आया।
पहला अनुभव कैसा था मंच पर और जैमिनी जी (जैमिनी हरियाणवी) की प्रतिक्रिया कैसी थी?
पहला अनुभव शानदार रहा। पिता जी ने काफी प्रोत्साहित किया। मैं जल्दी-जल्दी पढ़ता था..उन्होंने बताया कि इतनी तेजी से नहीं पढ़ते। उनसे टिप्स भी मिले। सबसे ही टिप्स मिले। बुजुर्गों का आशीर्वाद मिला..आदित्य जी हुए। सुरेन्द्र शर्मा जी हुए..अल्हड़ जी हुए। इन सबका स्नेह मिला।
आपकी और इन सबकी कविताओं में हरियाणवी पुट रहा है। इसकी क्या वजह मानते हैं?
आदित्य जी ने हरियाणवी में कविताएं नहीं लिखी। अल्हड़ जी ने बस एक गीत लिखा..कि मैं अपनी अनपढ़ धन्नो नै फिल्म दिखावण चाल्ला। सुरेन्द्र शर्मा की कविताओं में राजस्थानी पुट था। पिता जी ने हरियाणवी में कविताएं तो खूब लिखीं पर हरियाणवी करेक्टर लेकर नहीं आए। मैं हरियाणवी चरित्र लेकर आया। इसलिए तुलना भी नहीं की गयी कि ये उनसे प्रभावित है या इनसे प्रभावित है।
निसंदेह आप हरियाणवी करेक्टर के जरिए हास्य पैदा करने में सफल रहे हैं पर ये नहीं लगता कि इस प्रयास में हरियाणा के आदमी का मजाक भी बन (उड़) रहा है?
इसमें हरियाणा के आदमी का मजाक कहीं नहीं उड़ता। उसमें हरियाणवी मस्ती सामने आती है। कहीं ऐसा नहीं लगता कि हरियाणवी करेक्टर अनपढ़ है। मूर्ख है या अज्ञानी है। या लट्ठमार है। मेरी कोशिश रहती है कि सिर्फ हरियाणवी मस्ती और चरित्र ही सामने आए।
आप और सुरेन्द्र शर्मा सीधे तौर पर हरियाणा की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं। यानी पहचान हरियाणा की मस्ती या करेक्टर को लेकर बनी। बताएंगे कि हरियाणा को आप लोगों ने क्या रिटर्न किया है?
देखो, मैं पूरे विश्व में गया। ऐसी जगह भी गया, जहां हरियाणवी को लोग जानते ही नहीं हैं। एक प्रोग्राम था गुना के पास। मुझे बुलाया गया कि ये हरियाणवी हास्य के कवि हैं तो आठ-दस लोग उठकर जाने लगे कि हरियाणवी हमारे क्या समझ में आएगी? मैंने कहा कि दो मिनट के लिए बैठ जाओ। वो बैठ गए। फिर मजा ही उन्हें उन्हीं चीजों पर आया। पहले किस्से..चुटकुले..पंजाब तक सीमित थे। उसे हमने जन-जन तक पहुंचाया।
मंचों पर आपको तैंतीस साल हो गए हैं। यहां तक की यात्रा से संतुष्ट हैं?
मैं बहुत संतुष्ट हूं।..जब सामने हंसते हुए चेहरे देखता हूं, उसे देखकर अंतर्मन में जो खुशी होती है..उसका आनंद ही अलग है। आज आदमी तनाव में है..जब वो खुलकर हंस रहा होता है बच्चों की तरह तो लगता है कि हम किसी का दिल दुखाकर पैसा नहीं कमा रहे। खुशी देकर कमा रहे हैं।
कभी मन में नहीं आता कि गंभीर विषयों पर भी कविताएं लिखी जाएं?
खूब लिखी हैं। विषय गंभीर होगा तो उस पर गंभीर ही लिखा जाएगा। हर विषय हास्य रस का नहीं होता। मैंने कोशिश की है कि गंभीर भी पढ़ूं। अगर मेरी पुस्तक में देखें तो ऐसी-ऐसी गंभीर कविताएं हैं.. और उनमें से एक भी कविता ऐसी नहीं है, जो मंच पर नहीं पढ़ी हो।
पिछले ढाई-तीन दशक में काव्य मंचों पर किस तरह के बदलाव आए हैं?
