नाबालिग पर नई बहस
यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र 18 से 16 करने को लेकर फिर नई बहस शुरू हो गई है।;

यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र 18 से 16 करने को लेकर फिर नई बहस शुरू हो गई है। इसी मुद्दे को लेकर अभी मार्च में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने किशोरों की उम्र घटाकर 16 वर्ष करने की याचिकायें खारिज करते हुए किशोर न्याय अधिनियम को अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों के अनुरूप बताया था, परंतु अब सुप्रीम कोर्ट की ही एक बेंच ने सरकारों से जानना चाहा है कि हत्या, बलात्कार व अपहरण जैसे जघन्य अपराधों में शामिल आरोपी को क्या केवल इसलिए छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उसने अभी 18 साल की उम्र पूरी नहीं की है। शीर्ष अदालत का यह भी कहना है कि बालकों के द्वारा किये जाने वाले गंभीर और कम गंभीर अपराधों के बीच फर्क किया जाना चाहिए। इसी के चलते केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के नाबालिग आरापियों से वयस्क अपराधियों के समान बर्ताव किये जाने की वकालत की है। उनका तर्क है कि 50 फीसदी यौन अपराधों को 10 वर्षीय किशोरों द्वारा अंजाम दिया जाता है। हालांकि दिसंबर 2012 में दिल्ली में सामूहिक दुष्कर्म के बाद गठित जस्टिस जेएस वर्मा समिति ने किशोरों की उम्र घटाकर 16 साल करने के सुझाव को अव्यावहारिक बताकर खारिज कर दिया था। राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग भी किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन के खिलाफ है। उसका साफ कहना है कि इस कानून का मकसद बालकों को सजा देना न होकर उनको सुधारना अधिक है।
राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से साफ है कि नाबालिग किशोरों द्वारा अंजाम दी गई बलात्कार की घटनाओं में अकेले दिल्ली में 158 फीसदी की वृद्घि हुई है। चोरी व डकैती की घटनाओं में इनकी सहभागिता में 200 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सच्चाई यह है कि इन अपराधों में शामिल किशोरों की उम्र 16 से 18 वर्ष के बीच पाई गई। आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 में 33 हजार से अधिक किशोर 25 हजार से अधिक घटनाओं में निरुद्घ हुये। उनमें एक हजार से अधिक बच्चे 7 से 12 वर्ष, ग्यारह हजार बच्चे 12 से 16 वर्ष तथा शेष 16 से 18 वर्ष के आयु समूह में पाये गये। राष्ट्रीय रिकॉर्ड ब्यूरो के देश में हर 15 मिनट में किसी महिला से छेड़छाड़, हर 29 मिनट पर किसी महिला से बलात्कार, हर 77 मिनट पर किसी महिला की दहेज के कारण हत्या, हर 53 मिनट पर किसी महिला का यौन उत्पीड़न तथा हर नौ मिनट पर महिला अपने पति की क्रूरता की शिकार होती है।
लचर आपराधिक न्याय प्रणाली के चलते संगठित अपराध एक उद्योग का रूप ले चुका है। पिछले दिनों देश की शीर्ष अदालत में एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि पिछले तीन साल में देशभर से करीब 55 हजार बच्चे गायब हैं। इस याचिका में न केवल इन बच्चों का पता लगाने की मांग की गई थी, बल्कि बच्चों के अपहरण में संलिप्त माफिया तत्वों को मौत की सजा जैसे कठोर दण्ड देने की मांग भी की गई थी। देखने में आया है ऐसे ही बच्चों का प्रयोग कर वयस्क अपराधी नशीले पदार्थों की तस्करी अथवा उन्हें बंधुआ बनाकर तथा मारपीट करके उनसे बड़े अपराध करवाते हैं। आज ऐसे अनेक गिरोह सक्रिय हैं जो पहले बच्चों को नशे का शिकार बनाते हैं तथा बाद में उनसे चोरी इत्यादि कराई जाती है। ऐसे ही बच्चे कम उम्र में बड़े अपराधों में शामिल करा दिये जाते हैं। ऐसे हजारों नाबालिग आज इन बाल सुधार गृहों में अपना जीवन काट रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसे नाबालिग को सजा तो दूर की बात है, बल्कि उनके खिलाफ आरोप पत्र तक प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। इस प्रक्रिया में उनकी उम्र भी 18 वर्ष को पार कर गई है।
बाल अपराधियों के लिए एक अलग कानून बनाने की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि जब संयुक्त राष्ट्रीय संघ ने बाल अधिकारों का संयुक्त घोषणा पत्र जारी किया तो इस अंतरराष्ट्रीय कानून में 18 वर्ष के किशोर को नाबालिग घोषित किया गया था। साथ ही इसमें बच्चों की अशिक्षा, उत्पीड़न, शोषण तथा अपराध से जुड़े तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए 18 वर्ष तक के बच्चों के मौलिक अधिकार सुनिश्चित किये गये थे। अपने यहां भी इसी संधि के तहत 1992 में संसद में यह कानून पारित कर दिया गया। उसी के अनुपालन में जेजे एक्ट-2000 बनाया गया। पूर्व में इस अधिनियम में कई दोष थे तथा इसमें किशोर की आयु भी 16 वर्ष रखी गई थी। बाद में 2005 में इस कानून में संशोधन करके यह उम्र बढ़ाकर 18 कर दी गई
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