नरेन्द्र सिंह तोमर का लेख : निष्काम कर्मयोगी कुशाभाऊ
सही मायनों में देखा जाए तो कुशाभाऊ ठाकरे सामाजिक जीवन के तपस्वी थे। वे राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए भी इतनी सादगी, मितव्ययता और आदर्श जीवन शैली के साथ जीते थे कि उनका जीवन सदैव हम सभी के लिए प्रेरणा बना रहेगा। वे जो कहते थे, वही उनके आचरण में भी परिलक्षित होता था। भारतीय जनता पार्टी की आधारशिला रखने एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक क्रांति को जन-जन तक पहुंचाने में जिन मनीषियों का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा उनमें से एक कुशाभाऊ ठाकरे भी हैं। ठाकरे की सादगी सभी को प्रभावित करती थी। वे साइकिल से ही अधिकांश आवागमन करते थे। सांसद बनने के बाद भी वे भोपाल में साइकिल से घूमते थे।

नरेन्द्र सिंह तोमर
नरेन्द्र सिंह तोमर
हम स्व. कुशाभाऊ ठाकरे का जन्मजयंती शताब्दी वर्ष मना रहे हैं, उनका जन्म 15 अगस्त 1922, जन्माष्टमी पर मध्यप्रदेश के धार में हुआ था। आज हम इस स्मरण में भी गर्व का अनुभव करते हैं कि कभी स्व. ठाकरे का हाथ हमारी पीठ पर रखा गया था। एक कार्यकर्ता के रूप में मुझे उनका मार्गदर्शन और नसीहत दोनों प्राप्त हुए और उनकी दी हुई सीख के बल पर मैं एवं मेरी पीढ़ी के हजारों कार्यकर्ता संगठन में अपना दायित्व कुशलतापूर्वक निभा रहे हैं। सही मायनों में देखा जाए तो कुशाभाऊ ठाकरे सामाजिक जीवन के तपस्वी थे। वे राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए भी इतनी सादगी, मितव्ययता और आदर्श जीवन शैली के साथ जीते थे कि उनका जीवन सदैव हम सभी के लिए प्रेरणा बना रहेगा। वे जो कहते थे, वही उनके आचरण में भी परिलक्षित होता था।
भारतीय जनता पार्टी की आधारशिला रखने एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक क्रांति को जन-जन तक पहुंचाने में जिन मनीषियों का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा उनमें से एक कुशाभाऊ ठाकरे भी हैं। आज जो हम वैचारिक रूप से वज्र सा सशक्त भारतीय जनता पार्टी का संगठन स्वरूप देखते हैं, वस्तुत: इसके लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले दधीच ठाकरे जैसे ही पितृ पुरुष हैं। मध्य प्रदेश की संगठनात्मक इकाई एवं यहां के कार्यकर्ताओं के व्यवहार, आचरण एवं कार्यशैली की प्रशंसा संपूर्ण देश में होती है। यहां के कार्यकर्ता को एक आदर्श के रूप में देखा जाता है। इसके पीछे कुशाभाऊ ठाकरे का अथक परिश्रम है। कार्यकर्ताओं की क्षमता को पहचानना, उनसे कार्य कराना एवं उनमें एक आदर्श आचरण के मंत्र को उतारना, यही ठाकरे का जीवन ध्येय था और उन्होंने इसे जीवनपर्यंत पूर्ण निष्ठा के साथ निभाया।
कुशाभाऊ ठाकरे की सादगी सभी को प्रभावित करती थी। वे साइकिल से ही अधिकांश आवागमन करते थे। सांसद बनने के बाद भी वे भोपाल में साइकिल से घूमते थे। संघर्ष के दिनों में उन्होंने चने खाकर संगठन को मजबूत करने के लिए प्रवास किए। ठाकरे एक बार जिससे मिल लेते उसका नाम सदैव उन्हें याद रहता था। वे सदैव मुझे नरेन्द्र बाबू कह कर ही बुलाया करते थे। ठाकरे की शिक्षा ग्वालियर में हुई और ग्वालियर मेरा गृहनगर है, इसलिए भी ठाकरे के प्रति मेरा आदर भाव हमेशा से रहा और कई बार भेंट के दौरान वे मुझसे ग्वालियर के विषय में भी चर्चा किया करते थे। कुशाभाऊ ठाकरे की कथनी एवं करनी में अंतर नहीं करते थे। वे अपने आचरण में वही अपनाते थे जो उनकी वाणी पर होता था।
ठाकरे की राजनीतिक यात्रा संघर्षों से परिपूर्ण रही और वे एक सामान्य कार्यकर्ता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर पहुंचे। 20 वर्ष की उम्र में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बनकर राष्ट्र के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने का निर्णय ले चुके थे। ठाकरे न सिर्फ संगठन के समर्पित कार्यकर्ता थे, बल्कि वे जननेता के रूप में काफी लोकप्रिय थे। वे 1979 में खंड वा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए। उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि 1980 के चुनाव में उनके खिलाफ प्रचार करने के लिए इंदिरागांधी ने 3 दिन तक खंडवा में डेरा डाला था।
