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लोकसभा चुनाव 2019: अब न मुजफ्फरनगर का दंगा है न कैराना का पलायन, आखिर कैसे जीतेगी भाजपा

यूपी के पश्चिम का ये हिस्सा 2014 के चुनाव से अब एकदम बदल गया है। 2014 में मोदी लहर के साथ-साथ मुजफ्फरनगर का दंगा भी था जिसमें 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस हिंसा से लोगों में भय का माहौल था लोग सत्ता परिवर्तन के लिए एकजुट हुए और पलट दिया।

लोकसभा चुनाव 2019: अब न मुजफ्फरनगर का दंगा है न कैराना का पलायन, आखिर कैसे जीतेगी भाजपा
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लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। गुरुवार को 20 राज्यों की 91 सीटों में 8 सीटें उत्तर प्रदेश की भी है। यूपी के पश्चिम का ये हिस्सा 2014 के चुनाव से अब एकदम बदल गया है। 2014 में मोदी लहर के साथ-साथ मुजफ्फरनगर का दंगा भी था जिसमें 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इस हिंसा से लोगों में भय का माहौल था लोग सत्ता परिवर्तन के लिए एकजुट हुए और पलट दिया।

सितंबर 2013 के दंगों के बाद लोगों ने पलायन शुरू कर दिया था। दंगे ने सभी जातियों को एकदम अलग कर दिया। सब एकदूसरे के दुश्मन बन गए और यही चुनाव में दिखा। जाटव, गुर्जर और मुस्लिम समाज ने तुरंत में अपना नेता चुन लिया। आरएलडी नेता अजीत सिंह उनके बेटे जयंत ने पिछले कुछ सालों में सद्भावना रैलियां करके माहौल को बेहतर करने की कोशिश की। काफी हद तक सफल भी रहे।

सपा-बसपा के गठबंधन से पार पाने की चुनौती

पिछले लोकसभा चुनाव में सपा बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा जिसके कारण वोटों का बिखराव हुआ और भाजपा को इसका फायदा मिल गया। लेकिन इस बार का माहौल एकदम अलग है। आरएलडी-बसपा-सपा एक हैं, साथ ही राज्य और केंद्र में भाजपा की सरकार है और लोगों को सरकार से शिकायत है। शिकायत का एक कारण ये भी है कि हाल ही में बुलंदशहर में सीनियर पुलिस अफसर की हत्या कर दी गई थी। साथ ही किसानों के गन्ने का बकाया भुगतान करने के जिस वायदे के साथ इन्होंने सरकार बनाई उस वायदे पर अभी खरे नहीं उतरे हैं।

एकजुट विपक्ष की चुनौती

इस बार बीजेपी के सामने एकजुट विपक्ष की चुनौती है। पिछली बार एसपी, बीएसपी, आरएलडी और कांग्रेस ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार एसपी-बीएसपी और आरएलडी के महागठबंधन के चलते यूपी में बीजेपी को कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। कांग्रेस इस गठजोड़ का हिस्सा नहीं है, लेकिन यूपी की बेहद कम सीटों पर उसका प्रभाव है। ऐसे में महागठबंधन की ओर से बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल सकती है और उसका विरोध करने वाले मतदाताओं के लिए एक विकल्प रहेगा। 2014 में लोग सत्ता परिवर्तन के लिए एकजुट होकर उन प्रत्याशियों को भी जितवा दिया जो पहली बार चुनाव में उतरे थे। जिन्हें राजनीति का खास अनुभव नहीं पर इसबार माहौल एकदम अलग है। 5 साल तक सांसद रहने के बाद ऐंटी-इन्कम्बैंसी का सामना करना पड़ रहा है। इस बात को भाजपा बखूबी समझती है इसीलिए पिछले चुनाव में जीते कई प्रत्याशियों को इसबार मैदान में नहीं उतारा है।

उग्र चुनाव प्रचार

2014 के चुनाव में भाजपा का चुनाव प्रचार उग्र था। धार्मिक नारों की विशेष जगह थी। राम मंदिर का ज्वलंत मुद्दा था पर इसबार पार्टी ने एक नई रणनीति के साथ चुनाव में आई। विकास को प्रमुख हथियार बनाया और लोगों तक अपनी योजनाए लेकर गए। अब फैसला जनता के हिस्से है।

एक बात तो साफ है कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुत अन्तर है। जिन मुद्दों पर भाजपा ने सरकार बनाई उनमें कई मुद्दे आज वैसे ही बने हैं। साथ ही यूपी की इन 8 सीटों के बाद ये कह पाना कि ऊंट किस करवट बैठेगा बेहद मुश्किल है। जनता के मिजाज से लग रहा कि चुनाव बेहद मजेदार होने वाला है

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