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डाॅ. एन.के. सोमानी का लेख : कारगर होगी पापुआ न्यू गिनी यात्रा

पापुआ न्यू गिनी ने फोरम फाॅर इंडिया पैसिफिक आईलैंड काे-आॅपरेशन के शिखर सम्मेलन का आयोजन कर विश्व समुदाय के समक्ष अपनी नेतृत्व क्षमता का सफल प्रदर्शन किया। पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे द्वारा एयरपोर्ट पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत के समय पांव छुआई की तस्वीरें चर्चा का कारण बनीं। संकट के समय व अन्य जरूरी मौकों पर भारत पापुआ न्यू गिनी को मानवीय सहायता भी देता रहा है। जाहिर है, भारत सामरिक रूप से जरूरी इस छोटे देश के साथ संबंधों को रणनीतिक व आर्थिक स्तरों के जिस मुकाम तक ले जाना चाहता है, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा कारगर साबित होगी।

डाॅ. एन.के. सोमानी का लेख : कारगर होगी पापुआ न्यू गिनी यात्रा
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डाॅ. एन.के. सोमानी 

प्रशांत महासागर क्षेत्र में स्थित 60 लाख की आबादी वाला छोटा सा द्वीप पापुआ न्यू गिनी इन दिनों वैश्विक परिदृश्य में चर्चा का केन्द्र बना हुआ है। चर्चा के दो बड़े कारण रहे हैं। पहला, विविधताओं से भरपूर इस छोटे से द्वीपीय देश ने पिछले दिनों फोरम फाॅर इंडिया पैसिफिक आईलैंड काे-ऑपरेशन (एफआईपीसीआई) के शिखर सम्मेलन का आयोजन कर विश्व समुदाय के समक्ष अपनी नेतृत्व क्षमता का सफल प्रदर्शन किया। इस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 14 राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया। शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी आमंत्रित किया गया था। बाइडेन का आना लगभग तय भी था, लेकिन ऐन वक्त पर कुछ ऐसे निजी कारण उपस्थित हो गए जिसके चलते बाइडेन शिखर बैठक में शामिल नहीं हो सके।

चर्चा का दूसरा बड़ा कारण पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे द्वारा एयरपोर्ट पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत के समय पांव छुआई की तस्वीरें बनी। संभवत यह पहला अवसर है, जब किसी एक देश के प्रधानमंत्री ने स्वागत की रस्म अदायगी के दौरान किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री के पांव छुए हों। सामान्य तौर पर अतिथियों के स्वागत की औपचारिकता हाथ जोड़कर, हाथ मिलाकर या गले लगाकर पूरी की जाती है। मारापे ने पीएम मोदी के पांव छू कर भारत और भारत के प्रधानमंत्री के प्रति जो सम्मान और शिष्टाचार प्रकट किया है, उससे चीन की पेशानी पर बल पड़ते दिख रहे हैं। यात्रा के दौरान पापुआ न्यू गिनी और फिजी ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा। फिजी ने अपने देश के सम्मान ’कम्पेनियन आॅफ द आॅर्डर आॅफ फिजी’ और पापुआ न्यू गिनी ने ’द ग्रैंड कम्पेनियन ऑफ द आडर ऑफ लोगोहु’ से सम्मानित किया है। एक अन्य देश रिपब्लिक आॅफ पलाउ ने भी प्रधानमंत्री मोदी को एबाक्ल अर्वाड से सम्मानित किया।

