विश्लेषण / कोई यूं ही नहीं बनती ''मैरीकॉम''

हिंदुस्तान की पहली महिला बाॅक्सर एमसी मैरी काॅम अपने खेल के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी हैं। मैरी काॅम ने भारत में बाॅक्सिंग यात्रा का आगाज उस दौर में किया था जब इस खेल में महिला खिलाड़ी के आने की कोई कल्पना तक नहीं करता था। नब्बे के दशक में कोई महिला पहलवान रिंग में दिखाई दे, ये सपने जैसा प्रतीत होता था। लेकिन ऐसी मिथ्याओं को तोड़कर मैरी काॅम भारत को बाॅक्सिंग में नई पहचान दिलाने में कामयाब हुईं। इस लिहाज से मैरी के संन्यास के बाद भी उनका नाम बड़े अदब से लिया जाता रहेगा।
दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में पंद्रह नवंबर से शुरू हुई विश्व महिला मुक्केबाजी में पूरे मुल्क की नजरें मैरी कॉम पर टिकीं हैं। मैरी कॉम पांच बार की विश्व चैंपियन हैं और उम्मीद ये है कि मौजूदा टूर्नामेंट में वह छठी बार चैंपियन बनेंगी। लेकिन अगर इस आयोजन में वह अच्छा नहीं कर सकीं तो उनकी यात्रा का अंत यहीं से शुरू हो जाएगा।
इसके बाद 2020 में टोक्यो ओलंपिक में शायद ही भाग लें। आगे की यात्रा उनकी फिटनेस पर निर्भर करेगी। आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली बाॅक्सर मैरी काॅम के नाम कई उपलब्धियां हैं। तंगहाली से शुरू हुई जिंदगी आज चोटी पर जा पहुंची है। मैरी एआईबीए विश्व वुमेन्स रैंकिंग में चौथे स्थान पर काबिज हैं।
मान-सम्मान की बात करें तो उन्हें खेल श्रेणी के सम्मानों में भारत के तीसरे सबसे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्म भूषण’ से नवाजा जा चुका है। उन्हें अर्जुन पुरस्कार और राजीव गांधी खेल रत्न जैसे राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। राज्यसभा में संसद के सदस्य के रूप में भी नामित हुईं।
युवा मामलों और खेल मंत्रालय ने उन्हें मुक्केबाजी के लिए राष्ट्रीय पर्यवेक्षक के रूप में भारतीय मुक्केबाज अखिल कुमार के साथ नामित किया और हाल ही में उन्हें वीरांगना पुरस्कार भी दिया गया है। इन सबके अलावा चार साल पहले उनके संघर्ष को आधार बनाकर उन पर बायोपिक फिल्म ‘मैरी कॉम’ बनीं।
मैरी काॅम का जन्म मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में हुआ। उनके पिता एक बेहद गरीब किसान थे, लेकिन पहलवानी का बड़ा शौक था। बावजूद इसके वह अपनी बेटी को पहलवान नहीं बनाना चाहते थे। इस खेल में आना मैरी की व्यक्तिगत रूचि थी। मैरी का मन पढ़ाई-लिखाई में कभी नहीं लगा। शायद ईश्वर ने उनकी किस्मत की लकीरों में कुछ और ही लिख दिया था।
दसवीं की परीक्षा पास नहीं होने के कारण स्कूल छोड़ दिया और फिर आगे की पढाई नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ ओपन स्कूलिंग इम्फाल से की। उन्होंने अपना स्नातक चुराचांदपुर कॉलेज से पूरा किया। उनको खेल-कूद का शौक बचपन से था और उनके ही प्रदेश के मुक्केबाज डिंग्को सिंह की सफलता ने उन्हें मुक्केबाज़ बनने के लिए प्रोत्साहित कर दिया।
लआज मैरी काॅम को लाखों बाॅक्सर प्रेणादायक मानते हैं। मैरी हमेशा से सरल स्वभाव वाली रहीं, उनसे बात करके कभी किसी को नही लगा कि सामने बात करने वाली इतनी बड़ी खिलाड़ी हैं। वह आज भी सामान्य जीवन जीना ही उचित समझती हैं। एक घरेलू महिला की भांति वह अपने घर का काम करती हैं। जुड़वा बच्चों की मां हैं उन्हें भी संभालती हैं।
खेल और परिवार में ठीक से तालमेल बिठा लेती हैं। भारत की बाॅक्सिंग में पहचान धूमिल न हो इसके लिए मैरी काॅम ने बाॅक्सिंग अकेडमी की शुरूआत की है जिसमें ज्यादातर वह गरीब बच्चे शामिल हैं जो बाॅक्सिंग में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं। पांच बार की विश्व चैंपियन मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम को पिछले दिनों ही ट्राइब्स इंडिया का ब्रांड एंबेस्डर भी बनाया गया जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय की पहल है।
इस मौके पर उन्होंने सरकार का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि अच्छी पहल के लिए वह जनजातीय मामलों की ब्रांड दूत बनकर उनकी बेहतरी के लिए काम करेंगी। ऐसे क्षण सबको नसीब नहीं होते। देश में खिलाड़ियों की कमी नहीं है। लेकिन कोई विरला ही ऐसे सम्मानों का हकदार बनता है।
जनजातीय मामलों की ब्रांड दूत पर मैरी कहती हैं कि वह मणिपुर से हैं और उम्मीद करती हैं कि ट्राइब्स इंडिया के साथ उनका जुड़ाव जनजातीय समुदाय के जीवन में बड़ा वित्तीय और आर्थिक बदलाव लाएगा। उनकी भलाई के लिए वह अपनी तरफ से जनजातीय लोगों की मदद करने की हर कोशिश करती रहेंगी।
मैरी का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन इस मुकाम पर पहुंचेगी। कम संसाधनों के बावजूद भी उन्होंने अपना और अपने देश का नाम रोशन किया। उनकी कामयाबी से आज पूरा देश गर्व करता है। बाॅक्सिंग में देश आगे भी ऐसी तरक्की करे इसकी कामना खुद मैरी करती हैं।
दिल्ली में आयोजित टूर्नांमेंट के पहले उन्होंने कहा है कि अगर यह प्रतियोगिता उनके अनुकूल रही तो टोक्यिो ओलंपिक तक अपना खेल जारी रखेंगी, लेकिन देश उनसे उम्मीद करता है कि वह अपना खेल जारी रखें।
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