मंगल ग्रह पर भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि

नासा सहित कई देशों ने इसरो को इस नायाब उपलब्धि पर बधाई देते हुए भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।;

Update:2014-09-25 00:00 IST
मंगल ग्रह पर भारत की ऐतिहासिक उपलब्धि
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बीस सितंबर 2014 की तारीख भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ-साथ दुनिया भर के अंतरिक्ष मिशन के इतिहास में सदा के लिए स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गई है। राष्ट्र के अंतरिक्ष शोध में निसंदेह यह कालजयी घटना है। हमारे देश ही नहीं, पूरे विश्व में भारत की इस ऐतिहासिक उपलब्धि को सहस्र वर्षों तक इस रूप में याद किया जाता रहेगा कि पहले ही प्रयास में आर्यभट्ट के देश ने वह कर दिखाया, जो अमेरिका जैसी महाशक्ति भी नहीं कर सकी। इसी के साथ हमारा देश संसार के उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया, जिनके पदचाप मंगल ग्रह की कक्षा में पड़े हैं। अब से पहले सिर्फ अमेरिका, यूरोपीयन यूनियन और रूस ही इस अनोखे कारनामे को अंजाम देने में कामयाब हो सके हैं। एशिया के दो और मुल्क चीन और जापान मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने के नाकाम प्रयास कर चुके हैं। सुपर पावर बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर भारत के लिए इस सफलता को मील के पत्थर के तौर पर देखा जा रहा है। दुनिया हमारे देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम का लोहा पहले से मानती आई है, परंतु मंगल मिशन की कामयाबी के बाद उसकी साख निश्चित रूप से सातवें आसमान पर पहुंच गई है। नासा सहित कई देशों ने इसरो को इस नायाब उपलब्धि पर बधाई देते हुए भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। 

हमारे वैज्ञानिकों की यह उपलब्धि ऐसे समय परवान चढ़ी है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन बाद अमेरिका की महत्वपूर्ण यात्रा पर रवाना होने जा रहे हैं। यह संयोग ही है कि मंगलयान से मात्र 48 घंटे पहले अमेरिका के नासा का उपग्रह मैवेन मंगल की कक्षा में स्थापित हुआ है। उसने मंगल की दूरी करीब दस महीने में पूरी की है। लगभग इतना ही वक्त भारत के उपग्रह मंगलयान को लगा है, लेकिन दोनों मिशन की लागत और समय में बड़ा भारी अंतर है। अमेरिकी उपग्रह पर भारतीय उपग्रह से दस गुणा अधिक खर्च हुआ है। उनके मिशन को अंजाम तक पहुंचने में चार साल से अधिक का समय लगा जबकि भारतीय वैज्ञानिकों ने दो साल से कम के रिकॉर्ड समय में इसे कर दिखाया। निश्चित रूप से जब बराक ओबामा और नरेंद्र मोदी मिलेंगे, तब एक-दूसरे को बधाई देंगे। हम कह सकते हैं कि अमेरिका यात्रा से ठीक पहले वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को यह ऐसा नायाब तोहफा दिया है, जो उनके मनोबल को नई ऊंचाई देने में कारगर सिद्ध होगा। मोदी की अमेरिका यात्रा का विशेष महत्व है। सब जानते हैं कि 2005 में किस प्रकार राजनीतिक कारणों के चलते अमेरिका ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी का राजनयिक वीजा रद्द कर उन्हें अपमानित किया था। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वही अमेरिका अब उनकी अगवानी में पलक पांवड़े बिछा रहा है। पिछले कुछ वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था और साख के लिहाज से अच्छे नहीं गुजरे हैं। वैश्विक मंदी इसकी एक वजह रही परंतु भ्रष्टाचार, घोटालों की श्रृंखला, महंगाई और तंत्र की खामियों ने संभावनाओं को और भी पलीता लगाने का काम किया। महत्वपूर्ण फैसलों में अनावश्यक देरी और लालफीताशाही ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं आने दिया। गठबंधन सरकार की विवशताओं ने स्पीड़ ब्रेकर का काम किया। नतीजतन शेयर मार्केट में भरोसे की कमी दिखाई दी। नए विदेशी पूंजी निवेश की संभावनाओं के रास्ते बंद हुए। जिन विदेशी निवेशकों ने भारत में पैसा लगा रखा था, वे हड़बड़ी में उसे वापस निकालते दिखाई देने लगे। बढ़ते अनियोजित सरकारी खर्चे ने सरकारी खजाने का दम निकाल दिया। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों से निपटने के लिए जिस तरह की व्यवस्थाओं और फैसलों की दरकार थी, वह समय रहते नहीं हुए। फलत: महंगाई चरम पर पहुंच गई। रोजगार की संभावनाएं न्यूनतम हो गई। विदेशी निवेशक मुंह मोड़ते नजर आए और घरेलू निवेशकों ने भी विदेशों का रुख करना शुरू कर दिया। 

