क्यों आते हैं समुद्री तूफान

क्यों आते हैं समुद्री तूफान
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ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तट की करीब 200 किलोमीटर घंटे की रफ्तार से विनाशकारी हवाएं आयीं और तटीय क्षेत्रों में भारी कहर ढाया।

नई दिल्ली. पिछले साल आये चक्रवाती तूफान फैलिन की मार से उबर रहे आंध्र और ओडिशा पर हुदहुद के थपेड़े पड़ने शुरू हो गये हैं। इससे कितना नुकसान होगा इसका पता तो बाद में चलेगा पर भारत के पूर्वी तट और बांग्लादेश में बार-बार तूफान आते क्यों हैं? इस बारे में नेशनल साइक्लॉन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट का कहना है कि उत्तरी हिन्द महासागर से आने वाले तूफान दुनिया में आने वाले कुल तूफानों का सिर्फ सात फीसदी ही होते हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के तटों पर इन तूफानों का असर सबसे ज्यादा गंभीर होता है।

चक्रवात की इस गंभीर समस्या के लिए तूफान के वक्त उठने वाली ऊंची लहरों को जिम्मेदार माना जाता है। मौसम विभाग का मानना है कि समुद्र जल छिछला होने की वजह से भारत के पूर्वी तट पर लहरें ऊंची उठती हैं, लेकिन भारत का पश्चिमी तट पूर्वी तट की तुलना में शांत है। 1891 से 2000 के बीच भारत के पूर्वी तट पर 308 तूफान आये। इसी दौरान पश्चिमी तट पर सिर्फ 48 तूफान आये। इसकी वजह भी है। भारत के मौसम विभाग के मुताबिक पश्चिम बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनने वाले तूफान या तो बंगाल की खाड़ी के दक्षिण पूर्व में बनते हैं या उत्तर पश्चिम प्रशांत सागर पर बनने वाले तूफानों के अंश होते हैं जो हिन्द महासागर की ओर बढ़ते हैं।