पापुआ न्यू गिनी इंडोनेशिया के समीप प्रशांत महासागर क्षेत्र में एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जो दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर क्षेत्र में द्वीपों का एक समूह है। द्वितीय विश्व यु़द्ध के दौरान यह क्षेत्र भयानक जंग का मैदान बना हुआ था। यहां सोने, तांबे और अन्य खनिज संसाधनों के बड़े भंडार है। विशिष्ट भौगोलिक अवस्थिति के कारण यह क्षेत्र रणनीतिक दृष्टि से भी खास अहमियत रखता है। आस्ट्रेलिया के उत्तर में स्थित होने के कारण सामरिक रूप से पापुआ न्यू गिनी महत्वपूर्ण द्वीप माना जाता है। कई दशकों से यह द्वीप अमेरिका, फ्रांस, जापान, आस्ट्रेलिया और यूनाइटेड किंगडम जैसी बड़ी महाशक्तियों के लिए दिलचस्पी का कारण बना रहा है, लेकिन अब एक-डेढ़ दशक से अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों ने पापुआ न्यू गिनी को अपनी विदेश नीति में हाशिये पर धकेल दिया। चीन की नजरें पहले से ही इस द्वीप पर थी। उसे अपने विस्तारवादी मंसूबों को साधने और रणनीतिक रूप से खुद को मजबूत करने का स्पेस मिल गया। वह यहां सैन्य और राजनयिक प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। उसने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत यहां निवेश कर रखा है। उसकी नजर पापुआ न्यू गिनी के संसाधनों पर भी है। पिछले साल नवंबर में बैंकाॅक में पापुआ न्यू गिनी के पीएम के साथ बैठक में चीनी राष्ट्रपति ने मारापे को अपना अच्छा दोस्त और अच्छा भाई बताते हुए कई क्षेत्रों में सहयोग का आश्वासन दिया था। शी ने उन्हें चीन आने का न्योता भी दिया। संक्षेप में कहें तो 1980 के दशक में चीन-पापुआ न्यू गिनी के बीच शुरू हुआ आर्थिक संबंधों का यह सिलसिला अब सुरक्षा और रणनीतिक मसलों तक पहुंच गया है।

दोनों देश मुक्त व्यापार समझौते में भी बंधे हुए हैं, जो दोनों के बीच करीबी संबंधों को दिखाता है। चीन का बढ़ता प्रभाव क्षेत्र न केवल आस्ट्रेलिया के लिए बल्कि पूरे इंडो पैसिफिक रीजन के लिए घातक हो सकता है। खासकर क्वाड (भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका) देशों के लिए। यही वजह है कि अब अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साथ-साथ भारत ने भी अपनी विदेश नीति में प्रशांत द्वीप के देशों के साथ संबंध बढ़ाने कि शुरूआत की है। इसके लिए भारत ने 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार के समय शुरू की गई लुक ईस्ट पाॅलिसी को 2014 में एक्ट ईस्ट पाॅलिसी में बदल दिया है। फोरम फाॅर इंडिया पैसिफिक आईलैंड काे-आपरेशन (एफआईपीसीआई) को भी इसी से जुड़ी पहल के तौर पर ही देखा जा रहा है। एफआईपीआईसी का गठन 2014 में पीएम मोदी की फिजी यात्रा के दौरान किया गया था। इसमे 14 देशों के नेता भाग लेते हैं, जिनमे कुक आइलैड्स, फिजी, किरिबाती, मार्शल आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नौरू, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंडस, टोंगा, तुवालू और वानुआतु शामिल हैं। जहां तक भारत-पापुआ न्यू गिनी संबंधों का सवाल है, तो भारत ने करीब अढ़ाई दशक पहले अप्रैल 1996 में अपना उच्चायोग शुरू किया था। इसके दस साल बाद 2006 में पापुआ न्यू गिनी ने भी भारत में अपना उच्चायोग शुरू किया। 2016 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पापुआ न्यू गिनी का दौरा करने वाले पहले भारतीय नेता थे। भारत पापुआ न्यू गिनी को टेक्सटाइल, मशीनरी, खाद्य पदार्थ, दवा, सर्जिकल उपकरण, साबुन, वाॅशिंग पाउडर जैसे जरूरी सामान निर्यात करता है। दूसरी ओर, भारत काॅफी, टिंबर, समुद्री उत्पादन, सोना, कांसे जैसी जरूरी चीजें पापुआ न्यू गिनी से आयात करता है। पापुआ न्यू गिनी अक्सर ज्वालामुखी, भूकंप और समुद्री तूफान का शिकार रहा है। संकट के समय व अन्य जरूरी मौकों पर भारत पापुआ न्यू गिनी को मानवीय सहायता भी देता रहा है। कोविड-19 महामारी के दौरान भारत ने पापुआ न्यू गिनी को कोरोना वैक्सीन की एक लाख 31 हजार खुराक दी। जाहिर है, भारत सामरिक रूप से जरूरी इस छोटे देश के साथ संबंधों को रणनीतिक व आर्थिक स्तरों के जिस मुकाम तक ले जाना चाहता है, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा कारगर साबित होगी।

(लेखक- डाॅ. एन.के. सोमानी अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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