दारुल उलूम का अहम फैसला, 3 हजार मदरसों को सरकारी मदद न लेने का आदेश
दारुल उलूम देवबंद ने मदरसों को किसी भी तरह की सरकारी सहायता लेने से मना कर दिया है।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 15 March 2018 6:26 PM GMT
दारुल उलूम देवबंद ने मदरसों को किसी भी तरह की सरकारी सहायता लेने से मना कर दिया है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में स्थित मुस्लिम समुदाय के प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने यह आदेश पूरे देश के 3,000 मदरसों को भेजा है।
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दारुल उलूम देवबंद ने देश के तीन हजार मदरसों को यह निर्देश देते हुए कहा है कि वे सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी प्रकार की सहायता को स्वीकार न करें। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इन मदरसों का ज्यादातर खर्च समुदाय के लोगों द्वारा दिए जाने वाले दान से चलाया जाता है।
बता दें कि सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद का उपयोग केवल शिक्षकों को वेतन देने के रूप में किया जाता है। सोमवार को हुई मदरसा प्रबंधन राबता-ए-मदारिस की बैठक ने आठ प्रमुख फैसले लिए हैं। मदरसा प्रबंधन की बैठक में यह फैसला लिया गया है कि मदरसों को अपनी प्रत्येक संपत्ति का रिकॉर्ड रखना होगा।
दारुल उलूम ने दिए निर्देश
इसके साथ ही मदरसों से गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते बनाने के लिए कहा गया है। इतना ही नहीं, मदरसों के समारोह में उन्हें आमंत्रित करने के लिए भी कहा गया है। मीडिया से हुई बातचीत में दारुल उलूम के मोहातमीम अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि मदरसा चलाने के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली किसी भी प्रकार की सहायता न लेने को लेकर उनकी स्थिति हमेशा से ही साफ रही है।
मिली जानकारी के अनुसार नोमानी ने कहा कि “अगर एक बार हमने सरकारी सहायता स्वीकार कर ली तो हम उनके दिशा-निर्देशों से चलने के लिए बाध्य हो जाएंगे। हमारे अपने अनुशासनात्मक कोड हैं, पोशाक है और अपना पाठ्यक्रम भी है। हम नहीं चाहते कि सरकार इसमें दखलंदाजी करे। हम नहीं चाहते कि सरकार हमसे रोज शिक्षकों और छात्रों की अटेंडेंस मांगे।
सरकारी सहायता लेने पर बाधित होगी बुनियादी प्रकृति और सिद्धांत
दारुल उलूम का कहना है अगर हम सरकारी सहायता लेंगे तो हमें यह दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं कि हम मदरसों को कब खोलें और कब बंद करें, लेकिन अन्य कोई भी सरकारी निर्देशों को स्वीकार नहीं किया जा सकता और इसलिए तीन हजार मदरसों को इसे लेकर आदेश दिया गया है।
वहीं, दारुल उलूम के मुफ्ती आरिफ कासमी ने कहा कि दुनिया में मौजूद मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा दारुल उलूम को दान मिलता है। इसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप इसकी बुनियादी प्रकृति और सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
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