ऐसे में यूपीए सरकार की विदाई तय ही थी लेकिन दस साल तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस 44 सीटों के सबसे न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाएगी, यह किसी ने नहीं सोचा था। जाहिर है, नई सरकार के सामने भरोसा बहाली सबसे बड़ा मुद्दा था। पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारना और विश्व में भारत की साख को बहाल करना सर्वोच्च प्राथमिकता थी। शपथ ग्रहण से ही नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में कदम बढ़ाने का निर्णय लिया। सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाकर उन्होंने बहुत बड़ा कूटनीतिक दांव खेलते हुए पूरी दुनिया को संकेत दिए कि एशिया ही नहीं, पूरे विश्व में भारत की भूमिका बेहद अहम रहने वाली है। भूटान, नेपाल, जापान और ब्राजील की यात्राओं में मोदी ने जहां इन देशों के राष्ट्रप्रमुखों से नजदीकी रिश्ते बनाए, वहीं वहां के आम अवाम का दिल जीतने के यत्न भी किए, जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी रहे। सार्क देशों के लिए सेटेलाइट स्थापित करने का ऐलान करके मोदी ने पड़ोसी देशों के प्रति सदभावना और शुभेच्छा का संदेश भी दिया। 

प्रधानमंत्री मोदी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के प्रयासों में जुटे हैं। जापान गए तो 35 अरब डॉलर का निवेश लेकर लौटे। चीन के राष्ट्रपति भारत आए तो बीस अरब डॉलर के निवेश का ऐलान करके गए। ब्राजील यात्रा के दौरान मोदी भारत को ब्रिक्स देशों की अगुआई दिलाने में सफल सिद्ध हुए। इन देशों ने यूरोपीयन यूनियन और विश्व बैंक पर निर्भरता कम करने के इरादे से जिस ब्रिक्स बैंक की स्थापना का फैसला लिया है, शुरू के छह साल तक उसकी कमान भारत के हाथों में रहने वाली है। अमेरिका रवानगी से ठीक पहले दुनिया भर के उद्योगपतियों और कंपनियों के सीईओ का दिल्ली में सम्मेलन बुलाकर प्रधानमंत्री ने खासकर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में विदेशी पूंजी निवेश के आमंत्रण की दिशा में एक और बड़ी पहल की। इससे ठीक पहले दिन मंगल मिशन की कामयाबी ने निश्चित रूप से विदेशी निवेशकों के मन में भारत की साख के प्रति एक विश्वास बहाली का वातावरण का निर्माण किया होगा। 

नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में भाग लेने के लिए अमेरिका जा रहे हैं। वहां उनके भव्य स्वागत की तैयारी हो रही है। राष्ट्रपति बराक ओबामा उनके स्वागत में विशेष भोज का आयोजन कर रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि जब दोनों राष्ट्रप्रमुख मिलेंगे तब उन क्षेत्रों में सहयोग के द्वार फिर से खुल सकेंगे, जो पिछले कुछ वर्षों की राजनीतिक अस्थिरता और ऊहापोह के चलते शिथिल पड़ गए थे। हालांकि अमेरिका से भारत में बड़े पूंजी निवेश की उम्मीद करना बेमानी है क्योंकि वह खुद बड़े आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है परंतु यह तय मानिए कि मंगल मिशन की सफलता और बदले हुए राजनीतिक हालातों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा सहयोग की नई संभावनाओं के दरवाजे खोलने में कामयाब रहेगी। 

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