सांड पालने के लिए महिला ने नहीं की शादी
मेलूर गांव में रहने वाली 48 साल की सेल्वरानी ने कम उम्र सांड को पालने की जिम्मेदारी ले ली थी। उनका मानन है कि भाई सांड की परवरिश नहीं कर पाते थे।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 15 Jan 2018 6:44 PM GMT
दक्षिणी भारतीय राज्य तमिलनाडु के मुदरै जिले की रहने वाली सेल्वरानी कनगारासू ने फ़ैसला किया है कि वो कभी शादी नहीं करेंगी। ऐसा करने के पीछे उनके पास एक बड़ी वजह है।
मेलूर गांव में रहने वाली 48 साल की सेल्वरानी ने कम उम्र में ही फ़ैसला ले लिया था कि वो एक सांड को पालेंगी, जो बाद में जल्लीकट्टू प्रतियोगिता में हिस्सा ले सके। जल्लीकट्टू हट्टे-कट्टे सांडों को वश में करने का खेल है, जिसमें युवा हिस्सा लेते हैं।
ये खेल पोंगल त्योहार के दौरान खेला जाता है। सेल्वरानी को लगा कि ऐसा कर के वो अपने परिवार की परंपरा को बचा सकती हैं। उनके परिवार के लोग इस त्योहार के लिए सांड पालते हैं। सेल्वरानी कहती हैं कि उनके पिता कनगरासू और दादा मुत्थुस्वामी का मानना था कि जल्लीकट्टू के सांड को पालना बच्चे की परवरिश करने जैसा है।
भाइयों की ज़िम्मेदारी को बहन ने संभाला
सेल्वरानी बताती हैं, जब तीसरी पीढ़ी की बारी आई तो मेरे दोनों भाइयों के पास सांड की देखरेख के लिए समय नहीं था। परिवारों में सांडों के मालिक पुरुष ही होते हैं, लेकिन देखा जाए तो महिलाएं ही सांडों को चारा देती हैं, उनके रहने की जगह को साफ करती हैं। महिलाएं ही उनके स्वास्थ्य का ख़याल रखती है और उन पर नज़र रखती हैं।
वो अपने पुराने दिनों की बात को याद करते हुए कहती हैं, मैं अपना परिवार और अपने जुनून यानी सांड पालने के बीच में खुद को बांटना नहीं चाहती थी। सो मैंने दूसरे विकल्प को चुना। मैं चाहती थी कि हमारे परिवार की परंपरा आगे बढ़े।
मेरा परिवार है यह सांड
वो कहती हैं, "मैंने जो किया उस पर मुझे केवल गर्व नहीं है बल्कि मैं बहुत खुश हूं कि मेरा परिवार बस मेरा ये सांड है। ये बड़े शरीर वाला है और मैदान में उतरने पर एक गुस्सैल जानवर बन जाता है लेकिन ये बहुत प्यारा है।"
भारतीय समाज में जो महिलाएं शादी नहीं करने का निर्णय लेती हैं, अक्सर उनको अलग नजरों से देखा जाता है। सेल्वरानी के परिवार और रिश्तेदार उनके अकेले रहने के फ़ैसले से नराज हैं, लेकिन आख़िर में उन्होंने उनके फ़ैसले को अपना लिया है। यहां तक कि मेलूर गांववासी भी सेल्वरानी के फैसले और गरीबी के बावजूद भी सांड पालने के उनकी इच्छा की तारीफ करते हैं।
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जल्लीकट्टू और स्पेन की बुलफ़ाइटिंग एक समान है?
सेल्वरानी ने सांड का नाम रामू रखा है। सेल्वानी हस्ती हुई कहती है कि रामू की एक बच्चे की तरह देखभाल की जाती है। सेल्वरानी खेतों में मज़दूरी करने का काम करती हैं। जिस दिन काम होता है, वो एक दिन में करीब दो सौ रुपये तक कमा लेती हैं।
जितना भी वो कमाती है वो सारा पैसा रामू के चारे में लगा देती हैं। रामू के चारे में नारियल, खजूर, केले, तिल, मूंगफली तेल केक (खळ), बाजरा और चावल शामिल किया जाता है।
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