गरीबों का मजाक नहीं उड़ने देगी सरकार! गरीबी की परिभाषा बदलने को बनेगा रोडमैप

मोदी सरकार ने देश के गरीबों के लिए योजनाएं लागू करने के साथ उनकी गरीबी को दूर करने वाली समस्याओं से निपटने का संकल्प लिया है। सूत्रों के अनुसार योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग का गठन करने के बाद सरकार ने इस दिशा में एक व्यापक योजना पेश करने का फैसला किया है, लेकिन इससे पहले सरकार गरीबी के पैमाने की समीक्षा करेगी। मौजूदा सरकार ने गरीबी को लेकर सी रंगराजन समिति की सिफारिशों से जुड़ी सीमा को अभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है, जिसके कारण संभावना व्यक्त की जा रही है कि मोदी सरकार गरीबी रेखा से नीचे और उससे ऊपर के लोगों का वर्गीकरण करने के लिये खर्चों के स्तर में बढ़ोतरी को बढ़ा सकती है।
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मोदी सरकार गरीबों को लेकर उस रणनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती, जिस प्रकार सितंबर 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा शपथ पत्र देकर गरीबी को मजाकिया के हाशिए पर खड़ा करने फजीहत का सामना करना पड़ा था। यूपीए सरकार ने वर्ष 2010-2011 को मुद्रास्फीति को आधार वर्ष मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिये इस शपथ पत्र में गरीबी रेखा के जिस पैमाने को माना था उसमें शहरी व्यक्ति प्रतिदिन 32 रुपये और गांव के व्यक्ति को प्रतिदिन 26 रुपये से ज्यादा कमाने वालों को गरीबी की सीमा से ही अलग कर दिया गया था। मसलन यूपीए सरकार ने गरीब के लिए जो नई परिभाषा गढ़ी थी उसे मोदी सरकार गरीबों के सम्मान में नई परिभाषा के रूप में सामने लाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
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