30 साल पहले की थी चोरी, अब खानी होगी जेल की हवा
मामला 1986 में की गई चोरी से जुड़ा है

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haribhoomi.comCreated On: 8 Dec 2016 12:00 AM GMT
अहमदाबाद. 30 साल पहले की गलती अगर किसी को अब मिले तो सुनकर अचरज तो होगा ही। साथ ही ये हमारी न्यायपालिका भी पर सवाल उठाता है। मामला 1986 में की गई चोरी से जुड़ा है। 30 साल पहले प्रकाश त्रिवेदी और लक्ष्मीचंद परमार को जेल की सजा सुनाई गई थी। उनके खिलाफ जांच करते हुए CBI ने पाया था कि दोनों ने नवरंगपुरा डाकखाने में काम करते हुए कीमती सामान, डिमांड ड्राफ्ट, अंतर्राष्ट्रीय मनीऑर्डर और कई अन्य चीजें चुराईं।
उनके खिलाफ फैसला सुनाते हुए एक निचली अदालत ने पहले ही उन्हें जेल भेज दिया था, लेकिन फिर इस फैसले के खिलाफ अपील करने के कारण कुछ समय बाद ही वे जमानत पर छूटकर बाहर आ गए थे। अब तकरीबन 30 साल बाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए उन्हें जेल भेजे जाने का निर्णय दिया है।
त्रिवेदी को 4 साल जेल की सजा काटनी होगी। वहीं सजा काटने का वक्त आने से पहले ही परमार की मौत हो चुकी है। गुजरात हाई कोर्ट ने त्रिवेदी को 4 हफ्ते के अंदर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने को कहा है। जानकारी के मुताबिक, साल 1982-84 के बीच त्रिवेदी और परमार नवरंगपुरा डाकखाने में डाकिये के पद पर नियुक्त थे। दोनों ने मिलकर योजना बनाई और डाकखाने में आने वाले मनी ऑर्डर्स, पोस्टल ऑर्डर, डिमांड ड्राफ्ट, चेक की चोरी करने लगे। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर वे दोनों नकली बैंक खाता खुलवाते और उसमें ये पैसे जमा करवा लेते। उन्होंने इस तरह के कई बैंक खाते खुलवाए।
दोनों के ऊपर ग्राहकों तक उनका सामान और पोस्टल ऑर्डर ना पहुंचाने का आरोप लगा। इस फर्जीवाड़े का पता 1984 में तब लगा, जब डाकखाने के पास कई लोगों की शिकायतें आने लगीं। लोगों का आरोप था कि उनके दोस्तों और रिश्तेदारों द्वारा भेजा गया सामान और पैसा उनतक पहुंचता ही नहीं है। इस मामले की जांच का काम CBI को सौंपा गया। 1986 में यह केस शुरू हुआ। एक मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने दोनों को धोखाधड़ी के लिए 3 साल और आपराधिक साजिश व फर्जीवाड़े के लिए 4 साल जेल की सजा सुनाई। दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थी।
त्रिवेदी ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की। अब जाकर उसकी सुनवाई हुई है। जस्टिस सैयद ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निचली अदालत का फैसला सही था और इसे बरकरार रखा जाता है।
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