योजनाएं कौन बनाएगा

योजनाएं कौन बनाएगा
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भारतीय रेल पूरी तरह एक वाणिज्यिक गतिविधि है, लिहाजा उसके आर्थिक संतुलन की चिंता करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए

रेल का यात्री किराया और माल भाड़ा, बजट से पहले ही बढ़ाने पर देश भर में तल्ख प्रतिक्रिया है और आम आदमी ठगा-सा महसूस कर रहा है। बेशक यात्रियों को सब्सिडी देने के कारण रेलवे करीब 26,000 करोड़ रुपये का सालाना घाटा झेल रहा है। बीते कई सालों से दुर्घटनाग्रस्त डिब्बों की ही मरम्मत करके उन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है। रेल किराया बढ़ाने के बावजूद घाटा करीब 20,000 करोड़ रहा है। चूंकि भारतीय रेल पूरी तरह एक वाणिज्यिक गतिविधि है, लिहाजा उसके आर्थिक संतुलन की चिंता करना और उसे दुरुस्त करना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए लेकिन रेल किराया बढ़ने से चौतरफा महंगाई बढ़ेगी। नतीजतन मोदी सरकार के प्रति असंतोष और आक्रोश के आसार पुख्ता हो सकते हैं। मोदी सरकार ने यह फैसला लेने का जोखिम ही क्यों लिया?

दरअसल, यह बुनियादी तौर पर योजना का मुद्दा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अघोषित तौर पर योजना आयोग को ही बंद करने के संकेत दिए हैं। देश की अर्थव्यवस्था और योजनाओं को एक ढांचागत स्वरूप देने के मद्देनजर पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जिस योजना आयोग की परिकल्पना करते हुए उसका गठन किया था और भाजपा के पहले प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने चिंतन के लिए कमेटी बनाने के बावजूद उस आयोग के अस्तित्व को कायम रखा था, मौजूदा प्रधानमंत्री उसका पटाक्षेप करते प्रतीत हो रहे हैं। हालांकि कैबिनेट को अभी आखिरी फैसला लेना है। आखिर ऐसे संकेत क्यों मिल रहे हैं?
मोदी सरकार अपना पहला महीना पूरा कर चुकी है, लेकिन योजना आयोग के पुनर्गठन की कोई भी कोशिश सामने नहीं आई है, जबकि यूपीए सरकार के दौरान आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया तथा अन्य सभी सदस्य नई सरकार के आने के बाद अपने पदों से इस्तीफा दे चुके हैं। योजना आयोग आजकल अनाथ है। सरकार के आम बजट, रेल बजट, आर्थिक समीक्षा सरीखे बेहद महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर कार्य निरंतर जारी है, लेकिन पहली बार है कि योजना आयोग की कोई भूमिका नहीं है। लिहाजा सत्ता के गलियारों में लगातार इस सवाल पर चर्चाएं जारी हैं कि क्या योजना आयोग को अंतत: बंद कर दिया जाएगा? यदि ऐसा होगा, तो योजनाएं कौन बनाएगा और योजनाओं की समीक्षा कौन करेगा? बजट, आर्थिक विकास दर और भुगतान संतुलन तथा पंचवर्षीय योजनाओं पर चिंतन कौन करेगा? और कौन दिशा दिखाएगा? ये सामान्य स्थितियां नहीं हैं।
दरअसल, स्वतंत्र भारत में अभी तक विभिन्न मंत्रालयों की आर्थिक जरूरतें, बजट, योजनाएं और प्राथमिकताएं आदि योजना आयोग ही पर्याप्त विर्मश के बाद तय करता आया है। वित्त मंत्रालय रोज के रूटीन कामों को देखता आया है और योजना आयोग एक विशेषज्ञ की भूमिका में रहा है। बजट से पूर्व मंत्रालयों के साथ आयोग की बैठकें होती रही हैं। उन संवादों के दौरान मंत्रालयों के तमाम खाते देखे जाते रहे हैं। उसी आधार पर बजट की राशि तय की जाती रही है, जिसे गोपनीय तौर पर वित्त मंत्रालय को भेजा जाता रहा है। इस बार ढर्रा भिन्न है। वित्त मंत्रालय ही अपने आधार पर बजट तैयार कर रहा है।
योजना आयोग देश के सभी राज्यों की अर्थव्यवस्था को भी देखता रहा है। राज्यों का बिक्री कर कितना है, मोटर वाहन कर कितना है, खर्च और उधार के अनुपात कैसे हैं। आयोग इनके संदर्भ में राज्यों के संसाधनों का विश्लेषण करता रहा है और उसी आधार पर बजटीय राशि आवंटित करता रहा है। यदि योजना आयोग को ही बंद कर दिया जाएगा, तो ऐसे विश्लेषण कौन करेगा? देश की आर्थिक विकास दर, बैलेंस ऑफ पेमेंट और पांच-दस साल आगे की योजनाएं तय करने का काम कौन करेगा? क्या भारत जैसा विराट राष्ट्र भविष्य की योजनाओं के बिना चल सकता है?

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