बदलाव तो बहुत आया है। अब कवि की जगह परफार्मर ज्यादा हो गये हैं। कविता की दृष्टि से ये गलत है। लॉफ्टर शो और लॉफ्टर चैलेंज का ये असर पड़ा कि लोग दिमाग नहीं लगाना चाहते। पर चूकि कविता को सरवाइव करना है इसलिए परफार्मेंस नहीं करेंगे तो कवि सम्मेलन भी खत्म हो जाएंगे। चाहे एक कविता ही दे पाएं कविता की..कम से कम इस माध्यम से वो पहुंच तो रही है।
कहीं इसका अफसोस रहता है कि लोग चुटकुले ज्यादा पसंद कर रहे हैं और आप अपने मन की कविता नहीं सुना पाते?
कोशिश तो करते हैं कि हम वो भी सुनाएं। मेरी कोशिश होती है कि चुटकुले में भी ऐसी कोई बात ले आऊं जो कचोटे। मैं चुटकुले को छोटा नहीं मानता। चुटकुला दो लाइन में बहुत बड़ी बात कहने की क्षमता रखता है। कई बार तो वो कविता पर भी भारी पड़ता है। जहां तक मन की कविता का सवाल है, एक बार माहौल बन जाए आपका तो सुना सकते हो।
और श्रोताओं में किस तरह का बदलाव महसूस कर रहे हैं?
श्रोता भी तुरंत चाहते हैं। सब्र नहीं रहा श्रोताओं में। वो जो क्रिकेट में पांच दिन से एक दिवसीय और एक दिवसीय से ट्वेंटी-ट्वेंटी हो गया है ना..अब बैट्समैन की कलात्मकता देखने की क्षमता तो रही नहीं लोगों में कि उसने कैसा खूबसूरत रक्षात्मक स्ट्रोक खेला। उसको तो छक्का चाहिए। चौका चाहिए। ये ही स्थिति कवि सम्मेलन हो गई है।
खुद अरुण जैमिनी किस तरह की कविताएं पसंद करते हैं?
हास्य की कविता मुझे बहुत अच्छी लगती है। हास्य लिखना सबसे मुश्किल लगता है। व्यंग्य लिखना तो आसान है। हंसाना बहुत मुश्किल है। परिवार के साथ लोग कवि सम्मेलन में आते हैं। अब टीवी पर कॉमेडी विद कपिल नाइट्स आता है। क्या हमारे समाज में बुआ या मां के साथ इस तरह बातें की जाती हैं, जैसे उसमें होती हैं? आप समाज को क्या दे रहे हैं? ये आपका नैतिक दायित्व बनता है कि समाज का सही दिशा दें। अब बच्चे भी शो को देखते हैं। कल को वे बुआ और दादी से उस तरह बात करना शुरू कर दें तो घर का हिसाब-किताब ही खराब हो जाएगा। सारे संस्कार एक झटके में खत्म हो जाएंगे।
आपका वश चले तो मंच पर किस तरह के परिवर्तन करना चाहेंगे?
सबसे पहले मैं ये करना चाहूंगा कि ये जो परफार्मिंग के नाम पर किसी का कुछ भी सुना देते हैं, ये बंद होना चाहिए। कई बार तो कवि का नाम भी नहीं लेते। ये जो स्थिति है, बहुत खतरनाक है। इससे मूल कवि बेचारा मारा जाता है।
कवियों की गुटबंदी और तू मुझे बुला मैं तुझे बुलाऊं वाली प्रवृत्ति से भी तो भला नहीं हो रहा?
ऐसा है सर कि ऐसे कवि चले नहीं हैं। तू मुझे बुला मैं तुझे बुलाऊं वाले कवि बहुत लंबे नहीं चल पाए। कुछ समय तक चले फिर खत्म हो गए।
पहली बार कब लगा कि आपके भीतर कुछ है, जिससे लोगों को हंसा सकते हैं?
मैं आठवीं में था, तब पहली कविता लिखी। पराग पत्रिका निकलती थी। मैं कविता लिखकर वहां दे आया। वो गलती से छप गई। बस..गलतफहमी हो गयी (खुलकर हंसते हैं) कि लिख सकता हूं।
मंचों पर शुरुआत कैसे हुई?
1980 तक तो हास्य कविता लिखी, जो छपी। तब तक पढ़ाई कर रहा था। एक बाल कवि सम्मेलन भी हमने करा दिया था सन इकहत्तर में। तब मैं नौवीं में था। अस्सी में एमए करने के बाद मैं मंच पर आया।
पहला अनुभव कैसा था मंच पर और जैमिनी जी (जैमिनी हरियाणवी) की प्रतिक्रिया कैसी थी?
पहला अनुभव शानदार रहा। पिता जी ने काफी प्रोत्साहित किया। मैं जल्दी-जल्दी पढ़ता था..उन्होंने बताया कि इतनी तेजी से नहीं पढ़ते। उनसे टिप्स भी मिले। सबसे ही टिप्स मिले। बुजुर्गों का आशीर्वाद मिला..आदित्य जी हुए। सुरेन्द्र शर्मा जी हुए..अल्हड़ जी हुए। इन सबका स्नेह मिला।
आपकी और इन सबकी कविताओं में हरियाणवी पुट रहा है। इसकी क्या वजह मानते हैं?
