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डाॅ. ए.के. अरुण का लेख : बच्चों की वैक्सीन कितनी सुरक्षित

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए बच्चों की वैक्सीन के पक्ष में मार्च 2021 से ही माहौल बनाया जा रहा है। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), पटना एम्स में 12 से 18 साल के बच्चों पर वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल की सूचना सार्वजनिक की गई है। यह अध्ययन महज कुछ बच्चों पर कुछ हफ्तों में किया गया है। कहा जा रहा है कि उन बच्चों पर नजर रखी जा रही है जिन पर टीके का परीक्षण किया गया है, लेकिन यह एक सामान्य प्रक्रिया है। अनुसंधान के प्रोटोकाल नियमों के अनुसार उन बच्चों का अध्ययन वैज्ञानिक रूप से आवश्यक होता है जो परीक्षण के लिए चुने गए हैं, लेकिन बच्चों को वैक्सीन ऐसे लगाए जाने की बात की जा रही है मानों सम्पूर्ण सुरक्षित परीक्षण कर लिया हो।

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डाॅ. ए.के. अरुण

कोरोना वायरस संक्रमण की दहशत से पूरी दुनिया परेशान थी लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों ने झेला। अक्टूबर 2020 में ही यूनिसेफ ने कहा था, स्कूल सबसे आखिर में बंद होने चाहिए और सबसे पहले खुलने चाहिए। भारत ने ठीक उलटा किया। ज्यादातर देशों ने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दी लेकिन भारत में स्कूल बंद रहे। सवाल है कि बच्चों को कोविड से कितना खतरा है? अब तक के अध्ययन बता रहे हैं कि 5 से 14 साल के बच्चों में कोविड खतरा अन्य बीमारियों जैसे फ्लू, निमोनिया, दस्त, पीलिया, कैंसर आदि की तुलना में काफी कम है जबकि इन रोगों में कोविड के मुकाबले बच्चों में मौत का खतरा दस फीसदी ज्यादा है। बुजुर्गों में कोरोना का खतरा एक हजार गुना ज्यादा है। कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी घातक लहर में भी दुनियाभर में वृद्ध व्यक्तियों की ज्यादा मौतें हुई।

सिरोलाॅजिकल सर्वे के अनुसार 80 फीसदी बच्चे या तो कोरोना वायरस से संक्रमित होकर स्वतः ठीक भी हो चुके हैं या हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर चुके हैं, इसलिए इन्हें वैक्सीन की जरूरत इतनी नहीं है? वैसे भी वैक्सीन का बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल कायदे से पूरा नहीं हुआ है। कोरोना वायरस की तीसरी लहर के शोर के बीच नार्वे सहित 6 से ज्यादा देशों ने अपने यहां बच्चों का टीकाकरण रोक दिया है। कहने को 100 से ज्यादा देशों ने बच्चों की वैक्सीन को मंजूरी दी है, लेकिन महीनों बीत जाने के भी बाद ज्यादातर देशों में टीका लग नहीं रहा है। बच्चों में टीका लगाने से पहले इसके बच्चों में दीर्घकालीन असर का व्यापक और प्रमाणिक अध्ययन बेहद जरूरी है। विशेष परिस्थिति में वयस्कों के लिए कोरोना वायरस संक्रमण के टीके के आपातकालीन उपयोग की बात तो समझ में आती है, लेकिन बच्चों को क्यों खतरे में डाला जा रहा है? कोरोना संक्रमण से बच्चे स्वाभाविक रूप से सुरक्षित हैं और अभी उनके लिए कोई आपातस्थिति भी नहीं है। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए बच्चों की वैक्सीन के पक्ष में मार्च 2021 से ही माहौल बनाया जा रहा है। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), पटना एम्स में 12 से 18 साल के बच्चों पर वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल की सूचना सार्वजनिक की गई है। यह अध्ययन महज कुछ बच्चों पर कुछ हफ्तों में किया गया है। कहा जा रहा है कि उन बच्चों पर नजर रखी जा रही है जिन पर टीके का परीक्षण किया गया है, लेकिन यह एक सामान्य प्रक्रिया है।

अनुसंधान के प्रोटोकाल नियमों के अनुसार उन बच्चों का अध्ययन, डाटा संकलन वैज्ञानिक रूप से आवश्यक होता है जो परीक्षण के लिए चुने गए हैं, लेकिन यहां तो वैक्सीन बच्चों को ऐसे लगाए जाने की बात की जा रही है मानों उसका सम्पूर्ण सुरक्षित परीक्षण कर लिया गया हो? हालांकि नेशनल टेक्निकल एडवायजरी ग्रुप आॅन इम्यूनाइजेशन इन इंडिया (एनटीएजीआई) के प्रम्मुख डा. एन. के. अरोड़ा कहते हैं कि जायडस-कैडिला की जायकोव-डी वैक्सीन किशोरों के लिए सुरक्षित है, लेकिन इंडियन एसोसिएसन आॅफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपी एसएम) की अध्यक्ष डा. सुनीता गर्ग सभी बच्चों को वैक्सीन लगाने के पक्ष में नहीं हैं। वे कहती हैं कि यह इमरजेन्सी यूज अथराइजेशन (ईयूए) के तहत तैयार वैक्सीन विशेष परिस्थिति में केवल कोमार्बिडिटीज बच्चों में लगाई जानी चाहिए। यूरोप में हर स्वस्थ बच्चों को वैक्सीन न देने की सिफारिश की जा रही है क्योंकि फाइज़र और माडर्ना की वैक्सीन में बहुत ही दुर्लभ दुष्परिणाम देखे गए हैं। ये हैं दिल की धड़कन बढ़ना, दिल में सूजन, सीने में दर्द, आदि। अमेरिका में भी लाखों किशोरों को वैक्सीन लगा दी गई है, लेकिन यहां वैक्सीन की दूसरी खुराक लेने वाले 12 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चों में प्रति दस लाख में 60 लड़कों में दिल से जुड़ी दिक्कतें पाई गई हैं।

