कोर्ट ने अनुपस्थिति पर डिप्टी एसपी को सुनाई छह महीने की सजा, जानिए क्या है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में गुरुवार को पोक्सो अदालत ने पुलिस उपाधीक्षक स्तर के एक अधिकारी को नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के मामले में रिपोर्ट दर्ज न करने वाले थानाध्यक्ष के खिलाफ कार्यवाही न करने, उसे व मुख्य अभियुक्त को कथित तौर पर बचाने का प्रयास करने और पीड़िता के बयान दर्ज न करने आदि के मामले में छह वर्ष के कारावास एवं 1,000 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 21 Sep 2018 6:08 AM GMT
उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में गुरुवार को पोक्सो अदालत ने पुलिस उपाधीक्षक स्तर के एक अधिकारी को नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ एवं यौन उत्पीड़न के मामले में रिपोर्ट दर्ज न करने वाले थानाध्यक्ष के खिलाफ कार्यवाही न करने, उसे व मुख्य अभियुक्त को कथित तौर पर बचाने का प्रयास करने और पीड़िता के बयान दर्ज न करने आदि के मामले में छह वर्ष के कारावास एवं 1,000 रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई।
साथ ही, न्यायाधीश ने राज्य के गृह सचिव को पत्र लिखकर आदेश के अनुपालन के लिए अधिकारी को कार्यमुक्त करने, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक सर्कुलर के अनुसार ऐसे मामलों में उनके खिलाफ गैर जमानती वारण्ट जारी करने के निर्देश भी दिए हैं।
अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (पोक्सो एक्ट) विवेकानन्द शरण त्रिपाठी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को वादी पक्ष के परिवार को जानमाल की पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराने तथा नया विवेचक नियुक्त करने के भी निर्देश दिए हैं।
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न्यायाधीश ने पूरे मामले की जानकारी राज्य एवं राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोगों को भी सूचित करने को कहा है। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता प्रवीण कुमार सिंह ने बताया कि यह मामला बीती 7 जुलाई का है जब छाता कोतवाली क्षेत्र के एक गांव के एक व्यक्ति ने थाना प्रभारी प्रमोद पवार को पहले मौखिक रूप से सूचित किया कि गांव के ईश्वर दयाल (40) ने अपनी बहन के साथ शौच करने गई उसकी 10 वर्षीय पुत्री के साथ बेहद अश्लील हरकत की, उसे रुपए देकर फुसलाना चाहा और यौन उत्पीड़न किया।
उन्होंने बताया कि इसके बाद उसने थाने पहुंचकर लिखित शिकायत भी दी। परंतु, उसकी शिकायत दर्ज न कर थाना प्रभारी द्वारा अभियुक्त एवं उसके साथी गुण्डों द्वारा वादी पर बयान बदलने का दबाव बनाने, सुलह करने एवं धमकाने का मौका दिया गया। लेकिन जब उसने 31 जुलाई को एसएसपी के यहां गुहार लगाई, तब कहीं जाकर 23 अगस्त को उसकी रिपोर्ट लिखी गई।
उसके बाद भी उसे जान से मारने की धमकी दी जाती रही और पुलिस अभियुक्त को गिरफ्तार करने से बचती रही। एडीजीसी ने बताया कि इसके बाद वादी ने अदालत में प्रार्थना पत्र देकर न्याय दिलाने तथा सुरक्षा की मांग की। इस पर अदालत ने पोक्सो एक्ट की धारा 21 एवं भादंसं की धारा 166ए के तहत रिपोर्ट दर्ज करना जरूरी बताते हुए छाता क्षेत्र के उपाधीक्षक चंद्रधर गौड़ को जांच कर उचित कार्यवाही करने के निर्देश दिए।
परंतु, उन्होंने निर्देशों के अनुसार कार्य नहीं किया, बल्कि पुनः आदेश दिए जाने के बाद भी अभियुक्त प्रमोद पवार व ईश्वर दयाल को बचाने का प्रयास करते हुए पूरी तरह से ढिलाई बरती।
उन्होंने बताया कि सीओ छाता ने नियमानुसार पीड़िता के धारा 164 में अपेक्षित बयान तक दर्ज नहीं कराए। न ही मुख्य अभियुक्त ईश्वरदयाल को गिरफ्तार किया। इस पर आज सुनवाई के दौरान संबंधित अधिकारी के उपस्थित न होने पर न्यायाधीश त्रिपाठी ने उन्हें छह माह के कारावास तथा एक हजार रुपए के अर्थदण्ड की सजा सुनाई। जुर्माना न भरे जाने की स्थिति में अभियुक्त पुलिस उपाधीक्षक को 10 दिन की जेल अतिरिक्त रूप से भुगतनी होगी।
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