1947 में ईस्ट अफ्रीका ने कहा, मेजर ध्यानचंद टीम में नहीं तो नहीं खेलेगें मैच

देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी में भारत के पीछ़ड़ने के कई कारण रहे हैं। देश ने हॉकी में 8 ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते है लेकिन विश्व के खेल मंच में यह सबसे बड़ा सम्मान और कोई नहीं हो सकता है पिछले 37 वर्षो में भारत ओलंपिक में कोई भी पद नहीं जीता। इसकी सबसे बड़ी बजह ये रही की हॉकी पर लगातार ध्यान न देना।
अगर भारत ने हॉकी पर ध्यान दिया होता तो इतना लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता जो आज भी जारी है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने हॉकी को विश्व स्तरीय बनाया था लेकिन हम हॉकी के साथ ध्यानचंद की विरासत को भी भूल चुके है।
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मेजर ध्यानचंद के हॉकी खेलने की कला और टीम भावना से लेकर उनकी क्षमता की वजह से ध्यानचंद को हॉकी का सबसे बड़ा खिलाड़ी माना जाता है।
ध्यानचंद ने 44 साल की उम्र तक खेलते रहे। अंतिम समय में भी उन्हें सबसे शानदार खिलाड़ी माना जाता रहा तभी तो 1947 में ईस्ट अफ्रीका ने भारतीय टीम को आमंत्रित किया लेकिन शर्त यह भी रखी कि ध्यानचंद नहीं तो टीम नहीं, मतलब टीम में ध्यानचंद होंगे तभी मैच खेलेंगे।
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बता दें कि देश की आजादी के समय हॉकी की लेकप्रियता ने धूम मचा रखी थी लेकिन कुछ ही दिनों में इस पर लगातार ध्यान न रखे जाने से लोकप्रिता में तो कमी आई ही साथ ही इस हॉकी के महान खिलाड़ी के साथ भी धोका ही दिया है।1983 में क्रिकेट का विश्व कप जीतने के बाद देश में क्रिकेट लोकप्रियता की रेस में हॉकी से आगे निकल गया ।
इसके बाद प्रत्येक दिन हॉकी की लोकप्रियता में क्रिकेट के मुकाबले गिरावट आती गई। देश में क्रिकेट खिलाड़ी ग्लैमर और मीडिया के बीच शोहरत पाने लगे। हॉकी के खिलाड़ियों को मीडिया में उतनी पहचान नहीं मिली।
हॉकी के क्रिकेट की तुलना में अधिक लोकप्रिय नहीं होने की वजह से क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर को हॉकी के जादूगर ध्यानचंद से पहले देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। सचिन तेंदुलकर अगर भारत रत्न पाने वाले देश के पहले खिलाड़ी हैं तो इसकी मुख्य वजह हॉकी का क्रिकेट से कम लोकप्रिय होना है।
तो क्या अब भी ह़ॉकी के प्रति गम्भीर होनो की जरूरत महसूस नहीं हो रही है, अगर अभी इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक दिन हॉकी जैसा भारत का राष्ट्रीय खेल गम्भीर परिणाम भूगतेगा।
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