आदित्य जी ने हरियाणवी में कविताएं नहीं लिखी। अल्हड़ जी ने बस एक गीत लिखा..कि मैं अपनी अनपढ़ धन्नो नै फिल्म दिखावण चाल्ला। सुरेन्द्र शर्मा की कविताओं में राजस्थानी पुट था। पिता जी ने हरियाणवी में कविताएं तो खूब लिखीं पर हरियाणवी करेक्टर लेकर नहीं आए। मैं हरियाणवी चरित्र लेकर आया। इसलिए तुलना भी नहीं की गयी कि ये उनसे प्रभावित है या इनसे प्रभावित है।
निसंदेह आप हरियाणवी करेक्टर के जरिए हास्य पैदा करने में सफल रहे हैं पर ये नहीं लगता कि इस प्रयास में हरियाणा के आदमी का मजाक भी बन (उड़) रहा है?
इसमें हरियाणा के आदमी का मजाक कहीं नहीं उड़ता। उसमें हरियाणवी मस्ती सामने आती है। कहीं ऐसा नहीं लगता कि हरियाणवी करेक्टर अनपढ़ है। मूर्ख है या अज्ञानी है। या लट्ठमार है। मेरी कोशिश रहती है कि सिर्फ हरियाणवी मस्ती और चरित्र ही सामने आए।
आप और सुरेन्द्र शर्मा सीधे तौर पर हरियाणा की पृष्ठभूमि से जुड़े हैं। यानी पहचान हरियाणा की मस्ती या करेक्टर को लेकर बनी। बताएंगे कि हरियाणा को आप लोगों ने क्या रिटर्न किया है?
देखो, मैं पूरे विश्व में गया। ऐसी जगह भी गया, जहां हरियाणवी को लोग जानते ही नहीं हैं। एक प्रोग्राम था गुना के पास। मुझे बुलाया गया कि ये हरियाणवी हास्य के कवि हैं तो आठ-दस लोग उठकर जाने लगे कि हरियाणवी हमारे क्या समझ में आएगी? मैंने कहा कि दो मिनट के लिए बैठ जाओ। वो बैठ गए। फिर मजा ही उन्हें उन्हीं चीजों पर आया। पहले किस्से..चुटकुले..पंजाब तक सीमित थे। उसे हमने जन-जन तक पहुंचाया।
मंचों पर आपको तैंतीस साल हो गए हैं। यहां तक की यात्रा से संतुष्ट हैं?
मैं बहुत संतुष्ट हूं।..जब सामने हंसते हुए चेहरे देखता हूं, उसे देखकर अंतर्मन में जो खुशी होती है..उसका आनंद ही अलग है। आज आदमी तनाव में है..जब वो खुलकर हंस रहा होता है बच्चों की तरह तो लगता है कि हम किसी का दिल दुखाकर पैसा नहीं कमा रहे। खुशी देकर कमा रहे हैं।
कभी मन में नहीं आता कि गंभीर विषयों पर भी कविताएं लिखी जाएं?
खूब लिखी हैं। विषय गंभीर होगा तो उस पर गंभीर ही लिखा जाएगा। हर विषय हास्य रस का नहीं होता। मैंने कोशिश की है कि गंभीर भी पढ़ूं। अगर मेरी पुस्तक में देखें तो ऐसी-ऐसी गंभीर कविताएं हैं.. और उनमें से एक भी कविता ऐसी नहीं है, जो मंच पर नहीं पढ़ी हो।
पिछले ढाई-तीन दशक में काव्य मंचों पर किस तरह के बदलाव आए हैं?
बदलाव तो बहुत आया है। अब कवि की जगह परफार्मर ज्यादा हो गये हैं। कविता की दृष्टि से ये गलत है। लॉफ्टर शो और लॉफ्टर चैलेंज का ये असर पड़ा कि लोग दिमाग नहीं लगाना चाहते। पर चूकि कविता को सरवाइव करना है इसलिए परफार्मेंस नहीं करेंगे तो कवि सम्मेलन भी खत्म हो जाएंगे। चाहे एक कविता ही दे पाएं कविता की..कम से कम इस माध्यम से वो पहुंच तो रही है।
कहीं इसका अफसोस रहता है कि लोग चुटकुले ज्यादा पसंद कर रहे हैं और आप अपने मन की कविता नहीं सुना पाते?
