‘अनुभवहीन'' से ‘बेहतरीन रणनीतिकार'' तक विश्व चैंपियन मैरी कॉम ने तय किया है लंबा सफर
विश्व चैंपियनशिप खिताब जीतने वाली एम सी मैरी कॉम ने कहा कि अब वह उस मुकाम पर पहुंच गई है कि एक भी पंच गंवाए बिना जीत दर्ज करना चाहती है। तीन बच्चों की मां 36 बरस की मेरीकोम ने हाल ही में छठा विश्व चैंपियनशिप खिताब जीता। यह विश्व चैंपियनशिप में उनका सातवां पदक है और टूर्नामेंट के दस सत्र के इतिहास में वह सबसे सफल मुक्केबाज बन गई।

पहली बार ‘हुनर के बिना सिर्फ ताकत के दम पर ' विश्व चैंपियनशिप खिताब जीतने वाली एम सी मैरी कॉम मैरी कॉम ने कहा कि अब वह उस मुकाम पर पहुंच गई है कि एक भी पंच गंवाए बिना जीत दर्ज करना चाहती है। तीन बच्चों की मां 36 बरस की मैरी कॉम ने हाल ही में छठा विश्व चैंपियनशिप खिताब जीता। यह विश्व चैंपियनशिप में उनका सातवां पदक है और टूर्नामेंट के दस सत्र के इतिहास में वह सबसे सफल मुक्केबाज बन गई।
मणिपुर की इस मुक्केबाज ने एक बातचीत में 2001 से अब तक के विश्व चैंपियनशिप के सफर की यादें ताजा की। अमेरिका में 17 साल पहले रजत पदक के साथ इसका आगाज हुआ था और यहां घरेलू दर्शकों के सामने बीते सप्ताह उसने छठा स्वर्ण जीता। मैरी कॉम ने कहा, ‘2001 में मैं युवा और अनुभवहीन थी। कहा जा सकता है कि कोई कौशल नहीं था और सिर्फ दमखम पर निर्भर थी। लेकिन 2018 में मेरे पास इतना अनुभव था कि मैने खुद पर दबाव नहीं बनने दिया। मैं अब पंच खाना नहीं चाहती और उसके बिना ही मुकाबले जीतना चाहती हूं। इस बार वही करने में कामयाब रही। मैं अब सोच समझकर खेलती हूं।'
2006 में भी मैरी कॉम ने दिल्ली में विश्व चैंपियनशिप जीती थी लेकिन उस समय उनके आंसू नहीं छलके थे। उस समय वह जमकर मुस्कुराती नजर आई थी लेकिन इस बार तिरंगा लहराते समय और राष्ट्रगीत गाते समय उनके आंसू सभी ने देखे। उन्होंने कहा, ‘हो सकता है कि हाइप और दबाव के कारण ऐसा हुआ। उस समय महिला मुक्केबाजी इतनी लोकप्रिय नहीं थी। इस बार मैने देखा कि दर्शक दीर्घा से मेरा नाम पुकार रहे हैं। मैं भावविभोर हो गई। आखिरी दिन लोगों में इतना उत्साह था जिसने मुझे भावनाओं से भर दिया और यही वजह है कि मैं रो पड़ी।'
तो क्या यह उनका सबसे खास विश्व खिताब है, यह पूछने पर उन्होंने कहा, ‘मेरे करियर के सबसे खास पदकों में से है। मैं यह नहीं कह सकती कि कौन सा सबसे खास है क्योंकि हर पदक के लिए मैने काफी मेहनत की है। यह सबसे कठिन में से एक था क्योंकि अपेक्षाएं बहुत थी। मैने राष्ट्रमंडल खेल में 48 किलो वर्ग में भाग लेकर स्वर्ण जीता था जिसकी वजह से विश्व चैंपियनशिप में काफी दबाव था।'
ओलंपिक में 51 किलो भारवर्ग के आने और 48 किलो के बाहर होने के बाद से मैरी कॉम दोनों भारवर्ग में खेल रही है। उन्होंने सभी विश्व खिताब 48 किलो में और ओलंपिक कांस्य 51 किलो में जीता था। टोक्यो ओलंपिक में उन्हें एक बार फिर क्वालीफायर में 51 किलो में खेलना होगा। उन्होंने कहा, ‘ यह आसान नहीं है क्योंकि मैं भी इंसान हूं। इसमें अधिक परिश्रम लगता है लेकिन मैं अपनी ओर से पूरा प्रयास करूंगी।' अपनी उपलब्धियों के बारे में मैरी कॉम ने कहा, ‘यह सब हासिल करने वाली पहली महिला मुक्केबाज बनकर मैं बहुत खुश हूं। हर किसी के सपने होते हैं और मुझे खुशी है कि मैं अपने सपने पूरे कर सकी।'
मैरी कॉम के पदक
रजत पदक : 2001 स्क्रैंटन (यूएसए) स्क्रैंटन 48 किग्रा
स्वर्ण पदक : 2002 एंटाल्या (टर्की) 45 किग्रा
स्वर्ण पदक : 2005 पोडॉल्स्क (रूस) 46 किग्रा
स्वर्ण पदक : 2006 नई दिल्ली 46 किग्रा
स्वर्ण पदक : 2008 निंगबो सिटी (चीन) 46 किग्रा
स्वर्ण पदक : 2010 ब्रिजटाउन (बारबाडोस) 48 किग्रा
स्वर्ण पदक : 2018 नई दिल्ली 48 किग्रा
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