मौसम विभाग मानता है कि तूफान से तीन तरह के खतरे होते हैं। भारी बारिश, तेज हवाएं और ऊंची लहरें। इन तीनों में भी सबसे खतरनाक ऊंची लहरें ही हैं और हाई टाइड के वक्त लहरें और ज्यादा उठती हैं। ये तब और भयानक हो जाती हैं जब समुद्र का तल छिछला होता है। उत्तर पश्चिम प्रशांत सागर पर बनने वाले तूफान वैश्विक औसत से ज्यादा होते हैं इसलिए बंगाल की खाड़ी पर ज्यादा तूफान बनते हैं या बंगाल की खाड़ी पर बनने वाले तूफानों के अंश होते हैं। क्योंकि बंगाल की खाड़ी पर बनने वाले तूफान जमीन से टकराने के बाद कमजोर पड़ जाते हैं इसलिए ऐसा कम ही होता है कि अरब सागर तक पहुंचे।
इसके अलावा बंगाल की खाड़ी की तुलना में अरब सागर ठंडा है इसलिए इस पर ज्यादा तूफान नहीं बनते। माना जाता है कि तूफान से निपटने की कमजोर तैयारी की वजह से मुश्किल बढ़ जाती है। मौसम विभाग मानता है कि तूफान से तीन तरह के खतरे होते हैं। भारी बारिश तेज हवाएं और ऊंची लहरें। इन तीनों में भी सबसे खतरनाक ऊंची लहरें ही हैं और हाई टाइड के वक्त लहरें और ज्यादा उठती हैं। ये तब और खतरनाक हो जाती हैं जब समुद्र का तल छिछला होता है।
गुजरात के आसपास के पश्चिमी तट पर ऊंची लहरें उठने का खतरा कम है, लेकिन पूर्वी तट पर हम जैसे-जैसे तमिलनाडु से ऊपर आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल की ओर बढ़ते हैं, ये खतरा बढ़ता जाता है। जब एक विशेष तीव्रता का तूफान भारत के पूर्वी तट और बांग्लादेश से टकराता है तो इससे जो लहरें उठती हैं वे दुनिया में किसी भी हिस्से में तूफान की वजह से उठने वाली लहरों के मुकाबले ऊंची होती हैं। इसके पीछे वजह है तटों की खास प्रकृति और समुद्र का छिछला तल। ये सही है कि ऊंची लहरें तबाही मचाती हैं, लेकिन जनसंख्या के ज्यादा घनत्व और तूफानों के प्रति लोगों के जागरूक न होने या इनसे निपटने में सरकारों की कमजोर तैयारी की वजह से मुसीबत और बड़ी हो जाती है।
ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाके में पिछले दिनों आये समुद्री तूफान ‘फैलिन’ ने भारी कहर बरपाया। हालांकि उतनी तबाही नहीं हुई जितनी आशंका प्रकट की गयी थी। क्योंकि जापानी और अमेरिकी मौसम विभाग ने इस समुद्री तूफान ‘फैलिन’ के आने के सूचना भारतीय मौसम विभाग को बहुत पहले ही दे दी थी। मौसम विभाग ने पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों के लिए ‘अलर्ट’ भी जारी कर दिया था।
पिछले साल आए ‘फैलिन’ एशियाई देशों की ओर से 2004 में भेजे गये तूफानों के नाम की लिस्ट के ‘फस्र्ट सेट’ का आखिरी नाम था। इसके पहले जिस चक्रवाती तूफान ने भारत के तटों पर दस्तक दी थी, उसका नाम ‘महासेन’ था। यह तूफान मई 2013 में आया था। तूफानों का ऐसा नाम रखा जाता है जिसे आम आदमी समझ सके और उन्हें समय पर अलर्ट किया जा सके। सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञानी ने इसकी शुरुआत की थी जो अपने नापसंद नेताओं के नाम पर तूफान का नाम रखते थे। दुनिया भर के मेट्रोलॉजिकल विभाग तूफान का नाम देते हैं।
महिलाओं के नाम तूफान का नाम रखना आम है। लिहाजा कई बार विरोध भी होता रहा है। भारत में दिल्ली स्थित मेट्रोलॉजिकल सेंटर चक्रवाती तूफानों का नाम देता है। फैलिन के बाद अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में आने वाले अगले तूफान का नाम ‘हेलन’ होगा यह नाम बांग्लादेश ने भेजा है। यह सिस्टम अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में आने वाले तूफानों की पहचान के लिए अपनाया जाता है। कुछ तूफानों के नाम दोबारा इस्तेमाल भी किये जाते हैं।
आमतौर से भारत में तूफान आने का महीना अप्रैल से दिसम्बर के बीच होता है। इस दौरान ही सबसे ज्यादा जन-धन की हानि, घरों का नुकसान और फसलों की तबाही होती है। समुद्री तूफानों की तीव्रता को पांच र्शैणियों में बांटा गया है। पहली र्शेणी के तूफानों में हवा की रफ्तार 90 से 125 किलोमीटर प्रति घंटा, पेड़ों और फसलों को कुछ नुकसान, घरों को कोई नुकसान नहीं होता है। दूसरी र्शेणी के तूफानों में तबाही करने वाली हवा 125 से 164 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती है। पेड़ों और फसलों को अधिक नुकसान, बिजली ठप्प होना, और घरों पर असर पड़ता है।
तीसरी श्रेणी के तूफानों में भारी तबाही करने वाली हवाएं 165 से 224 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। इमारतों को थोड़ा नुकसान, पशुओं और फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। चौथी श्रेणी के तूफानों में रास्ते की कई चीजों को अपने चपेट में ले लेने वाली 225 से 279 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाएं चलती हैं। इसमें घरों और इमारतों को नुकसान जान-माल की हानि, बिजली का ठप्प पड़ जाना शामिल है। पांचवीं र्शेणी के तूफानों में सबसे ज्यादा नुकसान करने वाली 280 किलोमीटर प्रति घंटे से चलने वाली तेज हवाएं चलती हैं, जिससे धन जन की भारी तबाही होती है।
ओडिशा और आंध्र प्रदेश में आया तूफान तीसरी श्रेणी का बताया गया है। इसमें ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तट की करीब 200 किलोमीटर घंटे की रफ्तार से विनाशकारी हवाएं आयीं और तटीय क्षेत्रों में भारी कहर ढाया। 1999 में ओडिशा में आये तूफान के कारण दस हजार लोगों की जानें गयी थीं। पिछले 124 सालों में ओडिशा में सत्ताइस तूफान आ चुके हैं। तूफान कच्चे मकानों, पेड़ों, फसलों, बिजली-टेलीफोन के खंभों को खासतौर से नुकसान पहुंचाते हैं। इनसे सड़क संपर्क और रेल आवागमन भी बाधित होता है। अटलांटिक महासागर के तूफानों को हरिकेन और हिन्द महासागर के तूफानों को साइक्लोन (चक्रवात) कहा जाता है।
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