बच्चों में कोरोना वैक्सीन के अध्ययन की रिपोर्ट अभी पूरी तरह से सार्वजनिक भी नहीं है, लेकिन बड़े पैमाने पर कम्पनी ने चिकित्सकों एवं चिकित्सा संगठनों को वैक्सीन का परीक्षण (12-17 वर्ष के उम्र के बच्चों का) किया गया है, लेकिन छोटे बच्चे को भी वैक्सीन लगाने की चर्चा की जा रही है। वैसे तो अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर, यूएई आदि सम्पन्न देशों ने अपने यहां बच्चों की वैक्सीन की इजाजत दे दी है, लेकिन भारत में बच्चों की सेहत को लेकर जो मौजूदा स्थिति है वह इस कथित वैक्सीन के दुःप्रभावों को झेल पाएंगे इस विषय पर कोई साफ साफ बोलने को तैयार नहीं हैं। बच्चों की कोरोना वैक्सीन को लेकर बिल गेट्स की संस्था गावी (ग्लोबल एलाएन्स आफ वैक्सीनेशन एन्ड इम्यूनाइजेशन) की क्या राय है? यह जानना दिलचस्प है। अब तक के कोरोना वायरस संक्रमण के अनुभव के आधार पर वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि बच्चों में कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा काफी कम है। यदि विशेष परिस्थिति में बच्चे संक्रमित होते हैं तो वह कितना खतरनाक होगा इसकी अभी पक्की जानकारी नहीं है। मीडिया ने बिल गेट्स की एक समाज सेवी, परोपकारी छवि बनाई है जो इस कोरोना काल में ध्वस्त हुई है। गावी वैक्सीन के मुफ्त इस्तेमाल के खिलाफ है। बिल गेट्स ने बयान जारी कर कह दिया है कि वैक्सीन में इन्टेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स का ख्याल रखा जाना चाहिए। जाहिर है कि बिल गेट्स फाउन्डेशन ने वैक्सीन निर्माण में 5 अरब डालर से ज्यादा की रकम लगाई है तो निश्चित ही यह व्यावसायिक फैसला है जिसे मुनाफे के लिए इस्तेमाल किया जाना हें अब तक कोरोना संक्रमण और इसके टीके के बारे में बिल गेट्स की जितनी भी भविष्यवाणी है वह चौंकाने वाली है। दुनिया के कई बड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता गेट्स फाउन्डेशन के वैक्सीन अध्ययन और रिसर्च को विवादास्पद बता चुके हैं। फाउन्डेशन ने इस पर अपनी सफाई भी दी है।

इसमें सन्देह नहीं कि कोरोना वायरस संक्रमण ने पूरी दुनिया में स्वास्थ्य और दवा सम्बन्धी साेच और अनुसंधान को इस वायरस के इर्द गिर्द ही समेट कर रख दिया है। वर्ष 2015 में जब बिल गेट्स इस वायरस संक्रमण की संभावना पर बात कर रहे थे तभी यह संदेह उत्पन्न हो गया था कि भविष्य में वायरस संक्रमण ओर इससे बचाव के नाम पर टीके तथा उपचार के नाम पर कथित एन्टीवायरल दवाओं का बड़ा बाजार खड़ा होने वाला है। अब मामला बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य का है सो कोई भी देश रिस्क नहीं लेना चाहता। भारत में छह वर्ष तक के बच्चों की आबादी लगभग 16 करोड़ है। ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण के डर से कोई भी माता पिता अपने बच्चों को यों ही छोड़ना नहीं चाहेगा। वैसे भी भारत में वैज्ञानिक सोच के अभाव के कारण कम्पनियां अपना बाजार ज्यादा सुरक्षित देखती हैं। अभी बच्चों की यह वैक्सीन कहने को 12 से 17 वर्ष के बीच के बच्चों के लिए आएगी, लेकिन कोई आश्चर्य नहीं जब यह सभी बच्चों के टीकाकरण में शामिल कर ली जाए। कुछ भी हो सूचनाओं की तहकीकात और उसके प्रमाणिक विश्लेषण पर नजर रखिए। उम्मीद कीजिए कि सब ठीक हो।

(लेखक होम्योपैथिक चिकित्सक हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)

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