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''हैवीवेट चैंपियन'' मुहम्मद अली ने दो दशक तक कायम रखी थी अपनी बादशाहत

दुनिया के सबसे बड़े मुक्केबाजों में शुमार मुहम्मद अली का निधन 3 जून 2016 को अमेरिका के एक अस्पताल में हुआ था।

हैवीवेट चैंपियन मुहम्मद अली ने दो दशक तक कायम रखी थी अपनी बादशाहत
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उनके मुक्के में दम था, तेज था और रौद्र था जो अपने प्रतिद्वंद्वी को हतप्रभ कर देती थी। ऐसा मुक्केबाज जिसके दम भरते ही सामने वाले की मुठ्ठियां पसीज जाती थी।

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इस चैंपियन ने अपने मुक्कों से दुनिया को रोमांचित करने का वादा किया और उस वादे को उन्होंने पूरा भी किया।

दुनिया के सबसे बड़े मुक्केबाजों में शुमार मुहम्मद अली का निधन 3 जून 2016 को अमेरिका के एक अस्पताल में हुआ था।

74 साल की उम्र में जब इस महान मुक्केबाज ने दुनिया को अलविदा कहा तो लोगों के आंखे नम थीं। उन्हें सांस लेने की तकलीफ थी जोकि पार्किंसन नामक बीमारी की वजह से हुई थी।

1981 की बात है जब इस बीमारी से उनका मजबूत शरीर कमजोर सा हो गया था और उनकी जादुई आवाज लगभग बंद हो गई थी।

मोहम्मद अली मुक्केबाजी के पर्याय थे। अपने करारे मुक्के के कारण इस चैम्पियंस खिलाड़ी ने लगभग दो दशक तक अपनी बादशाहत कायम रखी।

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अली तीन बार हैवीवेट चैंपियन रहे। उन्हें बीबीसी और स्पोर्ट्स इलेस्ट्रेडेट ने पिछली 'सदी का सबसे महानतम खिलाड़ी' चुना था। वह खुद पर पत्थर फिंकवाकर प्रैक्टिस करते थे।

अली को 'द ग्रेटेस्ट' के नाम से भी फेमस थे। उनका जन्म 17 जून 1942 अमेरिका में हुआ था। अली का असली नाम कैसियस मर्सेलस क्ले था।

जब उन्होंने 1964 में अली सॉनी लिस्टन को हराकर पहली बार वर्ल्ड हैवीवेट चैंपियन जीता उसके बाद उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था और फिर मोहम्मद अली के नाम से मशहूर हो गए।

वह अपने हैवीवेट मुकाबले जिस तरह से लड़े वैसा पहले कभी कोई नहीं लड़ा था। अली ने सोनी लिस्टन को दो बार धूल चटाई। मजबूत जार्ज फोरमैन को जायरे में हराया और फिलीपींस में जो फ्रेजियर से लड़ते हुए मौत के मुंह से वापस लौटे।

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अली ने नस्लभेद के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। वे अश्वेत लोगों के साथ खड़े रहे। कहते हैं कि अली ने रंगभेद के विरोध में अपना गोल्ड मेडल फेंक दिया था।

अपनी दमदार काठी और शानदार मुक्केबाजी के कारण लोगों के दिलों में बसने वाले इस 'योद्धा' ने 3 जून को खामोशी की चादर ओड़ ली और पूरी दुनिया की आंखे नम कर गया।

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