आर्कटिक में बनी भारत की पहली मल्टी सेंसर वेधशाला, जलवायु परिवर्तन पर होगा विशेष अध्ययन

नई दिल्ली. भारत ने आर्कटिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। 23 जुलाई 2014 को देश की पहली मल्टी सेंसर वेधशाला को सफलतापूर्वक बना दी गई है। यह सफलता अंटार्कटिक और महासागर अनुसंधान राष्ट्रीय केन्द्र एवं राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान के सहयोग से मिली है। यह वेधशाला आर्कटिक, नार्वे और उत्तरी ध्रुव के बीच में लगाई गई है। यह वेधशाला वर्तमान में 192 मीटर की गहराई पर उत्तरी ध्रुव से 1100 के बारे किमी दूर पर है। यह वेधशाला देश की सूचना तकनीक को मजबूती प्रदान करेगी और आशा की जा रही है इससे देश की सुरक्षा और मजबूत होगी।
कॉन्ग्सजॉर्डन आर्कटिक समुद्री अध्ययन के लिए एक स्थापित जगह है। इसे आर्कटिक जलवायु परिवर्तन के लिए प्राकृतिक प्रयोगशाला माना गया है। यह प्रयोगशाला आर्कटिक में होने वाली हरेक गतिविधियों और सूचनाओं को प्राप्त करती है और सूचित करता है। इसके साथ ही मौसम में परिवर्तन, तापमान में विविधता और पानी में बढ़ती हलचलों को भी प्राप्त करती है। भारतीय आर्कटिक वेधशाला समुद्र की गहराईयों से मुश्किल डाटा को भी इकट्ठा करेगी। साथ ही सर्दी के मौसम में भी महत्वपूर्ण जानकारी को इकट्ठा करेगी क्योंकि इस वक्त डाटा लेने में काफी परेशानी होती है। भारत की यह वेधशाला भारतीय छात्रों को जलवायु पर विशेष अध्ययन का भी मौका देगी।
देश की पहली मल्टी सेंसर वेधशाला को डिजाइन, विकास और इसके क्षमता के अनुसार तैयार किया गया है ताकि इससे उपयुक्त परिणाम पाया जा सकता है। यह वेधशाला नार्वेजियन पोलर संस्थान के सहयोग से तैयार की गई है। यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन के सामाधान के लिए अहम् साबित होगा। इससे नार्वे और भारत के बीच राजनीतिक सहयोग के अलावा वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग का एक अच्छा उदाहरण है। भारत और नार्वे ने एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किया जिसमें यह कहा गया है कि आगे भी कई अहम् मुद्दों पर भारत और नार्वे एक-दूसरे को सहयोग करेगा।
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