प्रवासी सांसद सम्मेलन: तीस देशों में भारत का नाम रोशन कर रहे ये NRI
भारत में 2003 से प्रवासी भारतीय सम्मेलनों का आयोजन होता रहा है, परंतु यह पहली बार है, जब सरकार ने तीस देशों के उन जन प्रतिनिधियों को आमंत्रण पत्र भेजा, जो भारतीय मूल के हैं और तीस देशों में सांसद अथवा जैसे मेयर जैसे महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं।

भारत में 2003 से प्रवासी भारतीय सम्मेलनों का आयोजन होता रहा है, परंतु यह पहली बार है, जब सरकार ने तीस देशों के उन जन प्रतिनिधियों को आमंत्रण पत्र भेजा, जो भारतीय मूल के हैं और तीस देशों में सांसद अथवा जैसे मेयर जैसे महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं। ऐसे कई देश हैं, जहां भारतीय मूल के प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति रह चुके हैं। मंत्री पदों पर भी बहुत से भारतीय मूल के लोग काम करते आ रहे हैं।
इन्हें प्रवासी सांसद सम्मेलन में आमंत्रित करने के पीछे जहां उनके पूर्वजों की मातृभूमि में उन्हें सम्मान देने की भावना निहित है, वहीं उन्हें, उनके परिजनों, मित्रों और जानकारों को भारत भूमि से जोड़ने का भी एक प्रयास है। खुशी की बात है कि तीस में से चौबीस देशों के भारतीय मूल के प्रवासी सांसद और मेयर इसमें भाग ले रहे हैं। जिन देशों से जन प्रतिनिधि भारत पहुंचे हैं,
उनमें ब्रिटेन, कनाडा, फिजी, केन्या, मॉरीशस, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, अमेरिका, मलेशिया, स्विटजरलैंड, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो शामिल हैं। भारत में निरंतर हो रहे आर्थिक सुधारों का ही नतीजा है कि दुनिया का हमारे बारे में सोचने-समझने का नजरिया इधर तेजी से बदला है, जिसका उल्लेख सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने उदबोधन में किया है।
2003 में जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने प्रवासी भारतीय सम्मेलन की शुरुआत की थी, तब इसके पीछे भावना यही थी कि विभिन्न देशों में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी मातृभूमि और जड़ों की तरफ लौटें। विदेशों में भारत के लिए इनसे बेहतर राजदूत और कोई नहीं हो सकता। जब से प्रवासी भारतीय सम्मेलनों का आयोजन शुरू हुआ है, तब उनका ही नहीं, भारत के संबंध में दूसरे देशों की सोच में भी मूलभूत बदलाव देखने को मिल रहा है।
उसी का नतीजा है कि अब पश्चिम देशों के लोग भी यहां बड़ी संख्या में पर्यटक के तौर पर आ रहे हैं और बड़ी संख्या में वहां से पूंजी निवेश भी हो रहा है। एक दौर था, जब भारत को बंजारों और सपेरों का देश कहकर चिढ़ाया जाता था, परंतु अब यहां आने वाले विदेशी सैलानी स्वयं कहते हैं कि भारत ने हर क्षेत्र में आशातीत प्रगति की है। प्रधानमंत्री मोदी जब भी विदेशों में दौरे पर जाते हैं, वहां बसे भारतीयों से मिलना नहीं भूलते।
प्रवासी सांसदों और मेयर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा भी है कि देश अपने प्रवासी भारतीय को स्वभाविक सहयोगी के तौर पर देखता है। यहां की आर्थिक तरक्की में प्रवासी भारतीयों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। प्रधानमंत्री ने सही ही कहा कि दूसरे देशों में रह रहे भारतीयों के मन से भारत कभी नहीं गया। भारतीय मूल के लोग जहां भी गए उस देश को अपना बना लिया।
प्रधानमंत्री ने बाहर के देशों से भारत पहुंचे सांसदों यह जानकारी देना मुनासिब समझा कि जब से उनकी सरकार ने कामकाज संभाला है, हर काम की रफ्तार दोगुना हो गई है और उनकी सरकार ने जीएसटी लागू करके अलग-अलग तरह के टैक्स का जंजाल भी खत्म किया है। भारत में कारोबारी माहौल सुधरा है। आज विश्व बैंक, मूडीज जैसी संस्थाएं भारत की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रही हैं।
भारत की ग्लोबल रैंकिंग सुधरी है। भारत में तेज गति से बदलाव आर्थिक और सामाजिक ही नहीं, वैचारिक स्तर पर भी हो रहे हैं। उनकी सरकार का उद्देश्य पूरे सिस्टम को पारदर्शी बनाना और भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करना है। ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिसमें इधर सुधार न हुआ हो। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है इसलिए उनकी सरकार ने मुद्रा योजना के जरिए युवाओं को मौका देने का काम किया।
मुद्रा योजना के तहत लगभग 10 करोड़ तक के लोन बिना गारंटी के दिए हैं। सिर्फ इस एक योजना से लगभग 3 करोड़ नए उद्यमी सामने आए हैंए जो न केवल बेरोजगार युवाओं को काम दे रहे हैं और आर्थिक तरक्की में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। निसंदेह पिछले कुछ साल में देश में कामकाज का माहौल बदला है।
खासकर आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर जो फैसले मोदी सरकार ने लिए हैंए उससे पूरी दुनिया के सोचने के तरीके में बदलाव आया है। ऐसे में प्रवासी भारतीय भी नए भारत के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान अब पूरे भरोसे के साथ दे सकते हैं।
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