कोशिश तो करते हैं कि हम वो भी सुनाएं। मेरी कोशिश होती है कि चुटकुले में भी ऐसी कोई बात ले आऊं जो कचोटे। मैं चुटकुले को छोटा नहीं मानता। चुटकुला दो लाइन में बहुत बड़ी बात कहने की क्षमता रखता है। कई बार तो वो कविता पर भी भारी पड़ता है। जहां तक मन की कविता का सवाल है, एक बार माहौल बन जाए आपका तो सुना सकते हो।
और श्रोताओं में किस तरह का बदलाव महसूस कर रहे हैं?
श्रोता भी तुरंत चाहते हैं। सब्र नहीं रहा श्रोताओं में। वो जो क्रिकेट में पांच दिन से एक दिवसीय और एक दिवसीय से ट्वेंटी-ट्वेंटी हो गया है ना..अब बैट्समैन की कलात्मकता देखने की क्षमता तो रही नहीं लोगों में कि उसने कैसा खूबसूरत रक्षात्मक स्ट्रोक खेला। उसको तो छक्का चाहिए। चौका चाहिए। ये ही स्थिति कवि सम्मेलन हो गई है।
खुद अरुण जैमिनी किस तरह की कविताएं पसंद करते हैं?
हास्य की कविता मुझे बहुत अच्छी लगती है। हास्य लिखना सबसे मुश्किल लगता है। व्यंग्य लिखना तो आसान है। हंसाना बहुत मुश्किल है। परिवार के साथ लोग कवि सम्मेलन में आते हैं। अब टीवी पर कॉमेडी विद कपिल नाइट्स आता है। क्या हमारे समाज में बुआ या मां के साथ इस तरह बातें की जाती हैं, जैसे उसमें होती हैं? आप समाज को क्या दे रहे हैं? ये आपका नैतिक दायित्व बनता है कि समाज का सही दिशा दें। अब बच्चे भी शो को देखते हैं। कल को वे बुआ और दादी से उस तरह बात करना शुरू कर दें तो घर का हिसाब-किताब ही खराब हो जाएगा। सारे संस्कार एक झटके में खत्म हो जाएंगे।
आपका वश चले तो मंच पर किस तरह के परिवर्तन करना चाहेंगे?
सबसे पहले मैं ये करना चाहूंगा कि ये जो परफार्मिंग के नाम पर किसी का कुछ भी सुना देते हैं, ये बंद होना चाहिए। कई बार तो कवि का नाम भी नहीं लेते। ये जो स्थिति है, बहुत खतरनाक है। इससे मूल कवि बेचारा मारा जाता है।
कवियों की गुटबंदी और तू मुझे बुला मैं तुझे बुलाऊं वाली प्रवृत्ति से भी तो भला नहीं हो रहा?
ऐसा है सर कि ऐसे कवि चले नहीं हैं। तू मुझे बुला मैं तुझे बुलाऊं वाले कवि बहुत लंबे नहीं चल पाए। कुछ समय तक चले फिर खत्म हो गए।
अच्छा देश के सामने मुख्य समस्याएं क्या मानते हैं आप?
समस्याएं तो बहुत सारी हैं। भ्रष्टाचार है। महंगाई है। बेरोजगारी है। समस्याओं की कोई कमी नहीं है। काम करने वाला हो तो कितना काम कर सकता है। काम तो नहीं हो रहा ना।
आपने अपने लिए कोई खास लक्ष्य तय किया हो जीवन का?
जीवन का लक्ष्य तो यही है कि जितना हो सके लोगों को खुशी दूं बस। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट ले आऊं तो बस मैं अपने को धन्य समझूंगा। मैं चाहूं कि देश बदल दूंगा.. वो संभव नहीं। मैं कर नहीं सकता। बस यही इच्छा है कि लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाऊं। थोड़ी सी देर के लिए ही सही, उन्हें अगर बच्चा बना सकूं तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
समस्याएं तो बहुत सारी हैं। भ्रष्टाचार है। महंगाई है। बेरोजगारी है। समस्याओं की कोई कमी नहीं है। काम करने वाला हो तो कितना काम कर सकता है। काम तो नहीं हो रहा ना।
आपने अपने लिए कोई खास लक्ष्य तय किया हो जीवन का?
जीवन का लक्ष्य तो यही है कि जितना हो सके लोगों को खुशी दूं बस। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट ले आऊं तो बस मैं अपने को धन्य समझूंगा। मैं चाहूं कि देश बदल दूंगा.. वो संभव नहीं। मैं कर नहीं सकता। बस यही इच्छा है कि लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाऊं। थोड़ी सी देर के लिए ही सही, उन्हें अगर बच्चा बना सकूं तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
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