कुशाभाऊ ने संगठन के शिल्पी के अपने दायित्व को निभाते हुए जीवन में सदैव प्रवास को प्राथमिकता दी। जब जनसंघ की स्थापना में उन्हें मध्य भारत का दायित्व सौंपा गया तो संसाधनों की न्यूनता के बावजूद उन्होंने गांव-गांव पहुंचकर वैचारिकी का ऐसा बीज रोपा जिसका विशाल वट वृक्ष आज हम सभी देखते हैं। ठाकरे के व्यक्ितत्व की एक और विशेषता थी, जिसका हम सभी को आवश्यक रूप से अनुसरण करना चाहिए वह यह कि वे विषम परिस्थितियों में ज्यादा सक्रिय होकर कार्य करते थे। उन्होंने संगठन के भाव को अपने अंत:स्थल में उतारकर जो कार्यशैली अपनाई, वह वास्तव में ही अद्भुत थी। उनके सानिध्य में कार्य करने वाले आज जो भी कार्यकर्ता हैं, वे सभी समाज के प्रिय बने हुए हैं। कार्यकर्ता भटक न जाए इसलिए वह अनेक बार परिवार भाव की तरह कार्यकर्ताओं की चिंता करते हुए भी देखे गए। ठाकरे का मानना था कि हमारी ताकत हमारे कार्यकर्ता हैं। जनता ने हमें चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसे समय में भाजपा कार्यकर्ताओं का दायित्व बढ़ गया है। वे चुनाव परिणाम आने पर वे सबसे पहले उन सीटों की जानकारी प्राप्त करते जहां पर पार्टी की हार हुई है, और उन्हीं सीटों पर अपने लंबे प्रवास कार्यक्रम बनाते थे। लोगों के घर पर जाकर उनसे भेंट करना उनकी विशेषता थी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ऐसे हजारों कार्यकर्ता मिल जाएंगे जो गर्व से कहते हैं कि ठाकरे उनके घर पर आए थे। 1990 में मध्य प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी, इस विजय के पीछे भी ठाकरे का घोर परिश्रम, कार्यकर्ताओं की फौज जिसे उन्होंंने खड़ा किया था और राष्ट्रवाद का वही विचार था जो ठाकरे सदैव अपने भाषणों में साझा किया करते थे। कुशाभाऊ ठाकरे ने पं. दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय के मूलमंत्र को अपने अपने जीवन में अंगीकार कर लिया था। मध्य प्रदेश- छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जातिएवं अनुसूचित जनजातिवर्ग के कार्यकर्ताओं की ऐसी टीम खड़ी की जिसमें से अधिकांश ने अपने कर्तव्य के बल पर राजनीतिएवं सामाजिक क्षेत्र में एक महत्व़पूर्ण स्थान प्राप्त किया। कुशाभाऊ ठाकरे के राजनीतिक जीवन का अध्ययन किया जाए तो यही दिखाई देता है कि वे 1956 में जनसंघ के मध्य प्रदेश सचिव (संगठन) बने। वे 1967 में भारतीय जनसंघ के अखिल भारतीय सचिव बने। आपातकाल के दौरान वे 19 महीने जेल में भी रहे। भाजपा की स्थापना के पश्चात 1980 में भाजपा के अखिल भारतीय सचिव बनाए गए। 1986 से 1991 तक वे अखिल भारतीय महासचिव व मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे। 1998 में वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और इस पद वे 2000 तक रहे। 28 दिसंबर 2003 को उनका देहांत हो गया।
विगत दिवस मध्य प्रदेश सरकार ने भोपाल स्थित मिंटो हॉल का नाम कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय स्वागत योग्य है, स्व. ठाकरे की स्मृति की सभी कार्यकर्ताओं के मन में सदैव बसी रहनी चाहिए। उन्होंने अपने परिश्रम एवं कार्यप्रणाली के माध्यम से मध्य प्रदेश के संगठन और यहां के कार्यकर्ताओं को एक ब्रांड के रूप में स्थापित किया है। उनके आदर्शों पर ही चल कर आज संगठन सफलता के नए शिखरों का आरोहण कर रहा है। संगठन के ऐसे महान शिल्पी को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन।
(लेखक केंद्रीय कृषि मंत्री हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)