दीपक वर्मा, सोनीपत। एकदम से वक्त बदल दिया, जज्बात बदल दिए। भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के बाद एक पाकिस्तानी प्रशंसक के ये शब्द सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुए थे। शायद ही कोई इन शब्दों से अनभिज्ञ होगा। सोनीपत का मतदाता तो इन शब्दों को धारण करता है। जब-जब लोकसभा चुनावा आते हैं, तब-तब सोनीपत का मतदाता एकदम से वक्त बदल देता है और जज्बात बदल देता है। संयुक्त पंजाब के समय से रोहतक जिले का हिस्सा रहे सोनीपत की तासीर ठाडे के खिलाफ रहने की है। जब-जब किसी प्रत्याशी को सोनीपत लोकसभा चुनावों में मजबूत होते देखा गया है, वो मतदान के बाद अचानक से दूसरे या तीसरे नंबर पर आ गिरता है। केवल ठाडे के खिलाफ ही नहीं बल्कि कई बार तो इमोशनल (भावनात्मक) सपोर्ट में भी सोनीपत के लोग अच्छे-खासे वोट दे जाते हैं। सोनीपत लोकसभा में हार-जीत के आंकड़ें इसकी पुष्टि करते हैं। सोनीपत लोकसभा में मतदाता अधिकतर बार हवा के विपरित ही चलते दिखाई देते हैं। सोनीपत ने ही कांग्रेस, समता पार्टी, भाजपा के दौर में निर्दलीय अरविंद शर्मा को जितवा दिया था। वहीं भाजपा की टिकट पर किशन सिंह सांगवान उस समय लगातार दो बार सांसद बने थे, जब प्रदेश में भाजपा का कोई खास जनाधार नहीं था। 

चार बार भाजपा तो तीन बार कांग्रेस जीती

1977 में जींद जिले के जींद, जुलाना और सफींदों विधानसड्टाा को सोनीपत जिले की राई, सोनीपत, गन्नौर, खरखौदा, गोहाना और बरोदा विधानसभा के साथ जोड़कर सोनीपत लोकसभा क्षेत्र तय किया गया था। इसके बाद से अब तक सोनीपत लोकसभा सीट पर कुल 12 बार चुनाव हुए हैं। जिसमें सबसे अधिक भाजपा ने चार बार तो कांग्रेस से तीन बार विजय प्राप्त की। एक-एक बार जनता पार्टी, जनता पार्टी (एस), जनता दल, हरि. लोकदल व आजाद उम्मीदवार विजयी होकर लोकसभा पहुंचें। 1984 में कांग्रेस उम्मीदवार धर्मपाल मलिक सबसे कम 2941 वोटों तो 1977 में जनता पार्टी से मुखत्यार सिंह 2 लाख 80 हजार 223 वोटों के अंतराल से विजेता घोषित किए गए थे।

निर्दलीय को जिताया

कांग्रेस की हवा में जितवाया भाजपाई सोनीपत लोकसभा की तासीर आपको 1996 के लोकसभा चुनाव से पता चल सकती है। जब बड़े नामों के बीच निर्दलीय चुनाव लड़ रहे अरविंद शर्मा बाजी मार ले जाते हैं। सोनीपत से लोकदल की टिकट से 1998 में किशन सिंह सांगवान सांसद बने थे, लेकिन 1 ही साल बाद फिर से चुनाव हुए तो पार्टी ने किशन सिंह सांगवान को टिकट नहीं दिया। जिसके बाद इमोशनल लहर पर सवार होकर सांगवान भाजपा की टिकट पर 1999 में सांसद बने। इसके बाद फिर से 2004 में किशन सिंह सांगवान सांसद बन गए, जबकि उस समय पूरे देश व प्रदेश में कांग्रेस की लहर थी। इससे अगले चुनाव में जब किशन सिंह सांगवान बड़े नेता हो गए थे तो जनता ने 2009 में जितेंद्र सिंह मलिक को चुनाव जीतवा दिया था।

2019 में 1 लाख 64 हजार मतों से हारे थे भूपेंद्र हुड्डा 

सोनीपत लोकसभा के मतदाताओं की मजबूत प्रत्याशी के खिलाफ मतदान करने की परंपरा का सबसे ताजा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री और जाटलैंड के सबसे बड़े नेताओं में शामिल भूपेंद्र सिंह हुड्डा की हार से मिलता है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस के बड़े नेताओं में शामिल हैं। पूर्व मुख्यमंत्री ने 2019 का लोकसभा चुनाव सोनीपत से लड़ा था। इस चुनाव में भाजपा के रमेश कौशिक ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को 1 लाख 64 हजार मतों से हराया था।

आज तक का ये रहा है सोनीपत का इतिहास लोकसभा चुनाव

जीते                  हारे                    जीतने वाले का मत प्रतिशत 
1977 मुखत्यार सिंह (बीएलडी), सुभाषिनी (कांग्रेस) 80 प्रतिशत 
1980 देवीलाल (जेएनपी(एस.), रणधीर सिंह (कांग्रेस)  54.89 
1984 धर्मपाल मलिक (कांग्रेस), देवीलाल (लोकदल)  48.54 
1989 कपिल देव शास्त्री(जद), धर्मपाल मलिक (कांग्रेस) 50.95 
1991 धर्मपाल मलिक(कांग्रेस), कपिलदेव शास्त्री (जपा) 42.08 
1996 अरविंद शर्मा (निर्दलीय), रिजक राम (एसएपी)  33.07 
1998 किशन सिंह सांगवान (लोकदल(आर.), अभय राम दहिया (एचवीपी) 41.94
1999 किशन सिंह सांगवान (भाजपा), चिरंजी लाल (कांग्रेस)  69.83 
2004 किशन सिंह सांगवान (भाजपा), धर्मपाल मलिक(कांग्रेस) 31.67
2009 जितेंद्र मलिक (कांग्रेस), किशन सिंह सांगवान (भाजपा) 47.57 
2014 रमेश कौशिक (भाजपा), जगबीर मलिक (कांग्रेस)