बुलंदशहर हिंसा / कानून-व्यवस्था और गहरी साजिश का क्या है संबंध
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में भीड़ की हिंसा कानून-व्यवस्था का प्रश्न तो है, लेकिन यह गहरी साजिश की ओर भी इशारा करती है। यह हिंसा सोची-समझी योजना लगती है।

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में भीड़ की हिंसा कानून-व्यवस्था का प्रश्न तो है, लेकिन यह गहरी साजिश की ओर भी इशारा करती है। यह हिंसा सोची-समझी योजना लगती है।
यूं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने घटना की रिपोर्ट दो दिन में मांगी है और खुद यूपी पुलिस तेजी से जांच कर रही है, लेकिन भीड़ द्वारा इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर देना और पुलिस चौकी को फूंक देना सामान्य व अनायास होने वाली घटना नहीं है।
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पुलिस अधिकारियों की प्रारंभिक जांच और बुलंदशहर घटना के प्रत्यक्षदर्शियों के बयान बुलंहशहर की हिंसा में सांप्रदायिक तनाव फैलाने के लिए योजनाबद्ध प्रयासों की ओर इशारा कर रहे हैं।
बुलंदशहर के महाव गांव जहां गोकशी की बात कही गई थी, वहां घटनास्थल तक पहुंचने वाले अधिकारियों में तहसीलदार राजकुमार भास्कर के मुताबिक, ‘गाय के मांस को गन्ने के खेत में लटकाया गया था।
गाय के सिर और चमड़ी को कुछ इस तरीके से लटकाया गया था जैसे कि एक हैंगर पर कपड़े लटकाए जाते हैं। यह अजीब बात है, क्योंकि कोई भी जो गाय काटेगा वह उसे इस तरह उसका प्रदर्शन कभी नहीं करेगा।
यह दूर से दिखाई दे रहा था।' घटना का स्थान और समय भी साजिश के संदेह को ईंधन देता है, क्योंकि बुलंदशहर में लगभग 10 लाख मुस्लिम इकट्ठे हुए थे, सोमवार को तबलीगी जमात के इज्तेमा का आखिरी दिन था।
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इस जमात के ज्यादातर लोग इसी मार्ग से वापस लौटने वाले थे, जिस पर प्रदर्शनकारी जाने की कोशिश कर रहे थे। एक ग्रामीण ने मीडिया को बताया कि ‘घटना के पिछले दिन उन्होंने घटनास्थल पर गाय का मांस नहीं देखा था।
मैं खेत के ठीक सामने रहता हूं, पिछले दिन वहां कोई मांस नहीं था। सोमवार को ही हमने वहां मांस देखा था। मैंने मांस काटने वाले किसी भी व्यक्ति को नहीं देखा।' हालांकि उत्तर प्रदेश पुलिस का इस पूरे मामले पर कहना है कि इस घटना का सांप्रदायिकता से कोई संबंध नहीं है।
पुलिस के मुताबिक इस घटना का तीन दिन के तबलीगी जमात के इज्तेमा से भी कोई लिंक नहीं है। कारण जो भी हो, पर गोकशी के नाम पर भीड़ इकट्ठी हुई, उसने हिंसा की, चौकी फूंकी व पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दी। पुलिस को बलप्रयोग करने को मजबूर होना पड़ा, जिसमें एक नागरिक की मौत हो गई।
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सवाल है कि गोकशी के शक में लोग भीड़ की आड़ लेकर कब तक निर्दोषों की जान लेते रहेंगे? कौन लोग हैं जो गोवंश की रक्षा के नाम पर खुलेआम हिंसा को अंजाम दे रहे हैं, क्या बिना राजनीतिक संरक्षण के वे ऐसा कर रहे हैं? क्या बिना योजना संभव था कि भीड़ के पास हथियार हो और उसमें पुलिस का मुकाबला करने की हिम्मत हो? आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा? देश के अलग-अलग हिस्सों में ऐसा हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद सार्वजनिक मंचों से भीड़ हिंसा की निंदा कर चुके हैं और गोरक्षा के नाम पर अराजकता फैलाने वालों के खिलाफ सख्ती से निपटने की हिदायत दे चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकारों से भीड़ हिंसा के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दे चुका है।
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इसके बावजूद कुछेक अंतराल पर भीड़ हिंसा घटित होती रहती है। साफ है कि या तो राज्य का पुलिस प्रशासन इसे नहीं रोक पा रहा है या उपद्रवियों में कानून व प्रशासन का भय नहीं रहा है। दोनों ही हालात ठीक नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र सांप्रदायिक रूप से अधिक संवेदनशील हैं, इसलिए यहां हिंसा की हर चिंगारी को रोकना जरूरी है। जाति-संप्रदाय व गोरक्षा के नाम पर भीड़ की शक्ल में हिंसा हर हाल में बंद होनी चाहिए। भीड़ के नाम पर किसी को भी हिंसा करने की इजाजत नहीं है। बुलंदशहर में भीड़ हिंसा के दोषियों को सख्त सजा मिलनी ही चाहिए।
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